PATNA: जिसके लिए उन्हें पांचवें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट स्टोरी डॉक्यूमेंट्री का अवॉर्ड मिला। यह अवॉर्ड उन्हें दरभंगा के ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी के नरगोना पैलेस में दिया गया। धर्मवीर भारती ने दैनिक जागरण आई नेक्स्ट को बताया कि इस डॉक्यूमेंट्री को बनाना आसान नहीं था। इसके लिए तीन साल तक शोध करना पड़ा। इसके बाद डॉक्यूमेंट्री की कहानी तैयार हुई और फिर शूटिंग शुरू की गई।


बेहाल कफन बुनकरो की कहानी

कफन द लास्ट वील के बारे में धर्मवीर भारती ने बताया कि इस डॉक्यूमेंट्री में मगध क्षेत्र (गया) के बेहाल कफन बुनकरों की कहानी है। इसमें दिखाया गया है कि मानपुर के बुनकर कच्चे सूत और माड़ी से कफन बनाते हैं और उसे कंधे पर लादकर विष्णुपद शमसान घाट के दुकानों में बेचने के लिए जाते हैं। और इससे उन्हें जो आमदनी होती है उससे उनके घर का चूल्हा जलता है।


ईस्ट इंडिया कंपनी ने तोड़ी थी कमर

डीजे आई नेक्स्ट को धर्मवीर ने बताया कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी व्यापारिक नीति ने मगध के बुनकरों की कमर तोड़ दी थी। तब बुनकरों ने अपने परिवार के जीविकोपार्जन के लिए हैंडलूम पर कच्चे सूतों से कफन बनाना शुरू किया। दौ सौ साल के जद्दोजहद के बाद कफन बुनकर औरंगाबाद, जहानाबाद, नवादा से सिमटकर गया के मानपुर तक सीमित हो गए। धर्मवीर बताते हैं कि रंगमंच का शौक बचपन से था। पिता की मृत्यु के बाद बड़े बेटे होने के नाते अनुकंपा पर नौकरी का ऑफर मिला। मगर रंगमंच से अलग होना मान्य नहीं था इसलिए नौकरी छोटे भाई को दे दी।