LUCKNOW: एक कलाकार के लिए उसका अभिनय उसकी जिंदगी होगा। मूवी कैसी भी हो, अभिनय में जान डालने के लिए कलाकार अपना सौ प्रतिशत देता है। फिर चाहे वह फिल्म का नायक हो या खलनायक। जहां तक लोगों ने मुझे नायक, सहनायक से ज्यादा खलनायक में ज्यादा पसंद किया। किरदार संघर्ष में निभाया वह दुश्मन से अलग था और दुश्मन का किरदार बादल से जुदा था। मैं कभी किरदारों की पुर्नवृत्ति नहीं चाहता हूं। भले ही मेरे करियर की गति धीमी चली हो लेकिन दिशा सही रही है और सही दिशा में चलना ही उचित मानता हूं। अभिनय से निर्देशन में आने सवाल पर आशुतोष ने सीधा जवाब दिया कि मैं एक बहुत अच्छा मजदूर हूं अच्छा आर्किटेक्ट नहीं। मैं मेहनत कर सकता हूं लेकिन नक्शा नहीं बना सकता।

आज भी होता हूं नर्वस

आशुतोष कहते भी हैं कि आज भी कदम-कदम पर धर्मनिरपेक्ष लोग मौजूद हैं इसीलिए देश की अखंडता बनी हुई है। ऐसे रोल करने लगता है कि मैं समाज के प्रति कुछ जिम्मेदारी का निर्वाहन क र रहा हूं। मील के पत्थर पर नहीं मंजिल पर नजर पर्दे पर नायाब और कभी न भूलने वाले किरदारों को चरितार्थ करने वाले आशुतोष राणा आज भी नर्वस होते हैं। टेक से पहले कई बार सोचते हैं। साथ ही यह भी कहते हैं कि करियर में कहां पहुंचा हूं अभी नहीं कह सकता हूं क्योंकि मैं तो अभी सफर में हूं। वैसे मैं मील के पत्थर पर नहीं मंजिल पर पहुंचने में यकीन करता हूं। जहां तक काम की बात है तो संतुष्टि से अधिक खुशी ढूंढता हूं। जिस काम करने के बाद और पहले खुशी मिलती है वहीं सच्चा फल है।

ये तो राजनीति का मंच है

लखनऊ सिर्फ उत्तर प्रदेश की राजधानी नहीं है बल्कि यह शहर राजनीति की भी राजधानी है। यहां से लोग राजनीति का ककहरा पढ़ने के साथ देश में सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। यहां विचारक, उद्धारक, सुधारक, प्रचारक सभी तो हैं।