13 अप्रैल 1919 का दिन था वो जब अमृतसर के जलियावाला बाग में हजारों निहत्थे और मासूम भारतीय अंग्रेजों की ताबड़तोड़ गोलियों का शिकार हो गए। ब्रिटिश लेफ्टिनेंट जनरल रेगिनाल्ड डायर ने इस कांड को अंजाम दिया।
इसके लिए डायर ने बाकायदा पूरी रणनीति तैयार की। उसने सबसे पहले बाग से निकलने के सारे रास्ते बंद करवा दिए।
बाग से निकलने का जो सिर्फ एक रास्ता खुला था उस रास्ते पर जनरल डायर ने हथियारबंद गाड़ियां खड़ी करवा दी।
ऐसे में जब नेता बाग़ में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर भाषण दे रहे थे, तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर अपने 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुंच गया।
उन सब के हाथों में भरी हुई राइफलें थीं। सैनिकों ने बाग़ को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं। 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं।
जलियांवाला बाग़ उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था। वहां तक जाने या वहां से बाहर निकलने के लिए सिर्फ एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे।
वहां से भागने के लिए हिन्दुस्तानियों को कोई रास्ता नहीं मिला। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया।
गोलीबारी से जूझते हुए लोग पेड़ों की तरफ गिरने लगे।
पूरा कांड खत्म होने के बाद वहां मौजूद कुएं से 200 से ज्यादा शव बरामद हुए थे। वैसे बता दें कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इस घटना को निर्णायक भूमिका के तौर पर देखा जाता है।National News inextlive from India News Desk
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