पोर्ट के साथ विकसित होगा एक विशेष आर्थिक क्षेत्र
भारत चाबहार पोर्ट के साथ एक विशेष आर्थिक क्षेत्र भी विकसित करना चाहता है। कुछ दिन पहले ही सड़क, राजमार्ग और जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि भारत की योजना चाबहार में कुल दो लाख करोड़ रुपये निवेश करने की है। इसके लिए भारत की कई निजी कंपनियों के साथ बात की जा रही है। भारत वहां एक एलएनजी टर्मिनल और एक यूरिया प्लांट भी लगाना चाहता है।
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भारत के लिए कई लिहाज से अहम
चाबहार बंदरगाह बनने के बाद समुद्री रास्ते से होते हुए भारत के जहाज ईरान में दाखिल हो जाएंगे। इसके जरिये अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक के बाजार भारतीय कंपनियों और कारोबारियों के लिए खुल जाएंगे। इसलिए चाबहार पोर्ट व्यापार और सामरिक लिहाज से भारत के लिए काफी अहम है। भारत की नजर इसके जरिये अपने उत्पादों के लिए यूरोपीय देशों के बाजार में जगह बनाने पर भी है।
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बंदरगाह से भारत की सामरिक मदद भी
-अरब सागर में पाकिस्तान ने ग्वादर बंदरगाह के विकास के जरिये चीन को भारत के खिलाफ बड़ा सामरिक ठिकाना मुहैया कराया है।
-चाबहार के विकसित होते ही भारत को अफगानिस्तान और ईरान के लिए समुद्री रास्ते से व्यापार-कारोबार बढ़ाने का मौका मिलेगा।
-सामरिक नजरिये से भी पाकिस्तान और चीन को करारा जवाब मिल सकेगा, क्योंकि चाबहार से ग्वादर की दूरी महज 72 किलोमीटर है।
-पाकिस्तानी मीडिया पहले से शोर मचा रहा है कि चाबहार के जरिये भारत अफगानिस्तान और ईरान से मिलकर उसे घेरने में जुटा है।
सड़क, रेल नेटवर्क पर होगा काम तेज
भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच मंत्री स्तरीय वार्ता भी हुई और चाबहार के विकास की आगे की रणनीति पर सहमति बनी। यह भी सहमति बनी है कि चाबहार पोर्ट के संचालन के लिए इससे संबंधित कानूनों को तीनों देश जल्द से जल्द पारित करेंगे। पोर्ट से जुड़े सड़क और रेल नेटवर्क का काम भी तेजी से शुरू किया जाएगा। चाबहार पोर्ट के दूसरे चरण का काम और तेज किया जाएगा। माना जा रहा है कि भारत जल्द ही चाबहार पोर्ट के दूसरे चरण के लिए वित्तीय मदद का एलान करेगा। पहले चरण के लिए भारत ने 50 करोड़ डॉलर की मदद दी है।
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सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है चाबहार बंदरगाह
चाबहार दक्षिण पूर्व ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित एक बंदरगाह है। फारस की खाड़ी के बाहर बसे इस बंदरगाह तक भारत के पश्चिमी समुद्री तट से पहुंचना आसान है। इस बंदरगाह के जरिये भारतीय सामान के ट्रांसपोर्ट का खर्च और समय एक तिहाई कम हो जाएगा। भारत इसके जरिये अफगानिस्तान के लिए रास्ता बनाएगा। बताते चलें कि अफगानिस्तान की कोई सीमा समुद्र से नहीं मिलती है।
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