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BAREILLY:

मिनी बाईपास पर बसा नवदिया यूं तो शहरी सीमा में है, लेकिन इसे आज भी गांव के नाम से पुकारा जाता है। इसमें रूह भी गांव की बसती है। एक ऐसी रूह जिसने एक बड़ी सामाजिक क्रांति कर दी। एक ऐसी रूह जिसने बड़े-बड़े कथित आंदोलनों को आईना दिखा दिया है। दरअसल, नवदिया ऐसा गांव है जिसमें कोई दहेज नहीं लेता। फिजूलखर्जी रोकने के लिए जहां शादियों में महंगे पकवान नहीं बनते। बैंड-बाजे और डीजे नहीं बजते। इन नियमों को जो नहीं मानता उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है। इमाम भी निकाह पढ़ाने से इनकार कर देता है।

 

सादगी से संपन्न होता है निकाह

नवदिया गांव के निवासियों ने बेझिझक होकर बताया कि यदि कोई बारात जाती है तो वह बैंड बाजा लेकर नहीं जाती। इसके अलावा अन्य कोई दूसरी फिजूलखर्ची भी नहीं की जाती। सादगी से रस्म-रिवाज निभाकर बहू को घर लाया जाता है। ठीक इसी तरह बेटियों की शादी में बारात बैंड नहीं बजा सकती। घरेलू खाना बारात के लिए बनाया और परोसा जाता है। गांव में यह सब पिछले दो वर्षों से चुपचाप चल रहा है। जिसकी भनक आसपास के लोगों को भी है और वह इसकी सराहना भी करते हैं। बता दें कि यह सब फिजूलखर्ची रोकने के लिए है। मुस्लिम बाहुल्य इस गांव में ईद मीलादुन्नबी व अन्य धार्मिक आयोजन खुशमिजाजी से होते हैं।

 

शुरुआत भी है बड़ी दिलचस्प

इसकी शुरुआत दो वर्ष पहले निकाह पढ़ाने पहुंचे इमाम ने की थी। नवदिया निवासी जूनियर के घर में निकाह था। जहां वह निकाह पढ़ाने पहुंचे थे। हुसैनबाग बाकरगंज से आई बारात में बैंड बाजा का उन्होंने विरोध किया। शरीअत में फिजूलखर्ची को शैतानी फिरका बताया, लेकिन जब बाराती नहीं माने तो उन्होंने निकाह पढ़ाने से इनकार कर दिया। उनका साथ देते हुए गांव के अन्य निवासी भी दावत में शमिल नहीं हुए। इसके बाद तब से चला यह सिलसिला अब एक रस्म सा बन गया है। गांव के लोग भी मानते हैं कि दिखावा नहीं दिल में ऐतबार होना चाहिए। निकाह के लिए जितनी रवायतें हों वह निभाई जाएं न कि उनका दिखावा किया जाए।

 

एक नजर में

- 250 घर हैं नवदिया में

- 3200 स्थानीय निवासी

- 2 वर्ष से चल रही परंपरा

- गांव में नहीं है प्राथमिक विद्यालय

- सभी सड़कें हो चुकी हैं जर्जर

- मांझा और मजदूरी करते हैं युवा

- नहीं है एक भी सफाईकर्मी

- स्ट्रीट लाइट नहीं लगी हैं

- चंदा लगाकर कराया नाली का निर्माण

 

शरीअत के मुताबिक निकाह में फिजूलखर्ची को शैतानी फिरका कहा है। यह गलत है जिसका विरोध होना चाहिए। दहेज लेना देना भी गलत है। जिसका हम सब विरोध करते हैं।

मोहम्मद हुसैन, पूर्व मुतवल्ली

 

करीब दो वर्ष पहले इमाम ने फिजूलखर्ची को बंद करने के लिए निकाह नहीं पढ़ा था। तभी से यह परंपरा बन चुकी है। अब निकाह शरीअत के हिसाब से किए जा रहे हैं।

अंसार अहमद, निवासी, नवदिया

 

फिजूलखर्ची किसी भी तरह की हो वह गलत है। गाढ़ी कमाई को हमेशा सही कामों में इस्तेमाल करना चाहिए। फिजूलखर्ची रोकने की यह पहल सराहनीय है।

राजू शमीम, निवासी व समाजसेवी

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