-रेल टिकट में दलाली रोकने के लिए डिपार्टमेंट ने उठाया एक और कदम

-आईआरसीटीसी ने आई टिकट की बिक्री को किया बंद

-अब पैसेंजर्स से काउंटर टिकट के नाम पर दलाल वसूल नहीं पाएंगे मुंह मांगा पैसा

VARANASI

रेलवे टिकट में दलाली रोकने के लिए डिपार्टमेंट ने एक और कदम उठाया है। अपनी पुरानी हो चुकी एक सर्विस को बंद कर दिया है। यह सर्विस बंद होने से जहां दलाल अब पैसेंजर्स से काउंटर टिकट के नाम पर मुंह मांगा पैसा नहीं वसूल पाएंगे तो दूसरी तरफ विभाग को कागज की भी बचत होगी। जी हां, नये फैसले के तहत रेलवे के आईआरसीटीसी ने आई टिकट की बिक्री को बंद कर दिया है। रेलवे की इस सुविधा के तहत यात्री काउंटर के पेपर टिकट को ऑनलाइन ले सकते थे। एक्सपर्ट के अनुसार आईआरसीटीसी ने अपनी वेबसाइट के माध्यम से आई टिकट की बुकिंग को ही हटा लिया है।

एड्रेस पर टिकट करते थे डिलीवर

इस सुविधा को आईआरसीटीसी ने सन् 2002 में स्टार्ट किया था। इसके अंतर्गत आईआरसीटीसी की वेबसाइट से रेलवे काउंटर की तरह पेपर टिकट जेनरेट किया जा सकता था। टिकट की बुकिंग होने के बाद रेलवे की तरफ से इस टिकट को यात्री के दिए गए एड्रेस पर डिलीवर कर दिया जाता था। इसके लिए रेलवे की तरफ से स्लीपर के लिए 80 रुपये और एसी के लिए 120 रुपये प्रति टिकट लिए जाते थे। यह तब उपयोगी था जब ई टिकट शहरों तक ही सीमित रहा। दूर-दराज के लोग अपने मोबाइल से रेल टिकट बुक नहीं करा पा रहे थे। क्योंकि कंप्यूटर जरूरी था। पर अब ऐसा नहीं है। इसमें कागज की भी बचत हो रही है।

दो दिन पहले करनी होती थी बुकिंग

आईआरसीटीसी चेन्नई, हैदराबाद, बेंगलुरू, मैसूर, मदुरै, कोयंबटूर में आई टिकट को जर्नी की डेट से दो दिन पहले बुक करने का मौका देता था। जबकि अन्य शहरों में इसे तीन दिन पहले बुक करना होता था। रेलवे ऑफिसर ने बताया कि सन् 2011 में मोबाइल में आए मैसेज को रेलवे टिकट के तौर पर मान्य करने के बाद आई-टिकट मंगाने वालों की संख्या में कमी आई है। इसके तहत मोबाइल में टिकट बुकिंग का मैसेज और फोटो आईडी दिखाने पर आप ट्रेन में यात्रा कर सकते हैं।

रेलवे का इको फ्रेंडली स्टेप

रेलवे ऑफिसर ने बताया कि आई टिकट की सुविधा ऐसे पैसेंजर्स के लिए स्टार्ट की गई थी जो ई-टिकट का प्रिंट आउट नहीं ले पाते थे या रूरल एरिया में रहते थे। या जहां इंटरनेट की सुविधा नहीं थी। रेलवे आईआरसीटीसीकी ओर से आई-टिकट की सुविधा को बंद करने के कदम को इको फ्रेंडली स्टेप बता रहा है। ऑफिसर्स का कहना है कि दलाली और कागज के प्रयोग को कम करने के लिए यह कदम उठाया गया है।

टिकट छापकर बनाते थे पैसा

अभी भी दूर दराज एरिया में रहने वाले ई-टिकट के बजाए काउंटर से लिए गए टिकट पर भरोसा ज्यादा करते हैं। ऐसे में रेल टिकट का धंधा करने वाले इनके लिए आईआरसीटीसी की वेबसाइट से बड़ी संख्या में आई-टिकट बना लेते थे और उसे मुंह मांगे रेट पर बेचते थे। इनके टारगेट पर रूरल और दूर दराज के पैसेंजर होते थे। इसको देखते हुए रेलवे ने आई-टिकट की सुविधा को बंद करने का डिसीजन लिया है। इसमें पैसेंजर्स को फेयर से ज्यादा पैसे भी देने पड़ते थे।

इंटरनेट व मोबाइल पर टिकट अवेलेबल होने के बाद आई-टिकट का केवल मिसयूज ही हो रहा था। पेपर भी लगता था। इसको देखते हुए इस सर्विस को बंद कर दिया गया है।

अश्वनी श्रीवास्तव, सीआरएम

आईआरसीटीसी, लखनऊ