PATNA: जितना बड़ा रेलवे विभाग, उतने ही बड़े हैं उसके खेल। खेल भी ऐसा, जिसे दानापुर मंडल के नीचे से लेकर ऊपर तक के बाबू भी खेलते हैं। खेल है सीक लीव का। जिसे कोई भी खेल सकता है, बस जरूरत होती है चढ़ावे की। ऐसे ही खेल का पर्दाफाश किया है आई नेक्स्ट ने अपने स्टिंग में। पेश है इस खेल की बानगी

मंडल रेल अस्पताल दलालों के चंगुल में

अगर आप रेलवे स्टाफ हैं, छुट्टी पर जाना चाहते हैं और डिपार्टमेंट किसी कारण से लीव नहीं दे रहा है तो आपके पास एक ही रास्ता बचता हैवो है सिक लीव। लेकिन इसके लिए जरूरी है डॉक्टर के रेकोमेंडेशन की। और यहीं से शुरू होता है छुट्टी का खेल। जिसे दानापुर मंडल स्थित रेलवे के हॉस्पीटल में आसानी से देखा जा सकता है। जहां सिक-फीट करने के अधिकृत डॉक्टर इसके एवज में हर रोज चांदी काटते हैं। बकायदा इसके लिए दलाल अस्पताल की गैलरी में बैठे रहते हैं। दलाल ही बात करते हैं और रेट भी तय करते हैं कि एक दिन का सिक लीव कितने में मिलेगा।

एक दिन का सिक लीव फ् सौ रुपए में

आई नेक्स्ट की टीम जब मंडल रेल अस्पताल पहुंची तो अस्पताल के पोर्टिको में ही एक व्यक्ति को कई रेल स्टाफ और उनके परिजन घेरे मिले। पता चला कि ये लोग सिक लीव का डॉक्यूमेंट ले रहे हैं। आई नेक्स्ट की टीम कई रेल कर्मियों से बात करती है जो सिक लीव लेने आए थे। लोगों ने साफ स्वीकार किया कि क्या करें कोई रास्ता ही नहीं है और घर जाना जरूरी है। जब आई नेक्स्ट ने अपने एक परिजन के लिए सिक लीव की व्यवस्था करने की बात दलाल से की तो कहा गया सब हो जाएगा। बस एक दिन के सिक लीव के लिए फ् सौ रुपए देने होंगे, वो भी एडवांस। आगे क्या बात हुई दलाल और रिपोर्टर के बीच। आइए जानते हैं

रिपोर्टर- सिक लीव बन जाएगा जी।

दलाल - किसके लिए बनवाना है।

रिपोर्टर - पापा हैं, पटना में।

दलाल - मेमो लाए हैं।

रिपोर्टर - पहले बोलो न हो जाएगा, तब न लाएंगे।

दलाल - दानापुर और पटना वाले के लिए डॉक्टर साहब से बतियाना होगा। बिना पूछे नहीं कह सकता।

रिपोर्टर - तो बात कर लो।

दलाल - अभी आने ही वाले हैं बात करके बताता हूं।

रिपोर्टर - हो जाएगा न, कितना चार्ज है।

दलाल - हो जाना चाहिए, ऐसे तो फ् सौ रुपए पर डे है। लेकिन पटना है तो बात कर के बताते है।

सिक लीव लेने वाले रेलवे स्टाफ से बात

रिपोर्टर - मिल गया सिक लीव।

स्टाफ - हां सर मिल गया। जरूरी था।

रिपोर्टर - कितना लगा।

स्टाफ - दस दिन का तीन हजार दिया हूं

रिपोर्टर - पहले तो सौ रुपए में हो जाता था

स्टाफ - मनमाना है बॉस, जरूरी है तो लेना तो पड़ेगा ही।

इसकी जानकारी मुझे नहीं है। अगर ऐसा हो रहा है तो बिल्कुल गलत है। मैं पता लगाता हूं। इसे रोकने का अथक प्रयास मैं करूंगा। अगर कोई डॉक्टर इसमें शामिल होंगे तो कड़ा एक्शन लिया जाएगा।

डा। एसके वर्मा, सीएमएस, दानापुर मंडल अस्पताल