-वेस्ट यूपी में गोल्डेन मीट के नाम से मशहूर है बीफ, भैंस के मीट के साथ मिलाकर हो रहा निर्यात

-बीफ की यूपी में सबसे बड़ी मंडी है मेरठ, आसपास के जनपदों और गांवों से आता है चोरी-छिपे

-मेरठ में तीन साल में 87 सैंपल में मिला बीफ, यूपी में यह आंकड़ा चार हजार के पार

Meerut : दादरी कांड से चर्चा में आए बीफ का मेरठ में 300 करोड़ का सालान कारोबार है। 'गोल्डन मीट' के नाम से मशहूर बीफ को एक्सपोर्टर या तो भैंस के मीट के साथ मिलाकर या कोडवर्ड के साथ बड़े पैमाने पर निर्यात कर रहे हैं। सनद हो कि बीफ की रेट बेशक देश में बफैलो से कम हो किंतु विदेशों में इसकी जबरदस्त मांग है।

300 करोड़ का काला कारोबार

यूपी में बीफ पर प्रतिबंध के चलते यहां लाइसेंसी स्लाटर हाउस भी बीफ का उत्पादन नहीं कर सकते तो वहीं एक्सपोर्टर इसे सीधे एक्सपोर्ट नहीं कर सकते। मेरठ समेत वेस्ट यूपी में बीफ की डिमांड लोकली भी ज्यादा है तो वहीं मीट एक्सपोर्टर इसे चोरी-छिपे एक्सपोर्ट कर रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो 2.4 लाख टन बीफ मेरठ एवं आसपास से चोरी-छिपे एक्सपोर्ट हो रहा है। बीफ (काउ मीट) का 300 करोड़ का सालाना कारोबार लोकल एवं एक्सपोर्टर मेरठ से करते हैं।

तीन साल में 87 सैंपल

आरटीआई एक्टिविस्ट और सच संस्था के अध्यक्ष संदीप पहल एडवोकेट ने बताया कि मेरठ में पिछले तीस वर्षो में पकड़े गए मीट के सैंपल में से 87 सैंपल बीफ के मिले। मथुरा स्थित वेटेनरी फोरेंसिक लैब के संयुक्त निदेशक ने आरटीआई के जबाव में बताया कि यूपी में पिछले पांच सालों में यह आंकड़ा चार हजार से अधिक है।

वेस्ट यूपी का गढ़ बना मेरठ

वेस्ट यूपी में एक्सपोर्ट में नंबर वन मेरठ के गांवों और आसपास के जनपदों से भारी मात्रा में बीफ एक्सपोर्टर तक पहुंच रहा है। मेरठ में लोकल लेवल पर भी बीफ की बड़ी खपत है। मुजफ्फरनगर, हापुड़, बागपत, बिजनौर, बुलंदशहर, गजरौला, अलीगढ, गाजियाबाद, सहारनपुर, रामपुर आदि स्थानों से बीफ भारी मात्रा में एक्सपोर्ट होता है।

गांवों में फैला जाल

बात करें गोकशी की तो मेरठ के देहात क्षेत्र फलावदा, सिवाल, सरुरपुर, खरखौदा, किठौर, परीक्षतगढ, भावनपुर, निहोरा आदि कस्बों एवं उससे लगे आसपास के गांवों के अलावा शहर में भूमियापुल, हापुड़ रोड़, लिसाडी गेट, उपरी सद्दीकनगर, ब्रह्मापुरी, समद गार्डन आदि क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर चोरी-छिपे गोकशी हो रही है।

बीफ को मिलाकर कर रहे एक्सपोर्ट

मेरठ में बफैलो (भैंस के मीट) के साथ मिलाकर बीफ को एक्सपोर्ट कर रहे हैं। गोल्डन मीट से नाम से मशहूर बीफ की विदेशों में खासी डिमांड है। क्योंकि इंटरनेशनल मार्केट में यह मीट बीफ के नाम से ही चर्चित है सो पैकिंग में एक्सपोर्टर को कड़ी मशक्कत नहीं करनी पड़ती। इसके अलावा मिलीभगत से काउ मीट को कोडवर्ड से आइडेन्टीफाई कर दिया जाता है। प्रॉपर चैनल के थ्रू बीफ एक्सपोर्ट का काला कारोबार चल रहा है।

महंगी होती है खाल

बीफ की खाल महंगी होती है, हालांकि देशी बाजार में मीट सस्ता होता है। खाल का महंगा होना भी गोकशी की बड़ी वजह है। सूत्रों के मुताबिक बीफ की खाल को हापुड़ की मंडी में इकट्ठा किया जाता है और यहां से कोलकाता की टेनरियों में भेजा जाता है।

बनती है फर्जी रिपोर्ट

बीफ के काले कारोबार में एक्सपोर्टर, गोकश के साथ-साथ विभिन्न सरकारी विभागों की संलिप्तता उजागर हुई है। संदीप पहल ने बताया कि ज्यादातर एंटीमार्टम-पोस्टमार्टम रिपोर्ट फर्जी बना दी जाती हैं। शिकायत पर हो रही सैंपलिंग भी खानापूर्ति महज है। मेरठ से लेकर दिल्ली तक बड़ा चैनल गोल्डन मीट कारोबार में लिप्त है।

गाय के मीट (बीफ) का निर्यात मेरठ से लंबे समय से हो रहा है। लोकल लेवल पर भी बीफ की बड़ी खपत है। सरकारी विभाग की मिलीभगत से यह काला कारोबार चल रहा है। गोवंश के खरीदे जाने से लेकर बीफ के एक्सपोर्ट होने तक दस्तावेजों में रिश्वत लेकर हेराफेरी होती है। पुलिस-प्रशासन के संरक्षण में यह काला कारोबार चल रहा है।

-संदीप पहल

आरटीआई एक्टिविस्ट

मेरठ में बड़ी संख्या में गोवंश रोजाना कट रहे हैं। पुलिस-प्रशासन को चाहिए कि गोकशों को संरक्षण देने के बजाय उनपर शिकंजा कसें। आस्था से जुड़े सवाल पर जिम्मेदारों का लापरवाह रवैया सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा रहा है।

-दीवान गिरि गोस्वामी

राष्ट्रीय संयोजक, जनहित मोर्चा