- कछुआ सेंचुरी की वजह से गंगा में नहीं हो पा रही ड्रेजिंग

- ड्रेजिंग के बिना तैयार नहीं हो सकेगा बनारस-हल्दिया जलमार्ग

VARANASI

छोटे-छोटे कछुओं ने टनों वजनी पानी के जहाजों को रोका दिया है। वो बनारस की सीमा में दाखिल नहीं हो पा रहे हैं। आप किस सोच में पड़ गये। यहां बात कछुआ सेंचुरी की हो रही जिसकी वजह से केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना बनारस से हल्दिया जलमार्ग के निर्माण में बाधा आ रही है। पयर्टन और व्यवसाय के लिए बेहद महत्वपूर्ण परियोजना गति नहीं पकड़ पा रही है और अपने निर्धारित समय से लेट हो गयी है। प्रोजेक्ट के तहत रामनगर के राल्हूपुर में टर्मिनल निर्माण किया जा रहा है लेकिन गंगा में ड्रेजिंग करके बड़े-बड़े जहाजों के चलने लायक पानी गहरा नहीं हो पा रहा है। जलमार्ग प्राधिकरण ने इसके लिए पूरा जोर लगाये हुए है अब देखना है कि उसे सफलता कब मिलेगी।

सिल्ट हो गयी है जमा

कछुआ सेंचुरी की वजह से गंगा में ड्रेजिंग स्टार्ट नहीं हो पा रही है। इसके बिना कोई मालवाहक जहाज गंगा के रास्ते बनारस नहीं आ सकता है। दो दशक से अधिक समय से गंगा में बालू खनन नहीं होने से नदी की तलहटी में सिल्ट जमा होती जा रही है। वहीं दूसरे किनारे पर बालू का ढेर लगता जा रहा है। जिसके चलते नदी की गहराई कम होती जा रही है। जलमार्ग योजना के तहत गंगा में तीन मीटर तक ड्रेजिंग करनी है। इसके बाद ही बनारस से हल्दिया तक 1390 किलोमीटर लम्बा जलमार्ग तैयार हो पायेगा। इसे तीन हिस्सों में बांटा गया है। हल्दिया से फरक्का, फरक्का से बाढ़ और बाढ़ से रामनगर तक ड्रेजिंग की जाएगी। बनारस में कछुआ सेंचुरी के चलते यह काम नहीं हो पायेगा। अगर आगे ड्रेजिंग हो भी जाएगी तो इसका कोई फायदा नहीं होगा।

शिफ्ट होने का इंतजार

बनारस-हल्दिया जलमार्ग तब तक शुरू नहीं हो पायेगा जब तक कछुआ सेंचुरी को दूसरी जगह शिफ्ट नहीं किया जाएगा। हालांकि इसके लिए जलमार्ग प्राधिकरण की कोशिश लगातार जारी है। केन्द्र सरकार ने इस पर काम शुरू किया है लेकिन वक्त बहुत अधिक लग रहा है। कछुआ सेंचुरी को बनारस से दूर ले जाने की तैयारी चल रही है। इसके लिए रामनगर के आगे जगह भी तलाश ली गयी है लेकिन जरूरी प्रक्रिया पूरी नहीं हो पा रही है। जलमार्ग को जिस वक्त शुरू किया गया था। दो बड़े जहाज माल लेकर बनारस आये थे लेकिन उन्हें सीमा में दाखिल होने की अनुमति नहीं मिली थी। लगभग डेढ़ महीने तक मशक्कत के बाद किसी तरह से परमिशन मिली तब तक जहाज बनारस की सीमा पर खड़े ही रहे।

हुआ बड़ा नुकसान

गंगा में प्रदूषण को दूर करने के लिए तीन दशक पहले केन्द्र सरकार ने योजना बनायी थी। इस पर काम शुरू हुआ इसी दौरान जल की गंदगी को साफ करने के लिए रामनगर के राजघाट तक सात किलोमीटर एरिया को कछुआ सेंचुरी घोषित करते हुए उसमें कछुए छोड़े गये। इन कछुओं ने गंगा को कितना साफ किया इसका दावा तो कोई नहीं कर सकता है लेकिन इसकी वजह से तमाम विकास की परियोजना लम्बे समय तक लटकी रहीं। अनपरा से बनारस तक सीधे बिजली लाने के लिए गंगा में पिलर बनाया जाना था। बेहद महत्वपूर्ण यह परियोजना सिर्फ एक दशक तक इसलिए लटकी रही कि कछुआ सेंचुरी की वजह से गंगा में पिलर बनाने की परमिशन नहीं मिली रही थी। काफी नुकसान कराने के बाद परमिशन मिली। इसी तरह पर्यटन से जुड़ी तमाम परियोजना सेंचुरी की वजह से अधर में लटक गयीं।

बनारस से हल्दिया जलमार्ग को पूरा करने का काम तेजी से चल रहा है। इसमें आ रही बाधाओं को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। एक साल बाद जहाज माल लेकर बनारस आने लगेंगे।

प्रवीण पाण्डेय, जलमार्ग प्राधिकरण के उपाध्यक्ष