साल 1971 में उनके इंतकाल के बाद जब दरवाजा खोला गया तो सीढ़ियां हॉलनुमा ठंडे कमरे के अंदर उतर रही थीं।

छत पर देवी-देवताओं की रंगीन तस्वीरें और कुछ हिंदी शब्द बहुत स्पष्ट थे। मगर फर्श ईंटों के मलबे ने छुपा रखा था।

मेरे चाचा ने दरवाज़ा जल्दी से ये कहकर बंद कर दिया अंदर सांप-बिच्छू हैं, कहीं बाहर न आ जाए। मोहल्ले का अनपढ़ इतिहासकार सरदार मोची था।

'यहाँ कन्हैया लाल था,वहाँ कन्हैया पाकिस्तानी हूँ'

 

जान बचाने के लिए
उसे मैं रोज़ाना अख़बार पढ़कर सुनाता था। एक दिन सरदार ने बताया कि आप जिस घर में रहते हो, वो किराड़ों का मंदिर और मरघट था और फूल भारती के नाम से जाना जाता था।

मैंने पूछा किराड़ क्या होते हैं, वे यहाँ से क्यों चले गए? सरदार ने बताया किराड़ हिंदुओं को कहते हैं और वे बस चले गए जैसे मैं यहाँ आ गया।

सब जान बचाने के लिए अमृतसर से निकल रहे थे तो मैं भी चल पड़ा।

मैंने पूछा अमृतसर यहाँ से कितनी दूर है? कहने लगा तेज़-तेज़ पैदल चलो तो 24 से 25 दिन लगते हैं।

फिर सरदार मोची सिर झुकाए चमड़े की डोरी से देसी खेड़ी की सिलाई पूरी करने में लग गया।

2004 के भारत के लोकसभा चुनाव कवर करने के दौरान जालंधर में 81 साल के रिटायर्ड टीचर हरमिंदर सिंह मजीठिया साहब से मुलाकात हुई।

'यहाँ कन्हैया लाल था,वहाँ कन्हैया पाकिस्तानी हूँ'

 

दिल्ली में सिख विरोधी दंगे
हर कोई कहता है कि बंटवारे में एक करोड़ लोग पलायन कर गए और लाखों मारे गए। लेकिन किसी एक कातिल का नाम भी कोई नहीं बताता? यह अजीब सा नहीं लगता?

मजीठिया साहब ने कहा पुत्तर खोज करना बहुत आसान है। अगर उस दौर के सभी थानों के रिकॉर्ड छप जाए तो! लेकिन ऐसा कौन होगा और कौन करने देगा?

आप तो 1947 के कातिलों को खोज रहे हैं। हमें तो 1984 में दिल्ली के तीन हज़ार सिखों के कातिलों का नाम तक नहीं मालूम।

मुझे अपने घर का पिछला कमरा याद आ गया जो दरवाज़ा बंद करते हुए मेरे चाचा ने कहा था अंदर सांप-बिच्छू हैं, कहीं बाहर न आ जाएं।

पांचवीं कक्षा तक सोशल साइंस की क्लास में मास्टर लतीफ के जिज्ञासु बच्चों को ये जानकारी हो गई थी कि हिंदू कैसे होते हैं? मक्कार, चालबाज़, लालची, मुसलमानों के दुश्मन, बगल में छुरी, मुंह में राम-राम, सर पर पूरे बाल नहीं होते बस चुटिया होती हैं जिसे बोदी कहते हैं और अगले दो दांत जरा से बाहर निकले होते हैं।

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'यहाँ कन्हैया लाल था,वहाँ कन्हैया पाकिस्तानी हूँ'

कमाल है! इस एक शहर में बोली जाती हैं 140 भाषाएं

कन्हैया लाल का किस्सा
एक दिन एक नया बच्चा आया कि 'यह कन्हैया लाल और आज से ही कक्षा में बैठेगा।' एक बच्चे से रहा न गया 'सर यह कैसा नाम है?'' बेटा जी ये हिंदू है लेकिन यहीं रहता है। बैठ जाओ।'

जब आधी छुट्टी की घंटी बजी तो कन्हैया लाल प्ले ग्राउंड में अलग-थलग बैठ गया लेकिन हम आश्चर्यचकित बच्चों ने उसे घेर लिया। 'लेकिन उसके सर पर तो बोदी नहीं पूरे बाल हैं, अरे देखो उसके तो अगले दो दांत भी बाहर नहीं निकले हुए, आप क्या भारत से आए हो कन्हैया लाल? तुम्हारे अब्बा-अम्मी तुम्हें छोड़ के चले गए क्या?'

कन्हैया लाल ने कोई जवाब नहीं दिया। एक सप्ताह बाद हम बच्चे भी भूल गए कि वह कोई हिंदू है।

दस बारह बरस पहले कन्हैया लाल कपड़े का कारोबार खत्म कर अचानक पत्नी बच्चों सहित 44 साल की उम्र में दिल्ली चला गया।

अब कोई दो साल पहले वह 15 दिन के वीज़ा पर पाकिस्तान आया। सबसे पुराने दोस्त इकट्ठे हुए। वो कहने लगा कि कपड़े का काम वहाँ भी अच्छा चल रहा है पर दिल नहीं लगता। मैं यहाँ कन्हैया लाल हुआ करता था, वहाँ कन्हैया पाकिस्तानी हूँ।

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