अब तक अपने इलेक्ट्रोनिक उत्पादों और कार के निर्यात के लिए पूरी दुनिया में मशहूर जापान के लिए ये एक बड़ा धक्का है। जापान के वित्त मंत्रालय के अनुसार ये घाटा तक़रीबन 32 अरब डॉलर है।

पिछले साल के मुताबिक इस साल जापान के आयात में 12 प्रतिशत की बढ़त और निर्यात में 2.7 प्रतिशत का घटाव दर्ज किया गया है। निर्यात में हुई कमी की वजह 2011 मार्च महीने में आए सूनामी और भूकंप को माना जा रहा है।

निर्यातकों के लिए कठिन समय

ये घाटा उन कठिन हालातों को दर्शाने के लिए काफी है जिसका सामना कई जापान की निर्यात कंपनियां को भूकंप और सूनामी के बाद करना पड़ा है।

उस प्राकृतिक आपदा में टोयोटा मोटर और सोनी जैसी कई बड़ी कंपनियों की फैक्ट्रियां और सप्लाई चेन पूरी तरह से नष्ट हो गए थे। निर्यातकों की समस्या थाईलैंड में आए बाढ़ ने और बढ़ा दी क्योंकि इससे वहां उनका उत्पादन तो प्रभावित हुआ ही, अंतरराष्ट्रीय बाजा़र में जापानी उत्पाद भी महंगे हो गए।

इसका सीधा असर जापान के निर्यातकों पर पड़ा है क्योंकि इससे ना सिर्फ वे दक्षिण कोरिया और दूसरे एशियाई देशों जैसे अपने पारंपरिक प्रतिद्वंदियों से पिछड़ रहे हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में भी जापान के मुकाबले इन देशों का वर्चस्व बढ़ रहा है।

ऊर्जा की कमी

आयात के क्षेत्र में भी जापान को कई समस्याओं का सामना कर पड़ रहा है ख़ासकर ऊर्जा के क्षेत्र में क्योंकि फुकुशिमा परमाणु संयत्र के नष्ट होने से देश में कई ऊर्जा संयंत्रों को बंद करना पड़ा है।

इससे पहले जापान अपने कुल ऊर्जा उत्पादन का 30 प्रतिशत अपने परमाणु संयंत्रों के ज़रिये पाता था। अब जापान टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर जैसे अन्य पारंपरिक ऊर्जा संयंत्रों को दोबारा चालू करने की कोशिश में लगा है।

हालांकि 'बैंक ऑफ जापान' के गवर्नर मसाकी शिराकावा ने मंगलवार को विश्वास दिलाया कि ये घाटे तात्कालिक वजहों के कारण हुए हैं और ये जापान की अर्थव्यवस्ता की स्थापित प्रवृत्ति नहीं बनेंगे।

लेकिन विश्लेषकों का अनुमान है कि जिस तरह से जापानी उत्पाद के मुख्य बाज़ार अमरीका और यूरोप जैसे देश मंदी से गुज़र रहे हैं उससे व्यापार में घाटे का ये दौर लंबा चल सकता है।

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