ई-कॉमर्स की दुनिया में भारत का नाम काफी आगे आ चुका है। कई विदेशी कंपनियां इस नए बाज़ार में अपने हाथ आजमाने में लगी हैं। 'जबोंग' इनमें से वो कंपनी है जिसने अभी-अभी इस ई-बाज़ार में कदम रखा है और करीब 50 हजार उत्पाद बेच चुका है। ये कंपनी जूते से लेकर छोटे मोटे चाकू-छुरी जैसे औजार तक बनाती है।

कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरुण मोहन का कहना है कि ऑन लाइन खरीदारी करने वालों में छोटे शहरों के लोग भी शामिल हैं। अरुण मोहन का कहना है कि आधे से ज्यादा ग्राहक छोटे शहरों के ही होते हैं।

बस एक 'क्लिक'

भारतीय खरीदारों के लिए इससे बेहतर क्या हो सकता है कि एक क्लिक के साथ मनचाही खरीदारी हो जाए। यहां तक कि किसी भी वेबसाइट पर जाना भी अब काफी आसान हो गया है। मोबाइल पर इंटरनेट उपलब्ध हो तो पलक झपकते आपके सामने ई-शॉपिंग की भरमार लग सकती है.mobile

शोधकर्ता कंपनी ‘कॉमस्कोर’ का दावा है कि यात्रा से संबंधित वेबसाइट सबसे ज्यादा इस्तेमाल में लाई जाती है। कंपनी का कहना है कि हर पांच में से एक शख्स जो वेब का इस्तेमाल करता है वो भारतीय रेलवे टिकट वेबसाइट का अवश्य इस्तेमाल कर रहा होता है।

जबकि, रिटेल वेबसाइट की तरफ सबसे ज्यादा आकर्षित होते हैं युवा। कपड़ों से लेकर जूते खरीदने तक युवा इन वेबसाइटों पर जाते हैं।

हालांकि फिलहाल एक करोड़ लोग ही इन वेबसाइट पर जाकर खरीदारी करने में सक्रिय हैं जबकि, इस उद्योग जगत के लोगों का अनुमान है कि करीब 10 करोड़ उपभोक्ता वेब पर पैसे खर्च करने को तैयार हैं। लेकिन इन्हें खरीदारी के लिए तैयार कर पाना उतना आसान नहीं है। बाज़ार विशेषज्ञ इसके लिए ख़राब संरचना और संचालन को सबसे बड़ी दिक्कत मानते हैं।

मुनाफे को कब तक झुठलाएंगी कंपनियां

'जबोंग' जैसी कंपनियां एक 'मॉडल' पर काम करती हैं जिसके तहत कंपनी उत्पाद खरीदती है, उसे अपने स्टोर में रखती है और फिर ऐसा मान कर चलती हैं कि उपभोक्ता उनसे सामान खरीदेंगे। जबकि इस स्थिति में कंपनी पर अतिरिक्त बोझ आ जाता है।

जबकि, कई दूसरी कंपनियों का सूत्र ये है कि वो ऑनलाइन मांग को देखते हैं उत्पाद मंगाते हैं और उसे उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराते हैं। ऐसे में मांग और पूर्ति की समय सीमा लंबी होती है।

इंडिया प्लाजा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के वेतिस्वरण कहते हैं, "अब तक सभी निवेशक जो आते हैं और ज्यादा से ज्यादा इस नए बाजार में पैसे लगाते हैं वो यही कहते हैं कि बिक्री ज्यादा हो लेकिन मुनाफे को नज़रअंदाज़ करते हैं, जबकि अचानक इन लोगों ने ये महसूस करना शुरू किया है कि उन्हें अच्छे लाभ नहीं मिल रहे.

उनका कहना है कि उनकी कंपनी इतने लंबे समय तक इसलिए टिकी हुई है क्योंकि उन्होंने उत्पादों की कीमत कम रखी है। उनकी कंपनी, 1999 में शुरू हुई थी तब भारत में सिर्फ 30 लाख लोग ही इंटरनेट का इस्तेमाल करते थे जिसमें केवल 20,000 लोग ही ऑनलाइन शॉपिंग करते थे। जबकि, इस समय इंटरनेट मार्केटिंग की दुनिया में भारत का तीसरा स्थान है।

गूगल इंडिया के प्रबंध निदेशक राजन आनंदन के मुताबिक 13 करोड़ 70 लाख इंटरनेट यूजर्स भारत में हैं जिनमें सिर्फ ढाई करोड़ लोग ही ऑनलाइन लेन-देन में हिस्सा लेते हैं। जबकि चीन में 18 करोड़ लोग ऑनलाइन लेन-देन करते हैं।

ऑनलाइन पैसे ख़र्च

गूगल इंडिया का कहना है कि भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है लेकिन इन्हें ऑनलाइन पैसे खर्च करने के लिए तैयार करना कठिन काम है। ऐसे में उपाय यही है कि उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन दिया जाए, छूट दी जाए, गिफ्ट दिए जाएं।

भारत में पूंजी लगा रहे निवेशकों के लिए एक और मुसीबत ये भी है कि यहां पर ज्यादातर खरीदार क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल नहीं करते और सामान की डिलीवरी के बाद ही भुगतान करते है।

वहीं, भारत की सबसे अधिक चलने वाली ऑनलाइन कंपंनी फ्लिपकार्ट हर मिनट 20 उत्पाद बेच लेता है। लेकिन इसके बावजूद सच्चाई यही है कि कोई कंपनी अभी तक मुनाफा नहीं कमा रही।

‘टेक्नोपैक’ ने भविष्वाणी की है कि 2020 तक ई-कॉमर्स का बाज़ार 70 अरब डॉलर को छू जाएगा। लेकिन चिंता बरकरार रहेगी क्योंकि, अब तक कोई कंपनी मुनाफा नहीं कमा रही है।

International News inextlive from World News Desk