- आईआईटी के आउटरीच ऑडिटोरियम में दिग्गज स्पीकर्स ने शेयर किये अपने विचार

- अपने क्रिएटिव व्यूज और थॉट प्रोवोकिंग आइडियाज से ऑडियंस को दिये विजनफुल मैसेजेज

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KANPUR: एक माइंड ब्लोइंग आइडिया आपके सोचने का नजरिया और जिंदगी की दिशा बदलने का माद्दा रखता है। फिर वह आइडिया किसी विज्ञापन का हो या किसी व्यक्ति विशेष का और अगर ऐसे ढेरों आइडियाज और ब्रिलिएंट स्पीकर्स से रूबरू होने का मौका आपको एक ही दिन में मिल जाए तब तो पूरी जिंदगी की दिशा और दशा ही बदलना तय है। सैटरडे को आईआईटी में ऑर्गनाइज 'टेडेक्स' इवेंट में डिफरेंट फील्ड से जुड़े फर्टाइल ब्रेन को दुनिया के लीडिंग थिंकर्स को सुनकर काफी कुछ सीखने का सबक और इनोवेटिव करने का हौसला मिला। आप भी जानिए कि अपने दिल की आवाज सुनकर कुछ लोग कैसे दुनिया के दिग्गज विचारक और महानतम विजनरीज बने? कैसे अपने काम से वह देश, समाज और आम लोगों की जिंदगी बदलने का काम कर रहे हैं

क्रिएटिव सोचना ही है मेरा काम

अभिजीत अवस्थी, एड व‌र्ल्ड

कुछ मीठा हो जाए सीट बेल्ट क्रू (मुंबई में ट्रांस जेंडर के जरिए कार चालकों को सीट बेल्ट लगाने के लिए प्रेरित करने वाला एड) लाइफ ब्वॉय से हाथ धोया क्या वाह सुनील बाबू विज्ञापन की दुनिया में तहलका मचाने वाली पंचलाइन्स अभिजीत अवस्थी ने ही लिखी हैं। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से क्99फ् में स्टडी कम्प्लीट करने के बाद कई कम्पनियों में काम किया। पर रास आई एड व‌र्ल्ड की दुनिया। शुरुआत में दिक्कत हुई, लेकिन जब पैर जमें तो बड़े-बड़े दिग्गज भी उनके टैलेंट का लोहा मानने लगे।

काम में क्रिएटििवटी जरूरी

स्टील प्लांट्स, टेक्सटाइल डिजाइन, एशियन पेंट्स, कोकाकोला जैसी दिग्गज कम्पनियों के लिए काम कर चुके अभिजीत का मानना है कि काम में क्रिएटिविटी बेहद जरूरी है। आउटरीच ऑडिटोरियम में अपनी स्पीच देते हुए उन्होंने बताया कि कई सालों तक जॉब की। यहां तक कि अपने फैमिली बिजनेस के लिए डाई तक बनाई। पर कुछ अलग करने का जुनून था। जब अपने एक दोस्त से इस बारे में चर्चा की तो उसने एड व‌र्ल्ड में जाने की सलाह दी।

मैसेजफुल एड बनाए

अपनी स्पीच में अभिजीत ने 'सीट बेल्ट क्रू' का एक एड वीडियो प्ले किया। इसमें ट्रांस जेंडर कार चालकों को सीट बेल्ट बांधने के लिए मोटीवेट करते नजर आए। एक एड में बाइक तभी स्टार्ट होती नजर आई जब राइडर ने हेलमेट पहना। वहीं रोटी पर 'लाइफ ब्वाय से हाथ धोया क्या' लिखा था। अभिजीत ने बताया कि यह मैसेजफुल एड हैं। इसका उद्देश्य सेफ ड्राइविंग और हाइजीन के लिए पब्लिक को अवेयर करना है। सबसे पहले फेविकोल का विज्ञापन दिखाया गया जिसमें दर्जनों लोग एक गाड़ी पर लदे हुए नजर आए। पर कोई गिर नहीं रहा था। पीछे लिखा था फेविकोल अभिजीत ने कहा कि यह विज्ञापन बताता है कि कैसे आप बिना कुछ कहे भी बहुत कुछ कहकर सोसाइटी को एक मैसेज दे सकते हैं।

पानी की हर बूंद बचाने के लिए संघर्षरत

आबिद सूरती, ऑर्थर एंड आर्टिस्ट

पानी की एक-एक बूंद कीमती होती है। मगर, क्या आप यकीन करेंगे कि घर का नल एक महीने तक टपके तो इसका मतलब क्00 बोतल मिनरल वॉटर गटर में चला जाना होता है। पढ़कर ताज्जुब हो रहा होगा आपको, लेकिन आंकड़े एकदम सटीक हैं। दुनिया भर में 'वॉटर वॉरियर' के नाम से मशहूर आबिद सूरती ने यह बात आई नेक्स्ट से खास तौर पर शेयर की। पानी की एक-एक बूंद बचाने के लिए संघर्षरत मुंबई निवासी आबिद आठ सालों से 'ड्रॉप डेड फाउंडेशन' चला रहे हैं। उनके मुताबिक नल से पानी टपकना, शेविंग के दौरान पानी बहाना, कम जरूरत के बावजूद पूरा नल खोलकर बर्तन-कपड़े धोना, नहाते वक्त शॉवर का इस्तेमाल, फ्लश टैंक का मिसयूज, टब में नहाकर पानी बर्बाद करना 'क्रिमिनल वेस्ट ऑफ वॉटर' है।

दो हजार स्कूली बच्चों का साथ

आबिद बताते हैं कि उनकी एनजीओ से दो स्कूलों के दो हजार स्टूडेंट्स जुड़े हैं। संस्था ने 'ड्रॉप डेड' नाम से बड़े-बड़े पोस्टर बनवाए हैं। यह बच्चे अपनी बिल्डिंग या आसपड़ोस के अपार्टमेंट में जाकर सिर्फ एक हफ्ते के लिए इन पोस्टर्स को चिपका देते हैं। वहां रहने वाले लोग घर आते-जाते इन पोस्टर्स को देखते हैं तो उनके दिमाग में मैसेज हर वक्त स्ट्राइक करता रहता है कि पानी बचाओ फिर हम लोग उस सोसाइटी में प्लम्बर के साथ जाते हैं। वहां जिनके नल भी खराब होते हैं। उन्हें फ्री ऑफ कॉस्ट ठीक करते हैं। उन्होंने कहा कि यह विडंबना ही है कि जिस देश में पानी की बहुतायत है। वहां मिनिरल वॉटर बिकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार को सिर्फ पैसे से मतलब है।

हमें खुद होना होगा अवेयर

पानी की बर्बादी कैसे रोकी जा सकती है? गंगा समेत देश की अन्य नदियों की सफाई को लेकर सरकारी योजनाओं पर फेमस आर्टिस्ट और ऑथर आबिद बोले, जब तक हम खुद अवेयर नहीं होते। तब तक कोई कंस्ट्रक्टिव बदलाव नहीं दिखेंगे। जहां तक गंगा सफाई की बात है तो सरकारी तंत्र ख्00 सालों तक उसे साफ नहीं कर सकता। पहले भी अरबो रुपए फूंक दिए गए। आगे भी यही हश्र होना है। जब तक हम खुद अवेयर नहीं होंगे, न तो नदियां साफ होंगी और न ही पानी बचेगा। देश की सभी नदियों में गुजरात की फ् नदियां भी शामिल हैं। जिनमें साबरमती सबसे गंदी है। बस उसके घाटों को साफ-सुथरा कर दिया गया है। ताजमहल यमुना के किनारे खड़ा है। खूबसूरती ताज की है, उससे यमुना का पानी साफ नहीं हुआ। ठीक वैसे ही गंगा के घाटों को साफ करने से नदी साफ नहीं होगी।

रिक्शे वालों की लाइफ बदल दी

इरफान आलम, सोशल एंटरप्रेन्योर

रिक्शा वालों की लाइफ बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे सोशल एंटरप्रेन्योर इरफान आलम ने कहा कि यूपी के सीएम अखिलेश यादव से दो बार मीटिंग की लेकिन अभी कुछ हासिल नहीं हुआ है। बेगूसराय बिहार के रहने वाले मिडिल क्लास फैमिली से सरोकार रखने वाले इरफान आलम ने बताया कि स्कूल डेज से ही कुछ अलग करने की कोशिश करता रहता था। 9वीं क्लास में था तो उस टाइम शेयर मार्केट में अपना आइडिया दिया जिसका फायदा मिला।

डिजाइन से रिक्शे के वेट कम किया

इयर ख्007 में सम्मान फाउंडेशन का गठन किया था। बिहार के रिक्शेवालों को लिए रिक्शा का न्यू डिजाइन डेवलप किया ताकि उसका वेट कम किया जा सके। सीट भी सॉफ्ट की गई ताकि पैसेंजर को समस्या न हो। हारवर्ड युनिवर्सिटी से पब्लिक पॉलिसी में मास्टर डिग्री हासिल की। इस टाइम बिहार के फ्8 जिलों में रिक्शे वालों के लिए काम किया जा रहा है। इंडिया के 80 परसेंट रिक्शा चालक यूपी और बिहार से सरोकार रखते हैं। उनकी मेहनत को कोई प्राथमिकता नहीं देता है। जब कि सोसाइटी के लिए वह की रोल निभा रहे हैं।

उनकी हर मुश्किल आसान की

रिक्शा चालकों का लाइफ स्टाइल सुधारा उन्हें ट्रेनिंग देकर बातचीत का सलीका सिखाया। इसके अलावा उन्हें आई कार्ड दिया। इंश्योरेंस, बच्चों के एडमिशन का अरेजमेंट करने में उनकी टीम पूरी तरह से शामिल रहती है। जिन्हें आटो रिक्शा चाहिए उन्हें उसकी व्यवस्था करा दी जो माल के सामने आइसक्रीम का ठेला लगाना चाहते हैं उनकी भी व्यवस्था करा दी गई। अब बिहार गवर्नमेंट ने कोऑपरेटिव रजिस्ट्रेशन शुरू करा दिया है जिससे उन्हें बहुत आसानी हो गई है।

कोर टीम में क्भ् मेंबर्स

इरफान आलम की कोर टीम में करीब क्भ् मेंबर्स हैं जो कि पूरी तरह से सक्रिय हैं। इस टीम हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से डिग्री ले चुके दोस्त, आईआईटियन और आईआईएम से डिग्री हासिल करने वाले शामिल हैं। उनकी कोशिश होती है कि यूथ को ज्यादा से ज्यादा कनेक्ट किया जाए ताकि इसका फायदा उन्हें लंबे समय तक मिल सके।

अभी मंजिल नहीं मिली

दीपेन्द्र मनोचा, मैनेजिंग ट्रस्टी, सक्षम ट्रस्ट

नेत्रहीनों के लिए कुछ अलग से कर गुजरने का जो जज्बा दीपेन्द्र मनोचा ने देखा था। इस जज्बे ने उन्हें पीएचडी नहीं करने दी और पढ़ाई छोड़कर नेत्रहीनों के लिए टेक्निोलॉजिकल सल्यूशन देने की तरफ काम करने लगे। उनका सपना था कि नेत्रहीन अपना पढ़ाई लिखाई खुद करना सीख जाएं। उन्हें किसी की मदद की दरकार न हो। हालांकि अभी भी मंजिल उन्हें नहीं मिली लेकिन उन्होंने हार भी नहीं मानी है।

हिन्दी में टेक्नोलाॅजी मिल गई

दिल्ली यूनिवर्सिटी से यूजी और पीजी करने के बाद म्यूजिक में पीएचडी के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले दीपेन्द्र मनोचा ने बताया कि इयर क्99ख् में वह नेत्रहीनों के लिए टेक्नोलॉजी की मदद देने के काम में जुट गए। कम्प्यूटर में जो स्पीच सिस्टम आया उससे काफी मदद मिली है। लेकिन हिन्दी को छोड़कर ज्यादातर लैंग्वेज में अभी टेक्नोलॉजी की जरूरत है। अमेरिका और यूके में ही नेत्रहीनों के लिए टेक्नोलॉजी डेवलप की है जिसका उन्हें फायदा मिल रहा है।

इंडिया में भ्फ् लाख नेत्रहीन

इंडिया में करीब भ्फ् लाख लोग नेत्रहीन हैं। जिसमें फ्भ् लाख नेत्रहीन यूथ हैं। यह किसी तरह से यूजी और पीजी की डिग्री हासिल कर लेते हैं लेकिन जॉब के लिए जो नॉलेज चाहिए वह नहीं होती है। जिसके लिए उन्हें अलग से ट्रेनिंग दिलाई जाती है। सक्षम ट्रस्ट का गठन इयर ख्00फ् में किया था। इसके माध्यम से करीब 8 हजार नेत्रहीनों को टेक्नोलॉजिकल सल्यूशन उपलब्ध कराया जाता है। स्मार्ट केन, मोबाइल फोन, टॉकिंग वाले कम्प्यूटर से मदद की जा रही है। अब डिजिटल बुक्स पर फोकस किया जा रहा है।

एक्सप्रेशन इज ए पॉवरफुल स्पीच

पदमश्री निरंजन गोस्वामी, पेंटोमाइम आर्टिस्ट

अपने देश में माइम (मूक अभिनय) को प्रचलित करने और उसके ढेरों आर्टिस्ट पैदा करने का श्रेय जाता है, मल्टी अवार्ड विनर और पेंटोमाइम आर्टिस्ट पदमश्री निरंजन गोस्वामी का। लगातार ख्9 सालों से इस फील्ड में अपनी जिंदगी का बहुमूल्य समय देने की वजह से उन्हें देश में माइम आर्ट का संरक्षक भी कहा जाता है।

हॉबी बन गया प्रोफेशन

जिंदगी का शौक प्रोफेशन बन जाएगा, निरंजन गोस्वामी ने कभी सोचा भी न था। उन्होंने बताया कि शुरुआत में कोई इसके बारे में जानता भी न था। यह आर्ट यूरोपियन कंट्रीज में काफी पॉपुलर है। अगर कोई कहता है कि यह उसकी कॉपी है तो ठीक है। मुझे यह काफी अच्छी लगी। क्योंकि इसमें बिना कुछ कहे काफी कुछ कहा जाता है। यह देखने में जितना आसान लगता है, हकीकत में उससे कई गुना ज्यादा टफ है। धीरे-धीरे यह आर्ट इतनी ज्यादा अच्छी लगने लगी कि मैंने इसे अपना प्रोफेशन ही बना लिया।

इंडियन माइम थियेटर के जनक

निरंजन गोस्वामी की प्रतिभा को देखकर ही क्97म् में गवर्नमेंट ने उन्हें स्कॉलरशिप दी। इसके बाद वह देश के पहले 'इंडियन माइम थियेटर' के फाउंडर मेम्बर बने। इस आर्ट की बढ़ती पॉपुलेरिटी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि अब इससे सैकड़ों आर्टिस्ट जुड़ चुके हैं। सोशल प्रॉब्लम्स, सॉफ्ट मूवीज और आइडियाज के जरिए हम आर्टिस्ट सोसाइटी को अवेयर भी करते हैं। जिससे समाज का भला हो सके।

आनंद पटवर्धन, इंडियन डॉक्युमेंट्री िफल्म मेकर

सोशियो-पॉलिटिकल, ह्यूमन राइट्स ओरियंटेड फिल्म मेकर्स के रूप में आनंद पटवर्धन का नाम देश के दिग्गज डॉक्युमेंट्री फिल्म मेकर के रूप में जाना जाता है। आईआईटी में स्पीच के दौरान उनकी सोच की झलक भी दिखी। जब उन्होंने दुनिया में जेहाद को बढ़ावा देने के पीछे अमेरिका को बड़ी वजह बताया।

तेल और पानी की लड़ाई

आई नेक्स्ट से बातचीत में आनंद पटवर्धन ने बताया कि दुनिया में तेल और पानी तेजी से कम हो रहा है। अमेरिका यह बात अच्छी तरह जानता है। इसीलिए ऑयल कंट्रीज पर हमला और आतंक फैलाने का काम अमेरिका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कर रहा है। बिन लादेन जैसे आतंकियों को पैदा करने के पीछे बड़ी वजह अमेरिका ही रहा। हथियारों का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर अमेरिका इसी का खामियाजा भी समय-समय पर भुगतता रहता है।

पाकिस्तान का हश्र इंडिया के लिए सबक

बॉम्बे : अवर सिटी, इन मैमोरी ऑफ फ्रेंड्स, इन द नेम ऑफ गॉड, ए नर्मदा डायरी, वॉर एंड पीस जैसी नेशनल और इंटरनेशनल अवार्ड विनर मूवीज बना चुके पटवर्धन बोले कि अमेरिका भारत का वही हाल करने की कोशिश कर रहा है जोकि वह पाकिस्तान के साथ कर चुका है। एफडीआई समेत दूसरी सुविधाओं के नाम पर अमेरिका भारत को फाइनेंशियली अपनी गिरफ्त में ले रहा है। उन्होंने स्लाइड शो के माध्यम से ऑडियंस को बताया कि अगर हमारे देश की सरकार वक्त पर नहीं चेती तो हमारा भी वही हाल होगा जो पाकिस्तान का हुआ।

सिस्टम का मोहताज नहीं बनना

अमित देशवाल, फाउंडर, सेंटर फॉर लर्निग

आईआईटी से बीटेक कम्प्लीट करने के बाद लाखों का पैकेज छोड़ने का माद्दा हर किसी के बस की बात नहीं होती। पर फॉर्मर आईआईटीयन अमित देशवाल ने यह जज्बा न सिर्फ दिखाया। बल्कि, उसे निभाकर भी दिखाया। आज वह सेंटर फॉर लर्निग के फाउंडर हैं, जो शिक्षा से दूर बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं।

सिस्टम पर डिपेंडेंट नहीं

क्या देश में एजुकेशन का जो पैटर्न है, वही अंतिम और स्टैंडर्ड है? अपनी स्पीच में देश के एजुकेशन सिस्टम पर कटाक्ष करते हुए अमित ने कहा कि यहां का सिस्टम लोगों को ऐसा बना देता है कि सिस्टम के अंदर सवाल पूछो सिस्टम पर सवाल न उठाओ। यह रट्टू तोता बनाता है। न कि इंसान को फ्री होकर सोचने की आजादी देता है। इसी सोच के साथ मैंने सेंटर फॉर लर्निग सेटअप किया। जहां बच्चों को उनके हिसाब से पढ़ाया जाता है।

कोई जबर्दस्ती नहीं बच्चों से

टेडेक्स में बोलते हुए अमित ने अपनी जिंदगी से जुड़ी ढ़ेर सारे वाक्ये भी शेयर किये। उन्होंने कहा कि इंसान अपनी लाइफ, फ्रेंड्स और अपने आसपास के लोगों से जिंदगी को बेहतर ढंग से जीने का तरीका सीखता है। हम लोग अपनी संस्था के माध्यम से बच्चों को कुछ यही सिखाते हैं। जिससे उन पर वह सबकुछ सीखने का दबाव न हो, जिसे वह सीखना ही नहीं चाहते।