JAMSHEDPUR : ख्क्वीं सदी में बेटा-बेटी में भेदभाव क्या खत्म हो गया है। आखिर क्या वो वजहें हैं, जिनकी वजह से यह बरकरार है। इसका समाज पर क्या असर पड़ रहा है। इस मुद्दे पर मंगलवार को आई नेक्स्ट की ओर से ग्रुप डिस्कशन ऑर्गनाइज किया गया। इसमें शामिल कॉलेज गोइंग ग‌र्ल्स ने बेबाकी से अपनी राय रखी और कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए। क्या कहा उन्होंने आइए जानते हैं

हर स्तर पर बदलाव की जरूरत-हेमलता, स्टूडेंट

आमतौर पर यह कहा जाता है कि समाज में बेटा-बेटी के भेदभाव की बड़ी वजह अशिक्षा और जागरूकता की कमी है, लेकिन मेरा मानना है की इस भेदभाव की वजह सिर्फ यही नहीं है। पढ़े-लिखे लोग भी यह भेदभाव करते हैं। दहेज प्रथा, भ्रूण हत्या जैसी कुरीतियां शिक्षित घरों में भी हैं।

बरकरार है भेदभाव -प्रतिमा, स्टूडेंट

समाज में लड़का-लड़की को लेकर भेदभाव अब भी बरकरार है। इसे तब तक खत्म नहीं किया जा सकता जब तक समाज में हर स्तर पर बदलाव ना आए। यह किसी एक आदमी के बस की बात नहीं है। इसे खत्म करने के लिए हमारी मानसिकता में बदलाव करना होगा। आज की लड़कियां चांद-तारों में पहुंच गई हैं, तो फिर वे लड़कों से पीछे कैसे हैं?

सिर्फ हम पर ही क्यों लगते हैं रोक- अंकिता, स्टूडेंट

घर से निकलने से लेकर वापस आने तक हमें घर में कई सवालों के जवाब देने पड़ते हैं, लेकिन यही चीज लड़कों के साथ नहीं होती। आखिर ऐसा क्यों? जितनी रोक-टोक लड़कियों के साथ होती है उतना चेक एंड बैलेंस लड़कों पर भी होना चाहिए। उन्हें हर तरह की आजादी है तो फिर हमें क्यों नहीं।

भेदभाव मिटाना जरूरी -वैशाखी, स्टूडेंट

समाज से बेटा-बेटी का भेदभाव मिटाना बेहद जरूरी है। लड़कियां आत्मनिर्भर बनें, तभी वे अपनी आवाज मजबूती से उठा पाएंगी। बेटा-बेटी दोनों से समान अनुशासन की अपेक्षा की जाने लगेगी, तो कई समस्याएं खुद-ब-खुद खत्म हो जाएंगी। मेरा तो यही कहना है कि लड़का-लड़की दोनों को समान अवसर मिले, उनके बीच कोई भेदभाव नहीं रहे।

कराएं गलती का अहसास-अंकिता, स्टूडेंट

समाज में जो असुरक्षा का माहौल है उसे दूर करने में एक मां और बहन के रूप में महिलाएं भी अहम रोल अदा कर सकती है। एक मां अपने बेटे को या एक बहन अपने भाई को लड़कियों का सम्मान करना सिखाए तो असुरक्षा का ये माहौल काफी हद तक दूर हो सकता है। कई बार ऐसा होता है कि एक भाई किसी लड़की को छेड़े तो बहन भी उसे समझाने के बजाए उसे कूल कहती है, लेकिन एक बहन के नाते अगर वो उसे बढ़ावा देने के बजाय उसकी गलती का अहसास दिलाए तो सोच में बदलाव आ सकता है।

सेल्फ डिपेंडेंट होना है जरूरी-मौसमी दत्ता, स्टूडेंट

वक्त बदलने के साथ लड़का-लड़की में अंतर कम हो रहा है, लेकिन इसकी मौजूदगी समाज में अभी भी बरकरार है। जितनी जल्दी हो इसे खत्म किया जाना चाहिए। अपनी सोसाइटी में बदलाव लाना है तो महिलाओं को सेल्फ डिपेंडेंट होना होगा। अगर वो आत्मनिर्भर होंगी, तो किसी भी अत्याचार के विरोध में अपनी आवाज उठाने में सक्षम होंगी।

मिले समान अवसर-सुप्रिया, स्टूडेंट

बेटा और बेटी में फर्क अभी भी है। समाज के विकास के लिए इसे दूर करना जरूरी है। लड़कियों को भी समान अवसर मिलना चाहिए। उन्हें अच्छी शिक्षा मिलनी चाहिए, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। लड़कियों के लिए जरूरी है कि वे खुद को मजबूत बनाएं और आत्मनिर्भर बनें। अगर घर और समाज को शिक्षित करना है तो ग‌र्ल्स एजुकेशन पर भी खास ध्यान देना होगा।

सभी को शिक्षा का हक -पूजा, स्टूडेंट

बेटा हो या बेटी अच्छी शिक्षा का हक सबको है। लड़कियां आगे बढ़ें इसके लिए जरूरी है कि उन्हें अच्छी शिक्षा मिले, जिससे वो आत्मनिर्भर बन सकें। आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने बेटों की शिक्षा पर तो पूरजोर ध्यान देते हैं, लेकिन बेटियां पढ़ें या नहीं उनको कोई मतलब नहीं रहता है। वैसे देखा जाए तो लड़कियों को अच्छी शिक्षा की ज्यादा जरूरत है। अगर एक लड़की शिक्षित होगी तो पूरे घर में शिक्षा का उजियाला फैलेगा।