- अस्थाई प्रिंसिपल के सहारे चल रहे राजधानी के एडेड कॉलेज

- नगर निगम कॉलेज को सात, तो केकेवी को 15 साल से प्रिंसिपल का इंतजार

LUCKNOW :

मौजूदा समय में राजधानी के 60 प्रतिशत डिग्री कॉलेज बिना नियमित प्रिंसिपल के संचालित हो रहे हैं। जिम्मेदारों की लापरवाही और अपने चहेतों को उस पद पर बैठाए रखने के खेल में कई सालों से इन पदों पर स्थाई प्रिंसिपल की तैनाती ही नहीं की गई। सभी जगहों पर कार्यवाहक प्रिंसिपल के सहारे ही इन कॉलेजों का कामकाज देखा जा रहा है। नगर निगम डिग्री कॉलेज में नए प्रिंसिपल की नियुक्ति की प्रक्रिया को निगम के अधिकारी ही फंसाए बैठे हैं। लखनऊ यूनिवर्सिटी ने नियुक्ति के लिए विशेषज्ञों का पैनल तक दे दिया, उसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई।

20 सहायता प्राप्त कॉलेजों होता है संचालन

शहर में 20 सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेजों का संचालन किया जाता है। इसमें आईटी कॉलेज, केकेसी, विद्यांत डिग्री कॉलेज समेत करीब पांच-छह डिग्री कॉलेजों को छोड़ दिया जाए तो अन्य करीब 60 प्रतिशत कॉलेजों में कई सालों से स्थाई प्रिंसिपल ही नहीं हैं। केकेवी में करीब 15 साल पहले यह पद खाली हो गया था। तभी से यहां पर अस्थाई प्रिंसिपल तैनात हैं। नगर निगम डिग्री कॉलेज में सात साल से स्थाई प्रिंसिपल नहीं हैं। इसका सबसे बड़ा खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ा रहा है। साल 2000 से पहले कालीचरण डिग्री कॉलेज के जेएन टंडन, वीएसएनवी के डीपी बाजपेयी, अवध कॉलेज की इंदू नायर, नारी की आशा गुप्ता और एपीसेन डिग्री कॉलेज की प्रिंसिपल सुधा श्रीवास्तव के रिटायर होने के बाद से अब तक स्थाई प्रिंसिपल नियुक्ति नहीं हो सके हैं। साल 2000 से 2010 के बीच खुनखुन जी डिग्री कॉलेज की एसएस पांडेय, शशिभूषण डिग्री कॉलेज की सुचित्रा मिश्रा, डीएवी के डीपी यादव और कृष्णा देवी डिग्री कॉलेज की केएमडी गुप्ता के रिटायर होने के बाद से अबतक किसी स्थाई प्रिंसिपल की नियुक्ति नहीं हो सकी है।

नगर निगम डिग्री कॉलेज का पैनल कैंसिल

नगर निगम डिग्री कॉलेज में प्रिंसिपल की तैनाती की प्रक्रिया एक बार फिर फंसा दी गई है। अपर नगर आयुक्त नंद लाल ने बताया कि यूनिवर्सिटी ने प्रिंसिपल के चयन के लिए एक पैनल गठित किया था, लेकिन इस पैनल के कुछ सदस्य तैयार नहीं हैं। ऐसे में यूनिवर्सिटी को दोबारा पैनल गठित करने के लिए पत्र लिखा जा रहा है।

प्रिंसिपल पदों की भर्ती को लेकर हो चुका है विवाद

प्रदेश सरकार की ओर से बीते अप्रैल में प्रदेश के राजकीय और एडेड कॉलेजों में खाली प्रिंसिपल के पदों को भरने के लिए आवेदन जारी किये गये थे, लेकिन इस आवेदन को जारी करते समय सरकार की ओर से कई खामियों पर ध्यान नहीं दिया गया। जिसमें यूजीसी के कैटेगरी तीन और चार के तहत नियुक्तियां नहीं निकाली गई। इस पर कानपुर के कॉलेजों की ओर से भर्ती प्रक्रिया के खिलाफ कोर्ट में रिट दायर की गई थी। जहां पर कोर्ट ने कॉलेजों के पक्ष को सुनते हुए भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी।

इस समस्या को कुछ लोग अपने हितों को पूरा करने के लिए बनाए हुए हैं। जो भी विज्ञापन निकाले जा रहे हैं, उसमें त्रुटि निकालकर विवादों को जन्म दिया जा रहा है। सरकार अगर नियुक्ति में सक्षम नहीं है तो अर्हता पूरी करने वाले मौजूदा कार्यवाहक को ही नियुक्त कर दिया जाए।

डॉ। मौलेन्दु मिश्र, पूर्व अध्यक्ष लुआक्टा