- कलेक्ट्रेट जमा हुए मेरठ के हजारों जैन समाज के लोग

- घंटों किया धरना प्रदर्शन, एडीएम को दिया ज्ञापन

- जैन समाज ने दुकानों और पेट्रोल पंपों को रखा बंद

Meerut : राजस्थान कोर्ट के द्वारा जैन धर्म की आदि काल से चली आ रही धार्मिक परंपरा संल्लेखना पर रोक लगाने के विरोध में जैन समाज के लोगों ने अपनी दुकानें बंद कर मौन प्रदर्शन किया। सिटी के डिफरेंट इलाकों से कलेक्ट्रेट में पहुंचकर राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन देकर कोर्ट के फैसले पर रोक लगाए जाने की मांग की। इस दौरान सैकड़ों जैन समाज के लोग मौजूद रहे।

कलेक्ट्रेट पहुंचे लोग

सोमवार को दिगंबर व श्वेतांबर जैन समाज के आह्वान पर समाज के लोग अपनी-अपनी दुकानें बंद कर कमिश्नरी चौराहे पर एकत्रित हुए। इस दौरान महिलाओं व पुरुषों ने राजस्थान हाईकोर्ट के संल्लेखना को आत्महत्या घोषित किए जाने पर विरोध प्रकट किया। इस मौके मंगल पांडे मंगल पांडे नगर, सदर और कई इलाकों के लोगों ने आकर समाज के 1500 लोगों ने कोर्ट के फैसले के विरोध में नारे लगाते हुए कलेक्ट्रेट पहुंचे। जहां उन्होंने एडीएम ई को महामहिम राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन सौंपा।

गौरवशाली इतिहास

ज्ञापन में जैन समाज के लोगों ने संथारे पर अपना अधिकार जताते हुए लिखा है कि जैन धर्म का आदिकाल से गौरवशाली इतिहास रहा है। जैन समाज हमेशा से ही शांति प्रिय व अ¨हसावादी समाज है। जैन धर्म में एक चींटी को भी अभयदान दिया जाता है। संथारा समाज का धर्म है, जो आदिकाल से धर्म का एक महत्वपूर्ण अंग है। संथारा में साधु-संत आत्महत्या नहीं करते, बल्कि भगवान के ध्यान में मगन होकर त्याग व तप के माध्यम से मोक्ष तक पहुंचते हैं। समाज के लोगों ने चेतावनी दी है कि उक्त फैसला वापस नहीं किया जाता, तो जैन समाज देश में आंदोलन करने के लिए बाध्य होगा।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 में स्वीकार करना, धार्मिक प्रवृति करना, धर्म का प्रचार करना प्रत्येक भारतीय का मूल अधिकार है। इसलिए सल्लेखना जैसी धार्मिक क्रिया को जैन धर्मावलम्बियों के संवैधानिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।

- सुरेश जैन रितुराज, अध्यक्ष, मेरठ जैन समाज

सल्लेखना/संथारा एक व्रत है। जिसे साधक स्वयं अपनी इच्छा के अनुरूप धर्मशास्त्रविहित धारण करता है। ऐसी धर्म साधना को आत्महत्या या कुप्रथा के नाम पर प्रतिबंधित करने का आदेश जैन धर्म के अधिकारों का हनन है।

- रंजीत जैन, अध्यक्ष, सदर जैन समाज

सल्लेखना/संथारा की धर्म साधना करने का उद्देश्य जीवन को समाप्त करने का नहीं होता, न उसे आत्महत्या करने का प्रयास कहा जा सकता है। और न ही उसे इच्छा मृत्यु कहा जा सकता है।

- नगीन चंद जैन