- प्रिंसिपल के दौरे में चकाचक मिली व्यवस्था, लेकिन कुछ ही देर बाद स्ट्रेचर नहीं मिलने से घायल ने इमरजेंसी गेट पर ही दम तोड़ दिया

-सिपाही की फुर्ती से बच गई दूसरे घायल की जान, स्ट्रेचर के लिए भटके तीमारदार, ठंड का असर

- ठेके पर रखे कर्मचारी थे गायब, एसआईसी ने दी ठेकेदार को हटाने की चेतावनी

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KANPUR: हैलट की व्यवस्थाओं के बारे में सब जानते हैं, लेकिन जब मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल की विजिट में सब ओके हो और उसके कुछ ही देर बाद एक घायल युवक की इमरजेंसी गेट पर स्ट्रेचर नहीं मिलने से मौत हो जाए तो आप क्या कहेंगे. मंडे को हैलट इमरजेंसी में यही हुआ. जहां मंधना से घायल हालत में आए दो लोगों को काफी देर तक स्ट्रेचर नहीं मिली. जिसकी वजह से एक की मौत हो गई, वहीं दूसरा युवक उन्हें लाने वाले सिपाही की फुर्ती से बच गया. वैसे इस घटना के समय कागजों पर म् वार्ड ब्वॉय और स्ट्रेचर भी मौजूद थी. फिर भी घायल इमरजेंसी गेट के बाहर इतनी देर तक तड़पता रहा. वहीं अब इस मामले में एसआईसी ठेकेदार पर कार्रवाई करने की बात कह रहे हैं.

मंधना में सिटी बस से टकराकर घायल हुए थे दाेनों युवक

मंडे को लगभग क्ख् बजे नानकारी के अजय और मुकेश नारामऊ के पास सिटी बस से टकरा कर घायल हो गए थे. उस वक्त दोनों की सांसे चल रही थीं. जिस पर बिठूर थाने का सिपाही यशवंत सिंह दोनों को एक लोडर में लाद कर सीधे हैलट इमरजेंसी ले गया, लेकिन उसके बाद जो हुआ वह हादसे से भी ज्यादा दर्दनाक और शमर्1नाक था.

न वार्ड ब्वॉय मिला न स्ट्रेचर, और थम गई मुकेश की सांसें

जिस समय सिपाही दोनों को लेकर हैलट इमरजेंसी पहुंचा उस समय वार्ड ब्वॉय के हाजिरी रजिस्टर के मुताबिक रवींद्र, सुधीर, श्रवन कुमार, मनीश तिवारी, धीरेंद्र और शुभम वर्मा डयूटी पर थे. यशवंत सिंह काफी देर तक स्ट्रेचर और कर्मचारियों को तलाशता रहा, लेकिन उसे कोई नहीं मिला. इस बीच भीषण ठंड में घायल अजय और मुकेश खुले लोडर में ही पड़े तड़पते रहे. पीआरओ ज्ञानेंद्र भी स्ट्रेचर तलाशते रहे, लेकिन उन्हें भी नहीं मिला. जिसके बाद सिपाही खुद अजय को लेकर अंदर पहुंचा. जबकि मुकेश की सांसे स्ट्रेचर का इंतजार करते-करते थम गई.

कुछ देर पहले प्रिंसिपल को सब ठीक मिला था

जिस समय मुकेश की स्ट्रेचर के इंतजार में जान चली गई, उससे कुछ देर पहले ही प्रिंसिपल डॉ. नवनीत कुमार ने इमरजेंसी का दौरा किया था. उन्हें उस समय सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त मिली थीं, लेकिन इसे ज्यादा पेशेंट्स का बोझ कहें या व्यवस्था की हकीकत कहें कि उनके जाने के आधे घंटे के दौरान ही घायल मुकेश को स्ट्रेचर नहीं मिलने की वजह से उसकी मौत हो गई.

स्ट्रेचर से हो रही थी रिपेयरिंग

ऐसा नहीं है कि जब मुकेश इमरजेंसी आया उस समय वहां पर कोई स्ट्रेचर मौजूद नहीं थी. इमरजेंसी के अंदर ईएमओ ऑफिस के ठीक सामने ही हैलट का मेंटीनेंस करने वाले कर्मचारी स्ट्रेचर पर अपना सामान रख कर खराब लाइटें बदल रहे थे. उन लोगों से जब स्ट्रेचर देने के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा कि ये इमरजेंसी की स्ट्रेचर नहीं है. इसमें तो हम सामान रख कर लाए हैं.

आउटसोर्सिग व्यवस्था की हकीकत

हैलट में आउटसोर्सिग के जरिए कर्मचारियों को संविदा पर रखा गया है. इसका ठेका भूपेंद्र सिंह के पास है. कागजों पर फ्भ् वार्ड ब्वॉय और सफाई कर्मचारी काम कर रहे हैं. इमरजेंसी में भी तीन शिफ्टों में म्-म् संविदा कर्मियों की तैनाती की जाती है. वैसे यह सब कागजों पर ही होता है और इसे चेक करने की जिम्मेदारी ईएमओ और पीआरओ की है, लेकिन सभी कर्मचारी मौजूद रहते हैं या नहीं इसकी हकीकत मंडे को इस घटनाक्रम के बाद सामने आ गई.

'आउटसोर्सिग पर कर्मचारी काम कर रहे हैं या नहीं यह चेक करना ईएमओ और पीआरओ की जिम्मेदारी है. डयूटी के दौरान संविदाकर्मियों को ड्रेस और आईकार्ड पहनने के आदेश काफी पहले दिए गए थे, लेकिन ठेकेदार ने आज तक इस पर कुछ नहीं किया है. उसे चेतावनी दी गई है कि अगर व्यवस्था फौरन ठीक नहीं की गई तो उसका ठेका निरस्त कर दिया जाएगा.'

- डॉ. आरसी गुप्ता, एसआईसी, एलएलआर हॉस्पिटल