-कई मोहल्लों में सुअर की भरमार, इसके बाद भी जिम्मेदार नहीं दे रहे हैं ध्यान

-गोरखपुर में अब तक मिल चुके हैं दो स्वाइन फ्लू के मरीज

-इसके बाद भी नहीं जाग रहे हैं जिम्मेदार

GORAKHPUR: शहर में स्वाइन फ्लू दस्तक दे चुका है। दो लोग इसकी चपेट में आकर हॉस्पिटलाइज हैं। इन्हें यह बीमारी यूं ही नहीं मिली है, बल्कि शहर में इसके 'यमदूत' खुले आम घूम रहे हैं, जो बीमारी बांट रहे हैं। हम बात कर रहे हैं शहर के कई मोहल्लों में खुलेआम घूम रहे सुअरों की, जो स्वाइनफ्लू वायरस के इंटरमीडिएट वेक्टर हैं।

इनफ्लूएंजा जैसे सिम्प्टम रखने वाले इन वायरसेज को यह सुअर दूसरों तक आसानी से पहुंचा रहे हैं, जिसकी वजह से स्वाइनफ्लू जैसी खतरनाक बीमारी पांव पसारने के साथ ही लोगों की परेशानी बढ़ा रही है। सुअर के साथ ही काली मिट्टी और गंदगी में पाए जाने वाले जानवर भी इसके वेक्टर के तौर पर काम करते हैं।

रिकॉर्ड में 1270 'यमदूत'

स्वाइन फ्लू और इंसेफेलाइटिस जैसी खतरनाक बीमारी को बांटने वाले इन सूअरों की तादाद शहर में 1270 है। यह शहर के 65 बाड़ों में पाले गए हैं। यह हाइवे, मार्केट, घनी आबादी के साथ ही सिटी के नए डेवलप हुए एरियाज में मौजूद हैं। सबसे ज्यादा सुअरों की तादाद बसंतपुर और जटेपुर उत्तरी इलाके में है। जीएमसी के आंकड़ों में बसंतपुर में 418 और जटेपुर उत्तरी में 53 सुअर पाले गए हैं। यह सभी स्वाइन फ्लू के वेक्टर का काम करते हैं और आसपास के रहने वालों के लिए खतरा पैदा करते हैं।

किसी भी उम्र में हो सकता है स्वाइन फ्लू

आमतौर पर यह सुनने में आता है कि बड़ी उम्र के लोगों को ही स्वाइन फ्लू का वायरस अटैक कर रहा है, लेकिन यह वायरस किसी भी उम्र के लोगों को अपना शिकार बना सकता है। सबसे ज्यादा खतरा 10 साल या उससे कम उम्र के बच्चों को है, जो अगर इनकी चपेट में आ जाते हैं तो इम्युनिटी पॉवर कम होने की वजह से इनका वार नहीं सह पाते और इसकी वजह से इनकी मौत तक हाे जाती है।

सुअर की आंत में पनपता है वायरस

लोगों को मौत के मुहाने पर पहुंचाने वाला यह वायरस सुअर की इंटेस्टाइन में पनपता है। इसके बाद जब सुअर काली मिट्टी या कीचड़ में बैठता है तो वहीं अपना मल्ल त्याग करता है। साथ ही यह वायरस भी बाहर आ जाता है। इसके बाद जब मल्ल सूख जाता है तो यह बायोडिग्रेड होने लगता है, जिससे इसके वायरस हवा में फैलते हैं और आसपास के लोगों तक इसका असर फैलने लगता है। वहीं, सुअरों को भी यह वायरस जकड़ लेता है। इसके बाद यह जहां खांसते और छींकते हैं, वायरस आसपास मौजूद लोगों को अपना शिकार बनाता है। यह संक्रामक रोग है, इसलिए इसका संक्रमण फैलता ही जाता है।

यह हैं सिम्प्टम्स -

- नाक का लगातार बहना, छींक आना

- कफ, कोल्ड और लगातार खांसी

- मांसपेशियों में दर्द या अकड़न

- सिर में भयानक दर्द

- नींद न आना, ज्यादा थकान

- दवा खाने पर भी बुखार का लगातार बढ़ना

- गले में खराश का लगातार बढ़ते जाना

ऐसे फैलता है स्वाइन फ्लू

- स्वाइन फ्लू का वायरस हवा में ट्रांसफर होता है

- खांसने

- छींकने

- थूकने

- पेशाब

- टॉयलेट

प्रिकॉशन -

- सुअर जहां बैठे, वहां मिट्टी का तेल डाल दें

- तेल न हो तो चूने का छिड़काव करें

- फिनायल की गोली या लिक्विड भी डाला जा सकता है।

- पालने वाले सुअर को बंद रखें

- जहां आसपास सुअर रह रहे हैं वहां हाईजीन मेनटेन रखी जाए।

होने के बाद करें -

- प्रिकॉशन ही इससे बचने का सबसे बड़ा उपाय है।

- जिसको स्वाइन फ्लू हुआ है वह नाक और मुंह पर कपड़ा बांधें

- अपने यूज की सारी चीजें अलग कर लें

- साबुन, तौलिया, ब्रश, गद्दा, रजाई दूसरे का न दें।

- यह बीमारी अपने से क्योर हो जाती है।

- शुरुआत में पैरासीटमॉल जैसी दवाएं बुखार कम करने के लिए दी जाती हैं।

- अगर दो हफ्ते तक प्रॉब्लम खत्म न हो, तो डॉक्टर को दिखाकर सलाह लें

- आराम करना

- खूब पानी पीना

- शरीर में पानी की कमी न होने देना

- बीमारी के बढ़ने पर एंटी वायरल दवा ओसेल्टामिविर (टैमी फ्लू) और जानामीविर (रेलेंजा) का इस्तेमाल किया जाता है।

मेरा घर जबसे बना हुआ है, तबसे यहां सुअर नजर आ रहे हैं। यह गंदगी लेकर इधर-उधर घरों में घुस जाते हैं। इसकी वजह से काफी दिक्कत होती है।

- विजय गुप्ता, बसंतपुर

सुअरों को हटाने के लिए कई बार कवायद हुई है, लेकिन अब तक कोई ठोस हल नहीं निकल सका है। जिम्मेदार सिर्फ कोरम पूरा करते हैं।

- सुनीता सिंह, सौदागर मोहल्ला

सुअरों की वजह से कई तरह की तरह की बीमारी हो रही है। मगर जिम्मेदारों की निगाह इस पर नहीं जा रही है। वह लोगों को बीमार करना चाहते हैं।

- गगन मिश्रा, जटेपुर उत्तरी

जटेपुर में काफी सालों से सुअर बाड़े हैं, मगर इनको अब तक नहीं हटाया जा सका है। कई कमिश्नरों ने निर्देश दिए हैं, मगर जिम्मेदार सिर्फ कागजी कार्रवाई करके रह जाते हैं।

- अखिलेश शुक्ला, हड़हवा फाटक

स्वाइन फ्लू वायरल डिजीज है, जो संक्रमण से फैलती है। इसके वायरस सुअर की आंत में पनपते हैं। प्रिकॉशन ही इससे सबसे बड़ा बचाव है। जितनी हाईजीन मेनटेन की जाए, उतनी ही बचत होगी। अगर सिंप्टम नजर आते हैं और यह दो हफ्ते से ज्यादा रहते हैं, तो फौरन ही डॉक्टर को दिखाकर सलाह लेनी चाहिए।

- डॉ। संदीप श्रीवास्तव, फिजिशियन