ओस्लो में पुरस्कार ग्रहण समारोह में अभियान की प्रमुख बिट्रीस फिन ने अमरीका और उत्तर कोरिया के बीच जारी तनाव की ओर इशारा करते हुए कहा, "जल्दबाज़ी में लिया एक फ़ैसला लाखों लोगों की मौत का कारण बन सकता है"।

उन्होंने कहा, "हमारे पास कोई और रास्ता नहीं है, या तो हमें परमाणु हथियारों को ख़त्म करना होगा या फिर ये हथियार हमें ख़त्म कर देंगे।"

हाल के महीनों में उत्तर कोरिया और अमरीका के बीच तनाव काफी बढ़ गया है।

'ख़तरा बढ़ गया है'

आईकैन को नोबेल शांति पुरस्कार

बिट्रीस फिन ने कहा, "शीत युदध के वक्त ऐसे हमलों का ख़तरा कम था, लेकिन आज ये ख़तरा बढ़ गया है।"

पुरस्कार वितरण से पहले नोबेल पुरस्कार समिति की ब्रिट रीस-एंडरसन ने भी इसी तरह की चेतावनी देते हुए कहा, "ग़ैर-ज़िम्मेदार नेता किसी भी देश में सत्ता पर काबिज़ हो सकते हैं।"

उन्होंने कहा कि आईकैन परमाणु हथियारों के खतरों के बारे में विश्व को जागरुक करने में सफल रहा है और इस ख़तरे को मिटाने की दिशा में काम कर रहा है।

पुरस्कार समारोह में हिरोशिमा बम हमला देख चुकी 85 साल की सेत्सुको थुरलो भी मौजूद थीं जो इस अभियान के साथ जुड़ी हैं।

सेत्सुको ने कहा कि दुनिया को आईकैन की चेतावनी पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

आईकैन को नोबेल शांति पुरस्कार

हिरोशिमा पर हुए हमले के बाद सेत्सुको को एक गिरी हुई इमारत के मलबे के नीचे से बचाया गया था। उनका कहना था कि उनके साथ कक्षा में मौजूद उनके कई साथी ज़िंदा जल गए थे।

आईकैन साल 2007 में अस्तित्व में आया था और बारुदी सुरंगों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के लिए चलाए जा रहे अभियानों से प्रेरित था। संगठन ने परमाणु हथियारों के मानवीय ख़तरे के बारे में लोगों और सरकारों को जागरूक करना अपना लक्ष्य बनाया।

संयुक्त राष्ट्र संधि में अहम भूमिका

आईकैन को नोबेल शांति पुरस्कार

जिनेवा स्थित ये समूह सैकड़ों गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) से मिलकर बना है। इस समूह ने परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित संयुक्त राष्ट्र संधि के लागू होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस संधि पर इस साल हस्ताक्षर किए गए थे।

जुलाई में 122 देशों ने इस संधि का समर्थन किया था। दुनिया की नौ परमाणु शक्तियों ने इसका बहिष्कार किया था।

नैटो का एकमात्र सदस्य नीदरलैंड इस पर बातचीत करने के लिए तैयार हुआ था लेकिन उसने इसके विरोध में मतदान किया था।

इस संधि को लागू करने के लिए कम से कम 50 देशों के अनुमोदन की ज़रूरत है।

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