गलन और शीतलहर से बढ़ गया कोल्ड स्ट्रोक खतरा

खुले में घूमना हो सकता है जानलेवा, हॉस्पिटल में बढ़े मरीज

ALLAHABAD: सर्दी में कंपकंपी आने या दांत किटकिटाने पर सजग होने की जरूरत है। डॉक्टरों का कहना है कि यह दिमाग की ओर से दी जाने वाली चेतावनी है। इसे अनदेखा करना सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। ऐसा तब होता है जब हमारे शरीर का तापमान निश्चित मानक से नीचे चला जाता है और मरीज कोल्ड स्ट्रोक शिकार होने लगता है। ऐसे मामलों की तादाद बढ़ने से हॉस्पिटल्स में मरीज पहुंचने लगे हैं।

ब्रेन के सिग्नल को समझें

गलन और शीतलहर चलने पर अचानक तापमान काफी नीचे आ जाता है। ऐसे में शरीर का तापमान गिरने पर ब्रेन सिग्नल देने लगता है। इसे हम अनैच्छिक क्रिया यानी कंपकंपी और दांत किटकिटाने के जरिए पहचाना जा सकता है। ऐसे में शरीर को तत्काल गर्मी नहीं मिली तो कोल्ड स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है और मरीज कोमा में जा सकता है। उसकी जान भी जा सकती है। इस कंडीशन को हाइपोथर्मिया कहा जाता है। बता दें कि शरीर के तापमान में 1.8 डिग्री की गिरावट खतरनाक मानी जाती है। यह स्थिति खासतौर से दिल के रोगियों और छोटे बच्चों के लिए खतरनाक होती है। तापमान में गिरावट से मांसपेशियों में सिकुड़न व धमनियों में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है, जो सीधे हार्ट व ब्रेन अटैक का कारण बन सकता है।

जानिए बॉडी का टेम्प्रेचर फैक्टर

डॉक्टरों के मुताबिक शरीर का सामान्य तापमान 98.08 डिग्री फारेनहाइट होता है। यदि यह गिर कर 97 डिग्री फारेनहाइट पर पहुंच जाए तो शरीर में कंपकंपी होने लगती है। यह कंपकंपी दिल के माध्यम से हमें दिया जाना वाला सिगनल है कि उसे अब गर्मी की जरूरत है। इसके लिए शरीर अपनी मांसपेशियों को इस प्रक्रिया में सख्त कर लेता है। लेकिन, तापमान 91 से 87 डिग्री फारेनहाइट तक गिर जाता है तो मांसपेशियों में अकड़न से कंपकंपी रुककर हाइपोथर्मिया की स्थिति ला देती है। जो ब्रेन व हार्ट अटैक और मौत की वजह बन सकती है। यदि तापमान 84 डिग्री फारेनहाइट से भी कम हो जाता है, तो शरीर नीला पड़ने लगता है और सांस रुकने लगती है और परिणाम व्यक्ति की मौत के रूप में सामने आता है।

मरीजों ने दी हॉस्पिटल में दस्तक

पिछले पांच दिनों से शहर कोहरे की चपेट में था और गुरुवार को धूप जरूर निकली लेकिन गलन बदस्तूर जारी रही। ठंडी हवाओं ने भी परेशान करने में कोई कसर नही छोड़ी। ऐसे में ठंड से प्रभावित मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है। बेली हॉस्पिटल की ओपीडी में पिछले तीन दिनों में ढाई सौ मरीजों ने ओपीडी में दस्तक दी, जिसमें चालीस फीसदी मरीज मौसमी बीमारियों की चपेट में थे। इसी तरह कॉल्विन और एसआरएन हॉस्पिटल की फिजीशियन ओपीडी में दो से तीन सौ तक मरीज पहुंचे। यहां भी कई मरीजों को बुखार, जुकाम, सिरदर्द, बदनदर्द, सीने में दर्द, खांसी और गले में खराश की शिकायत रही।

ठंड अधिक पड़ने पर शरीर में अकड़न के साथ चेहरे पर टेढ़ापन आने की शिकायत भी हो सकती है। इस स्थिति को फेसियल नर्व की पैरालिसिस बेल्स पाल्सी कहते हैं। इसमें शरीर पर नीलेपन के साथ आंखें बंद होने लगती हैं।

इस तरह का लक्षण दिखने पर प्राथमिक सहायता के रूप में ऐसे व्यक्ति को तुरंत गर्म स्थान पर ले जाएं और शरीर को गर्मी प्रदान करें। उसकी सांस पर नजर रखें, गंभीर हाइपोथर्मिया होने पर फौरन सांस रुक सकती है।

कोल्ड स्ट्रोक के मरीज को गर्म पेय पदार्थ के रूप में पौष्टिक सूप, काफी, गर्म चाय, दूध आदि दिया जाए। शराब नही देना चाहिए।

घर से निकलते समय कान को गर्म कपड़े से ढंककर रखें। सिर पर गर्म टोपी और हाथों में दस्ताने पहने।

गुनगुने पानी से स्नान करें। ठंडे पानी के सेवन से बचना जरूरी। देर रात खुले आसमान के नीचे घूमना खतरनाक।

वातावरण के प्रभाव से शरीर में कोई परिवर्तन होने पर इसका अहसास होने लगता है। जिसे नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है। ठंड के साथ भी ऐसा है। शुरुआती लक्षणों के आधार पर मरीज को तत्काल इलाज मुहैया कराना चाहिए।

डॉ। ओपी त्रिपाठी, सीनियर फिजीशियन

गलन और ठंडी हवाओं की वजह से मरीजों की संख्या बढ़ गई है। ओपीडी में अधिकतर मरीज मौसमी बीमारियों के हैं। सभी मरीजों को दवा मुहैया कराई जा रही है और गंभीर मरीजों को भर्ती करने के आदेश दिए गए हैं।

डॉ। वीके सिंह, सीएमएस, बेली हॉस्पिटल