आपने इंडियन एजूकेशन सेक्टर में क्या बदलाव महसूस किया है?

अब पहले के मुकाबले स्टूडेंटस के पास कहीं ज्यादा इंफार्मेशन है। आज जितनी इंफार्मेशन की कल्पना भी दो दशक पहले नहीं की जा सकती थी। अगर मैं अपनी ही बात करूं तो 1977 में जब हाईस्कूल का एग्जाम दे रहा था, तब आईआईटी के बारे में मेरे पास इतनी जानकारी नहीं थी। तब किसी इंजीनियर का विदेश जाना अनकॉमन बात थी। आज कॉस्ट ऑफ एजूकेशन और घर से दूरी किसी स्टूडेंट के लिए बैरियर का काम नहीं करते। सबसे बड़ा बदलाव इंफार्मेशन की अवेलिबिलिटी है जिसके चलते डिसीजन लेना आसान हो गया है। आज का स्टूडेंट

ज्यादा डिसाइसिव है।

इस दौरान टीचर-स्टूडेंट और पैरेंट-चाइल्ड रिलेशनशिप में किस तरह का बदलाव आया है?

स्टूडेंट के पास एक गोल होता है जिस तक पहुंचाने में टीचर उसकी मदद कर रहा होता है। यहां स्टूडेंट अपनी बात रखता है। यहां कुछ भी जबरदस्ती लादा नहीं जा सकता। इंडियन स्कूल एजूकेशन में अभी उस तरह का बदलाव देखने को नहीं मिला है। अगर पैरेंट-चाइल्ड रिलेशनशिप की बात करें तो बच्चे पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा इंडिपेंडेंट हैं।

आपकी नजर में इंडियन इंटेलीजेंस टेस्ट की क्या सिग्निफिकेंस है और बंसल क्लासेस ने इसके साथ जुडऩे का फैसला क्यों किया?

किसी बच्चे की परफार्मेंस नेशनल लेवल पर जज हो रही होगी। उसे मालूम होगा कि वह कहां स्टैंड करता है। जिसके आधार पर उसके लिए करियर चुनना आसान होगा। ऐसे कई एग्जामिनेशन होते हैं, लेकिन यहां आईआईटी बीएचयू जैसी ऑर्गनाइजेशंस शामिल हैं जो एक अनबायस्ड सिस्टम क्रिएट कर रही हैं। जिसकी मदद से आप समझ पाएंगे ईश्वर ने आपको जो नॉलेज दी है उसका किन एरियाज में इस्तेमाल कर सकते हैं। किसी भी स्टूडेंट के पास अनबायस्ड ओपिनियन होगा। जहां तक बंसल क्लासेस के जुडऩे की बात है तो हम एजूकेशन सेक्टर में लंबे समय से हैं। हमें लगा हमारे पास 30 साल का जो अनुभव है, उसे शेयर करना चाहिए। हमने इसकी फिलॉसफी को समझा।

आपकी नजर में यह बेहतर डिसीजन लेने में स्टूडेंटस और पैरेंटस की किस तरह मदद करेगा?

जब बच्चा कांपटीटिव एग्जाम की तैयारी कर रहा होता है, तो पैरेंट्स फैसीलिटेटर के रोल में होते हैं। उसी तरह यह टेस्ट भी है। सही या अच्छी जानकारी फैसले लेना आसान बनाती है।

क्या यह टेस्ट सिर्फ सही करियर चुनने के बारे में है?

क्या होता अगर सचिन तेंदुलकर क्रिकेट नहीं खेलते या लता मंगेशकर गाना नहीं गातीं? ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिन्हें अपनी क्षमताओं का अंदाजा नहीं होता। उन्हें मालूम नहीं होता कि वह कहां पहुंच सकते हैं। एक उदाहरण लेते हैं। मैं इंजीनियर बनना चाहता हूं लेकिन मेरी मैथ्स कमजोर है। यह टेस्ट कहीं न कहीं एबिलिटी और रियलिटी के बीच का जो अंतर है उसे दूर करने में मददगार होगा।

आप बंसल क्लासेज के सफर को किस तरह से देखते हैं?

जब हमने शुरुआत की और पहला बच्चा पढऩे आया, तब से हमने कुछ चीजों का ध्यान रखा है। पैरेंटस, फ्रेंडस, सोसाइटी हर किसी की अपनी एक्सपेक्टेशंस होती हैं। हमने उनको जगह दी है। आज हम जहां हैं वहां पहुचंने में तीस साल लगे सिर्फ इसलिए कि क्वालिटी से समझौता नहीं किया। अगर कोई स्टूडेंट हमारे पास आता है तो हम उसकी कामयाबी में योगदान देना चाहते हैं। अगर किसी स्टूडेंट के पास पैसा है तो ऐसा नहीं कि वह हमारे नॉम्र्स नहीं फॉलो करेगा। हम ऑनेस्टी इज द बेस्ट प्रैक्टिस पर यकीन करते हैं।

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