कोयला घोटाले मामले में अभियुक्त पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख ने कहा है कि प्रधानमंत्री की जांच कराए जाने को लेकर उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है.

हालांकि उनका कहना है कि अगर सीबीआई को इसमें साज़िश नज़र आती है, तो सभी लोगों की जांच की जाए.

बीबीसी ने उनसे खास बातचीत की.

आपके जो बयान आ रहे हैं कि प्रधानमंत्री की जांच हो, आप क्या कहना चाह रहे हैं?

मेरा जो बयान कहा जा रहा है, उसे कहीं-कहीं थोड़ा सा तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है. मैंने यह कहा कि इस केस में सीबीआई की जांच के लिए कुछ नहीं है.

यह एक निष्पक्ष और सही फ़ैसला है. इसलिए इसमें कोई भष्टाचार नहीं है. अगर इसमें कोई साज़िश है तो फिर इसमें बिरला, मैं और प्रधानमंत्री तीनों ही शामिल थे.

"मेरा जो बयान कहा जा रहा है, उसे कहीं-कहीं थोड़ा सा तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है. मैंने यह कहा है कि इस केस में सीबीआई की जांच के लिए कुछ नहीं है."

-पीसी पारेख, पूर्व कोयला सचिव

कुछ तो मामला रहा होगा कि शक के बादल मंडरा रहे हैं?

चूंकि इस फ़ैसले को लेने में सभी शामिल थे, इसलिए हम तीनों ही उसके लिए ज़िम्मेदार हैं. अगर सीबीआई कहती है कि इसकी जांच ज़रूरी है, तो फिर सभी के ख़िलाफ़ जांच होनी चाहिए.

सीबीआई आपका नाम क्यों ले रही है, व्यक्तिगत दुश्मनी तो है नहीं. कुछ न कुछ मिला होगा जिसके आधार पर जांच करना चाह रही है?

सीबीआई ने मुझसे कोई सूचना शेयर की नहीं है. मामला केवल यह था कि तालाबीरा कोल ब्लॉक आवंटन में मूल रूप से स्क्रीनिंग कमेटी ने सिफ़ारिश दी थी कि निवेली लिग्नाइट कॉर्पोरेशन को दिया जाए.

मैं भी इस फ़ैसले का हिस्सा था क्योंकि यह हमारे अपने मंत्रालय की ही कंपनी थी. लेकिन बिरला ने अनुरोध किया कि यह हमारे साथ अन्याय है क्योंकि हम पहले आवेदक थे. हम बराबर योग्य हैं.

जब आप कोयला सचिव थे तो क्या ऐसे दबाव आते थे? उस समय काम करने का क्या अनुभव रहता था?

जब आप कोई भी संसाधन मुफ़्त मे बांट रहे हैं तो दबाव तो आएंगे ही. इसमें सोचने की कोई बात है ही नहीं. इसका मतलब यह नहीं है कि आप दबाव में काम करें. दबाव आ सकता है, फिर भी आप निष्पक्ष तरीक़े से काम करते हैं.

कुछ लोग कह रहे हैं कि आप प्रधानमंत्री का नाम इसलिए ले रहे हैं क्योंकि आप इस पूरे मामले से अपना पल्ला झाड़ना चाहते हैं?

इसमें पल्ला तो झड़ ही नहीं सकता. अगर सीबीआई कहती है कि इसमें कोई साज़िश है तो मैं भी इसका हिस्सा हूं. मेरा पल्ला झाड़ने का सवाल ही कहां उठता है.

"मैंने कोयला सचिव बनते ही सुझाव दिया था कि कोयला सिस्टम निविदा के आधार पर होना चाहिए ताकि पूरी तरह पारदर्शिता रहे. दुर्भाग्यवश उद्योग जगत और राजनीतिक व्यवस्था इसके लिए तैयार नहीं थी. "

-पीसी पारेख, पूर्व कोयला सचिव

आपको लग रहा है कि सरकार प्रधानमंत्री को बचाने की कोशिश कर रही है, आसपास के लोगों की जवाबदेही बढ़ा रही है?

मैं तो कह रहा हूं कि इसमें कोई दम है ही नहीं. यह केस है ही नहीं. इसमें कोई शामिल है ही नहीं. सीबीआई का यह मानना है कि इसमें कोई गड़बड़ है. साज़िश है तो सबके ख़िलाफ़ जांच होनी चाहिए.

कोयले के इतने बड़े इस घोटाले या मामले को आप कैसे देखते हैं? क्या इस मामले को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है?

मेरा सीधा जवाब है, जो भी आवंटन सिस्टम है, उसमें गड़बड़ी की संभावना है. इसलिए मैंने कोयला सचिव बनते ही सुझाव दिया था कि कोयला सिस्टम निविदा के आधार होना चाहिए, ताकि पूरी तरह पारदर्शिता रहे. दुर्भाग्यवश उद्योग जगत और राजनीतिक व्यवस्था इसके लिए तैयार नहीं थी.

आगे का कदम क्या होगा, जबकि मामला दर्ज हो गया है, आपका नाम भी लिया गया है?

अभी तो मेरे लिए करने को कुछ नहीं है. जब भी सीबीआई चार्जशीट दायर करेगी, उसके बाद ही बचाव की ज़रूरत पड़ेगी.

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