-आइपीएस बनने के 14 साल बाद मिलती है डीआइजी में प्रोन्नति

-1999 से 2004 तक यानी छह साल में झारखंड को मिले थे सिर्फ पांच आइपीएस अधिकारी

रांची : राज्य में पुलिस के अभियान से लेकर मॉनीट¨रग तक की व्यवस्था प्रभावित हो रही है। आने वाले समय में भी इसका समाधान नहीं निकलने वाला है। झारखंड कैडर में शुरूआती दौर में आइपीएस अधिकारियों की भारी कमी का होना इसका प्रमुख कारण है। इसका असर अगले पांच साल तक झारखंड में पड़ेगा, जब डीआइजी व आइजी के पास कई-कई विंग का अतिरिक्त प्रभार होगा और कामकाज पर इसका खराब असर पड़ेगा।

छह वर्ष में पांच आईपीएस

राज्य में 1999 से लेकर 2004 तक यानी छह वर्षो में केवल पांच आइपीएस अधिकारी ही मिले थे। वह भी 1999 व 2000 में एक भी आइपीएस अधिकारी झारखंड को नहीं मिले थे। यही कारण है कि 1998 बैच के बाद आइजी रैंक की अर्हता रखने वाला कोई अधिकारी कुछ साल के बाद ही झारखंड को मिलेगा। डीआइजी से आइजी बनने के लिए चार साल का वक्त लगता है। पद के सापेक्ष प्रत्येक वर्ष कम से कम चार-पांच आइपीएस अधिकारी मिले होते तो अधिकारियों का कमी नहीं होती।

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1998 से 2004 तक राज्य को मिले आइपीएस अधिकारी

1998 : प्रवीण कुमार व प्रिया दुबे।

1999 : एक भी आइपीएस नहीं।

2000 : एक भी आइपीएस नहीं।

2001 : मनोज कौशिक।

2002 : साकेत सिंह।

2003 : अखिलेश झा।

2004 : प्रभात कुमार व अमोल वीनुकांत होमकर।

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क्या है प्रोन्नति की प्रक्रिया

-आइपीएस बनने के बाद कोई भी अधिकारी 14 साल के बाद डीआइजी, 18 साल के बाद आइजी, 25 साल के बाद एडीजी बनता है। राज्य में अधिकारियों की भारी कमी को देखते हुए 13 साल में ही प्रभारी डीआइजी बना दिया जाता है, ताकि इन पदों के कार्यो को ससमय निपटाया जा सके।

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क्या पड़ रहा है असर

एक-एक अधिकारी कई अतिरिक्त प्रभार में है। इससे कार्यो की गुणवत्ता, फिल्ड मूवमेंट प्रभावित हो रहा है। अधीनस्थ अधिकारियों पर नियंत्रण सही तरीके से नहीं हो पा रहा है।

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