- जहां से शुरुआत की हर साल वहीं छठ व्रत करने के लिए आते हैं कई फैमिली वाले

- कलेक्ट्रेट घाट से हुई पुत्र की प्राप्ति तो काली घाट पर मनौती मांगने से बन गए कई बिगड़े काम

- महापर्व छठ व्रत के दौरान घाट के किनारे ही डेरा जमा लेते हैं व्रती

PATNA : एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से कई घाटों को नॉर्मल तो कई को खतरनाक साबित किया गया है, फिर भी गंगा घाट पर छठ व्रत करने का अपना अलग महत्व तो है ही इसके साथ यह आस्था से भी जुड़ा हुआ है। क्योंकि जिस घाट पर मनौती मांगी जाती है उसी घाट पर छठ व्रती किसी भी हाल में पर्व को करना चाहते है। क्योंकि उन घाटों के साथ उनकी आस्था जुड़ी हुई होती है। जहानाबाद से आए दंपति परमहंस और रूबी सिंह कलेक्ट्रेट घाट पर इसलिए नहाय खाय से लेकर पूरा पर्व करने की तैयारी में हैं क्योंकि इसी घाट पर आकर उन्हें आशीर्वाद मिला और उनके घर बेटा हुआ। छठ मईया की कृपा पाने के बाद अपनी मां के साथ आए दंपति ने पूरा का पूरा पर्व यहीं पर करने की तैयारी की है। यही आस्था अन्य घाटों से भी जुड़ी है। घाटों की कई कहानियों को वहां पर रहने वाले और छठ व्रतियों ने अपने-अपने हिसाब से शेयर की।

आस्था के आगे कुछ नहीं दिखता

अदालत घाट पर छठ के दौरान भगदड़ को एक हादसा मानने वाले छठ व्रतियों ने बताया कि यह पूरा का पूरा आस्था से जुड़ा है। जिसकी जहां पर आस्था होती है वो उसी घाट पर आकर छठी मईया की पूजा अर्चना करते हैं। भगवान भास्कर को अ‌र्घ्य देते हैं और अपनी मनोरथ पूरा करने के लिए उनसे गुहार भी लगाते हैं। मुंगेर से आए राजीव ने बताया कि वे लोग शाम के अ‌र्घ्य के लिए सुबह में ही घाट किनारे आ जाएंगे, अभी अपने रिलेटिव के घर पर हैं। वो घाट को देखने आए हुए थे और गंगा जल ले कर जा रहे हैं।

कलेक्ट्रेट घाट से कई गोद में आयी खुशहाली

मां गंगा जब कलेक्ट्रेट घाट से होकर बहती थी तो ऐसी मान्यता है कि यहां पर खड़े होकर जिसने भी मनोकामना की, उसकी पूरी हुई। चार साल पहले तक कलेक्ट्रेट कैंपस में हजारों श्रद्धालु आया करते थे। लेकिन गंगा के घाट से दूर चले जाने और कई दफा बंद कर दिए जाने के बाद भी छठ व्रती आकर गंगा के उस पार जाकर पूजा करते हैं। इस घाट से कई औरत मां बनी और उनका घर भरा पूरा है। ये बातें घाट पर रहने वाले साधु ने अपने अंदाज में कही।

मां काली, गंगा और छठी मईया का वरदान

दरभंगा महाराज की हवेली से होकर मां काली की पूजा और फिर गंगा के किनारे छठ व्रत करने की परंपरा कितनी पुरानी है यह तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन यहां पर काम करने वाली संस्था के लोग क्9भ्ब् से ऐसे कई छठ व्रतियों को जानते हैं जो बाहर से आकर व्रत करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी यहां अपनी मुश्किल बताता है वह सॉल्व होती है। तीन मां एक साथ उसे आशीष देती हैं। रुक्मिणी देवी ने कहा कि तीनों मां का आशीर्वाद उनके घर पर बना रहता है।

कृष्णा घाट पर खुद मां बोलती हैं

गंगा की कल-कल धारा को यहां कई लोगों ने सुना है। इसी धारा से आशीर्वाद मिलता रहता है। यूं तो अब पानी कम हुआ है, लेकिन इससे आस्था कम नहीं हुई है। यहां की मान्यता को लेकर राजीव कुमार बताते हैं कि कई तरह की बीमारी यहां पर स्नान करने से उस जमाने में दूर हो जाया करती थी। छठ घाटों को लेकर महेंद्रू घाट और कृष्णा घाट का काफी महत्व हुआ करता था। वक्त बदल गया, मगर आस्था आज भी वही है।

पीयू घाट पर मांगते हैं मनौती

पटना के गंगा की महिमा हर तरफ है। आज भी छठ को लेकर काफी चर्चा रहती है। लोग शुभ काम करने के लिए यहां आते हैं। बच्चों का मुंडन से लेकर पूजा पाठ और कर्म कांड करवाया जाता है। पीयू घाट उन लोगों के लिए था जो पटना में छठ करने आना चाहते थे। लोकल लोग तमाम पुराने घाटों पर जमे थे। ऐसे में बाहरी लोगों के लिए पीयू घाट काफी महत्वपूर्ण था। आज भी कई एरिया के लोग हर साल इस घाट पर आते हैं और मनौती मांगते हैं।