- पोस्टलपार्क के बंगाली टोला में अगर कोई हादसा हो तो कौन लेगा इसकी जिम्मेवारी

- बोरवेल में गिर रहे बच्चे और खुले पड़े हैं राजधानी के कई एरिया के मैनहोल

- निगम से कई बार की गई शिकायत का भी नहीं हो रहा कोई असर

PATNA : बोरवेल में बच्ची बबिता की मौत हो गई। इस घटना ने कई सवाल उठाए। बड़ा सवाल ये भी उठा कि राजधानी में कई मैनहोल तैयार हैं ऐसे कई बच्चों को मौत के आगोश में सुलाने के लिए। आई नेक्स्ट ने देखा पोस्टल पार्क के बंगाली टोले में ब्0 कदम की दूरी पर चार मैनहोल खुले हैं।

बारिश के मौसम में ऐसी हालत

बारिश में सड़क जब डूब जाती है तब खुले मैनहोल में लोग खूब गिरते हैं और हड्डियां भी टूटती हैं। लेकिन निगम को इससे क्या फर्क पड़ता है। ये मैनहोल पिछले दो-ढाई वर्षो से खुले हैं। इसका ढक्कन पास में ही पड़ा है, लेकिन ढक्कन का साइज गड़बड़ है इसलिए इसे लगाया ही नहीं गया। सिस्टम के ढक्कनगिरी की हद है।

खुले मेनहोल और खतरा की सिग्नल तक नहीं

इन मैनहोल के पास से हर समय बच्चे गुजरते रहते हैं। दोपहर में भी कई बच्चे इधर से गुजरते दिखे। लोग बाग भी गुजरते दिखे। एक भी मैनहोल में सतर्कता के लिए कुछ नहीं लगा है। ना बांस ना लाल झंडा और न ही ऐसा कुछ और। निगम की ओर से जैसे कहा जा रहा हो, मैनहोल में आपका स्वागत है आइए।

कम से कम क्0 मैनहोल खुले हैं यहां

बंगाली टोला वार्ड नंबर फ्0 के राम इकबाल चौक से आगे बढ़ने पर भी कई मैनहोल खुले मिले। इस रोड में कम से कम क्0 मैनहोल खुले हैं। चार तो सीरिज में खुले हैं। ब्0 कदम पर चार मैनहोल खुले। ये पटना के महज एक मुहल्ले का हाल है। ऐसे कई मुहल्ले हैं जहां कब मैनहोल में बच्चे गिर जाएं कहना मुश्किल है।

कैसे हुई ये गड़बड़ी

ये मैनहोल ढक्कन घोटाला तो नहीं। मैनहोल के पास पडे़ उसके ढक्कन तो यही सवाल कर रहे हैं। जब साइज से मैनहोल बना। ढक्कन भी बने तो फिर छोटा-बड़ा कैसे हो गया। क्या सिस्टम है। राजधानी के लोगों को मारने की कैसी तैयारी है। मुख्यमंत्री आवास के पास से गुजरिए या राजभवन के पास वाली सड़क या सेक्रेटेरिएट के पास से। शहर के इन हिस्सों में सिस्टम की ये आवारगी आपको नहीं दिखेगी। ये आवारगी तो आम लोंगों के लिए है। आखिर मरता है किसका बच्चा? उधर सब चकाचक है इधर मैनहोल खुले हैं। इतनी घटनाएं घटती हैं किसी से कोई सीख ही नहीं ली जाती।

दो-तीन वर्षो से ये मैनहोल खुले हैं। नगर निगम में इंस्पेक्टर झड़कदेव यादव से फोन पर बात भी मेरी हुई। उन्होंने कहा कि टेंडरिंग की प्रक्रिया चल रही है। गजब की बात तो ये कि निगम में कोई लिखित शिकायत लेने को तैयार नहीं है। हमेशा मैनहोल में गाडि़यां फंस जाती हैं। मुहल्लेवासियों को डर बना रहता है कि कभी कोई बड़ा हादसा ना हो जाए।

- दिलीप कुमार, स्थानीय

पूरा मुहल्ला डर के साए में रहता है, लेकिन इसकी परवाह प्रशासन को नहीं है। क्या किसी बड़े हादसे का इंतजार है निगम को? कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। सोचिए हर दस कदम पर एक मैनहोल का ढक्कन खुला है।

- ब्रजनंदन यादव, स्थानीय