आईएनएस कलवारी की ये हैं खासियतें

आईएनएस कलवारी इंडियन नेवीमें शामिल पहली समबरीन होगी जो डीजल-इलेक्ट्रिक वाली है। यह इंडियन नेवीके प्रोजेक्ट -75 के तहत मुंबई में माजगॉन डॉक लिमिटेड एमडीएलद्वारा फ्रैंच नौसैनिक रक्षा और ऊर्जा कंपनी डीसीएनएस द्वारा तैयार की गई है। आईएनएस कलवारी का नाम खतरनाक टाइगर शार्क के नाम पर रखा गया है। ये शार्क हिंद महासागर में घातक गहरे समुद्र शिकारी के रूप में जानी जाती हैं। स्कार्पीन स्तर की इस पनडुब्बी में उच्च स्तरीय घातक हथियार लगाए गए हैं। यह पनडुब्बी जरा भी आवाज नहीं करती। इसकी खासियत यह है कि डीजल और बिजली से चलने वाली यह सबमरीन मिसाइल और माइंस लेकर चल सकती है। इसका आकार हाइड्रो-डायनामिक है। इसकी स्पीड करीब 40 किलोमीटर प्रति घंटा के हिसाब से है।

समुद्र में दुश्‍मनों को पानी न मांगने देगी ये ins कलवारी,ऐसे शुरू हुआ था इंड‍ियन नेवी का सबमरीन सफर

यहां पढ़ें इंडियन नेवी का पहला सबमरीन सफर

एचएमएस डॉल्फिन पर दी गई थी ट्रेनिंग

इंडियन नेवी को समबरीन के लिए ट्रेंड करने के लिए यूके की एचएमएस डॉल्फिन बेस का इस्तेमाल हुआ था। 1962 में इस पर ही नेवी के पहले ग्रुप को ट्रेनिंग दी गई थी।  

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पहली समबरीन आईएनएस कलवारी

वहीं भारत में ट्रेनिंग पीरियड के 5 साल बाद पहली समबरीन आईएनएस कलवारी 8 दिसंबर 1967 में शुरू हुई थी। कलवारी इंडियन नेवीकी पहली पनडुब्बी भी थी।

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1971 के वॉर ऑपरेशन में शामिल हुईं

वहीं अगर 1971 के वॉर ऑपरेशन में भाग लेने वाली सबमरीन के बारे में बात करें तो आईएनएस करंज, आईएनएस कुरसुरा, आईएनएस खंडेरी आदि शामिल रही हैं।

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न्यूक्लियर पॉवर वाली पहली सबमरीन

इंडियन नेवी में न्यूक्लियर पॉवर वाली पहली सबमरीन के रूप में 1988 में आईएनएस चक्र शामिल हुई थी। यह सबमरीन छुपकर दुश्मनों पर अटैक करने में एक्सपर्ट थी।

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नेवी में मिसाइल वाली पहली समबरीन

इंडियन नेवी में मिसाइल वाली पहली समबरीन जुलाई 2000 में आईएनएस सिंधुशस्त्र शामिल हुई थी। सिंधुशस्त्र से रूसी तट पर 22 जून 2000 को मिसाइल छोड़ी गई थी।

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