जब राजस्थान में मंदिरों में ब्लास्ट होता है तो सिटी के मंदिर खंगाले जाते हैं, जब मुंबई में टेरर अटैक होता है तो सिटी के होटलों पर नजर रखी जाती है। वैसे ही जब वेडनेसडे को दिल्ली हाईकोर्ट में धमाका हुआ तो सिटी की कचहरी खंगाली गई।

मगर जब थर्सडे को आई नेक्स्ट टीम फिर से कचहरी पहुंची तो वहां पर मंजर ही कुछ और था, कचहरी पूरी तरह से अनसेफ नजर आ रही थी। कहीं सिक्योरिटी का कोई अरेंजमेंट नहीं दिखा.  लगभग दो साल पहले कचहरी और कलेक्ट्रेट के गेट पर मेटल डिटेक्टर्स लगाए गए थे, मगर थर्सडे को जब हमने कचहरी का जायजा लिया तो वहां पर मेटल डिटेक्ट करने वाले गेट गायब थे, इतना ही नहीं किसी गेट पर पुलिस भी नहीं लगी थी।

हालात कुछ ऐसे थे कि जिसका मन आए वह बड़े आराम से कुछ भी करके जा सकता है।

क्या कहते हैं एडवोकेट्स?

सुरक्षा के नाम पर यहां जो मेटल डिटेक्टर लगाए गए थे वह भी सिर्फ नाम मात्र के थे। उसके पास कभी पुलिस वाले बैठते थे, मगर उन्हें भी जानकारी नहीं होती थी कि यह आखिर काम कैसे करते हैं। कचहरी पूरी तरह से असुरक्षित है-अजय प्रकाश सिंह, एडवोकेट

जब भी देश के किसी कोने में कोई आतंकी घटना होती है तो प्रशासन खानापूरी करने के लिए दो दिन के लिए सक्रिय हो जाता है, फिर वह सुस्त पड़ जाता है। प्रशासन को चाहिए कि कचहरी की सुरक्षा के लिए अलग से सुरक्षा व्यवस्था करे.-  नरेश त्रिपाठी, एडवोकेट