- जेनेरिक और बाकि दवाओं के रेट में कोई फर्क नहीं
- बाजार में आ सकता है कुछ चेंज
LUCKNOW :
भारत सरकार के इस ऐलान के बाद कि डॉक्टर पर्ची पर केवल जेनेरिक दवाओं के सॉल्ट का नाम लिखेंगे। इस ऐलान के बाद लोगों ने समझा कि जेनेरिक दवाएं मतलब सस्ती दवाएं लेकिन ऐसा नहीं है। साथ ही यह भी माना जा रहा है कि डॉक्टर के लिखे गए सॉल्ट को केमिस्ट कैसे पढ़ेगे।
पूरा खेल कमीशन का
केमिस्ट ऐसोसिएशन की माने तो यह पूरा खेल कमीशनखोरी का है, जो आसानी से बंद नहीं होगा। एसोसिएशन का कहना है कि एक कंपनी कोई भी दवा सालों की रिसर्च और टेस्टिंग के बाद बनाती है। इसके बाद उसको पेटेंट कराती है। अमूमन किसी दवा के लिए पेटेंट 10 से 15 साल के लिए होता है।
दोनों दवाओं में कोई फर्क नहीं
एसोसिएशन का कहना है कि जेनेरिक व नॉन जेनरिक दवाएं अलग-अलग कम्पनी बनाती हैं। पर दोनों के रेट एक से हैं। साथ ही यह दवा भी अलग से ही लिखकर आती है। ऐसे में केमिस्ट आसानी से डॉक्टर के लिखे सॉल्ट को देखकर कम्पनी की ओर से बनाई जा रही जेनेरिक दवा दे सकता है।
दवा की पहचान मुश्किल नहीं
एसोसिएशन का कहना है कि सरकार के इस फैसले से कुछ चेंज आ सकता है। जिन बीमारियों के लिए पेटेंट दवाएं ही बाजार में मौजूद हैं उनका इलाज तो किसी भी हाल में सस्ता नहीं होने वाला। इतना ही नहीं जब डॉक्टर अपनी पर्ची पर किसी जेनेरिक दवा का नाम लिखेगा तो उसको बनाने वाली एक नहीं कई कंपनियां होंगी। ऐसे में केमिस्ट के लिए दवा की पहचान मुश्किल नहीं होगी।
इससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला है। जेनेरिक दवाओं के कई ब्रांड बाजार में मौजूद हैं। जिनके सॉल्ट देखकर दवा दि जा सकती है। फॉर्मासिस्ट रखने की जरूरत अभी उतनी नहीं है।
- अशोक भागर्व, अध्यक्ष केमिस्ट एसोसिएशन
जेनेरिक दवा पर सॉल्ट लिखा होता है। ऐसे में फॉर्मासिस्ट के होने ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। गवर्नमेंट को अपनी गाइडलाइन क्लियर करनी चाहिए।
गिरीराज रस्तोगी, केमिस्ट