नंबर एक: संगठित क्षेत्रों में भविष्य निधि पूरी सैलरी पर ना काट कर बेसिक सेलरी और मंहगाई भत्ते पर कट रहा है। कर्मचारी समझ नहीं पा रहे कि इससे प्रति माह उनके हाथ में आने वाली राशि तो बढ़ती है, लेकिन पीएफ में पैसा कम जाता है। ये बात रिटायरमेंट बाद नुकसानदेह साबित होगी।
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नंबर दो: अब ज्यादातर कंपनियों में तनख्वाह कास्ट टू कंपनी मतलब सीटीसी में बंटी होती है, जिसकी वजह से बेसिक सेलरी कम हो जाती है और जिससे इंप्लायर और इंप्लाइ का अंशदान भी कम हो जाता है। इस वजह से पीएफ भी कम हो जाता है। हालाकि इंप्लाइज प्रॉविडेंट फंड ऑग्रेनाइजेशन (EPFO) इस बारे में सर्कुलर जारी कर चुका है पर इस पर अब तक अमल नहीं हुआ है।
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नंबर तीन: लेबर मिनिस्ट्री के सरकारी पैनल ने भी पूरी सैलरी पर पीएफ काटे जाने की सिफारिश की थी पर उसकी सिफारिशें भी लागू नहीं की गयी है।  जाहिर है जो पीएफ जमा हो रहा है वो भविष्य में पूरी सुरक्षा देने के लिए पर्याप्त नहीं होता है।
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नंबर चार: उद्योगपतियों के दवाब में पूरी तनख्वाह पर पीएफ काटने की बात ना मानने के कारण पीएफ में कम राशि जमा होती है। जिसके कारण ईपीएफओ का कर्मचारियों रिटायरमेंट के बाद सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मुहैया कराने का इरादा पूरा नहीं हो पा रहा है।

 

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