कहते हैं: जो ये सोचते हैं कि मैनेजमेंट सिर्फ पैसे वालों का है, तो वे गलत सोचते हैं। हौसला हो, तो कोई भी काम बड़ा नहीं होता।

पीजीडीएम के गोल्ड मेडलिस्ट सुमित अग्रवाल बताते हैं कि उनके पिता रामावतार अग्रवाल दिल्ली के आरके पुरम में चाय की दुकान लगाते हैं। उन्होंने चाय बेच-बेच कर पैसे इकट्ठा किए और मुझे पढ़ाया। मां एक हाउसवाइफ हैं। घर का सारा काम वही संभालती हैं। मेरी स्कूलिंग दिल्ली के ही स्कूलों में हुई। उसके बाद मैंने बीटेक किया। पिताजी के पास पैसे नहीं थे, इसलिए लोन लेकर पढ़ाई की। लेकिन बाकी की जरूरतों के लिए उन्होंने कभी कोई दिक्कत नहीं होने दी। उनके सपोर्ट की वजह से ही आज मैं इस मुकाम पर पहुंचा हूं। बीटेक करने के बाद मैंने आईआईएम में एडमिशन लिया और उसके लिए भी लोन लेना पड़ा। आईआईएम में पढ़ाई करना मेरा सपना था और आज यहां से पास आउट होने के बाद काफी गर्व महसूस हो रहा है। उन्होंने कहा कि वैसे स्टूडेंट्स जो ये सोचते हैं कि मैनेजमेंट सिर्फ पैसे वालों के लिए है, तो वे गलत सोचते हैं। हौसला हो, तो कोई भी काम बड़ा नहीं होता।

बैंक मैनेजर की बेटी गोल्ड मेडलिस्ट

कहती हैं: सामने वाला आपसे जो उम्मीद रखता है, उसे वो सारी चीजें आपमें नजर आती हैं।

पीजीडीएचआरएम की गोल्ड मेडलिस्ट हावड़ा की स्वातिलेखा चौधरी ने बताया कि किस तरह उन्हें यहां पहुंचने में पैरेंट्स ने भरपूर सपोर्ट किया। गोल्ड मिलना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। इसके लिए मैंने जी-तोड़ मेहनत की और उसी का नतीजा है कि मैं आज इस मुकाम पर हूं। उन्होंने बताया कि उनके पिता इलाहाबाद बैंक में सीनियर मैनेजर हैं। जिन्होंने पढ़ाई में कभी कोई दिक्कत महसूस होने नहीं दी। साथ ही वह बताती हैं कि उनकी मां हाउसवाइफ हैं। 19 साल की एक छोटी बहन भी है। जो हावड़ा में पढ़ाई कर रही है। मेरी स्कूलिंग सेंट थॉमस स्कूल हावड़ा से हुई है। उसके बाद मैंने 12वीं की पढ़ाई सेंट थॉमस हाई स्कूल हावड़ा से की। ग्रेजुएशन की पढ़ाई सेंट थॉमस स्कूल आफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी से करने के बाद मैंने कॉग्निडजेंट कंपनी में तीन साल नौकरी भी की है। इसके बाद मैनेजमेंट के लिए आईआईएम में मेरा सेलेक्शन हुआ, जो काफी टफ था। वह कहती हैं कि सामने वाला आपसे जो उम्मीद रखता है, उसे वो सारी चीजें आपमें नजर आती हैं।