01 जून को केरला, 15 से 20 जून तक यूपी में इंट्री की है संभावना

05 से 10 जुलाई के बीच लास्ट ईयर यूपी में पहुंचा था मानसून

vikash.gupta@inext.co.in

ALLAHABAD: देश में गर्मी की शुरुआत होते ही किसान मानसून पर टकटकी लगाकर बैठ जाते हैं। लेकिन मानसून ऐसी अबूझ पहेली है जिसका अनुमान लगाना बेहद जटिल है। बहरहाल, अबकी मानसून के सामान्य रहने का पूर्वानुमान जारी किया गया है, जो किसी खुशखबरी से कम नहीं है। जानकार अबकी मानसून एक्सप्रेस की इंट्री भी सही समय पर बता रहे हैं। उनका कहना है कि मानसून 01 जून को केरला और 15 से 20 जून के बीच यूपी में इंट्री मार देगा। लास्ट इयर यूपी में मानसून की दस्तक 05 से 10 जुलाई के आसपास हुई थी।

लगातार पड़ी गर्मी का असर

अच्छे मानसून का बड़ा कारण लम्बे समय तक एक समान पड़ी गर्मी को माना जा रहा है। इसकी शुरूआत मार्च के शुरूआती दिनों से ही हो गई थी। विशेषज्ञों का कहना है कि अमूमन पिछले कुछ वर्षो में अप्रैल से ही गर्मी का आगाज होता था। लेकिन इस बार मार्च में ही गर्मी ने टॉप गेयर लगा दिया। हाल ये रहा कि मई वाली गर्मी भी अप्रैल में ही पड़ गई। मार्च, अप्रैल और मई में लगातार पारा 40 डिग्री सेल्सियस या इससे ऊपर रहा। मौसम के कितने भी अप एंड डाउन आये, लेकिन गर्माहट में नरमी नहीं आई। विशेषज्ञों का कहना है कि साल 2017 में टाईम ड्यूरेशन को देखें तो मार्च से जून तक की अवधि में 100-120 दिनों तक 40 डिग्री या इससे अधिक पारा रहने का अनुमान है जो अपने आप में एक रिकार्ड होगा।

खतरे के संकेत भी कम नहीं

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ज्योग्राफी डिपार्टमेंट के एक्स। एचओडी प्रो। बीएन मिश्रा कहते हैं कि बीते 48 से 72 घंटों के भीतर आंधी का झोंका आया है। छिटपुट बरसात भी हुई है। ऐसे झोंके मई में आम बात है। लेकिन इनकी संख्या अधिक हुई और कई चरण में अभी से जून के शुरूआती सप्ताह तक बरसात होती है तो मानसून गड़बड़ा भी सकता है। उन्होंने कहा कि अच्छे मानसून के लिये निरंतर जून मध्य तक गर्मी का बिना किसी व्यवधान के पड़ना जरूरी है।

चार माह का होता है सीजन

प्रो। बीएन मिश्रा ने बताया कि देश में मानसून का सीजन चार महीनों का होता है। मई के दूसरे सप्ताह में बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान निकोबार द्वीप समूह में मानसून दस्तक देता है और एक जून को केरल में मानसून का आगमन होता है। मानसूनी हवायें बंगाल की खाड़ी से आगे बढ़ती हैं और हिमालय से टकराकर वापस लौटते हुए उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में बरसात का कारण बनती हैं। देश की 65 फीसदी खेती-बाड़ी मानसूनी बारिश पर निर्भर है। केरल में मानसून जून के शुरू में दस्तक देता है और अक्टूबर तक करीब पांच महीने रहता है। जबकि राजस्थान में सिर्फ डेढ़ महीने ही मानसूनी बारिश होती है। वहीं से मानसून की विदाई होती है।

मानसून के बारे में जानें

ग्रीष्म ऋतु में जब हिन्द महासागर में सूर्य विषुवत रेखा के ठीक ऊपर होता है तो मानसून बनाता है। इस प्रक्रिया में समुद्र गरमाने लगता है और उसका तापमान 30 डिग्री तक पहुंच जाता है। उस दौरान धरती का तापमान 45 से 46 डिग्री तक पहुंच चुका होता है। ऐसी स्थिति में हिन्द महासागर के दक्षिणी हिस्से में मानसूनी हवाएं सक्रिय होती हैं। ये हवाएं आपस में क्रॉस करते हुए विषुवत रेखा पार कर एशिया की तरफ बढ़ने लगती हैं। इसी दौरान समुद्र के ऊपर बादलों के बनने की प्रक्रिया शुरू होती है। विषुवत रेखा पार करके हवाएं और बादल बारिश करते हुए बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का रुख करते हैं। इस दौरान देश के तमाम हिस्सों का तापमान समुद्र तल के तापमान से अधिक हो जाता है। ऐसी स्थिति में हवाएं समुद्र से जमीन की ओर बहनी शुरू हो जाती हैं। ये हवाएं समुद्र के जल के वाष्पन से उत्पन्न जल वाष्प को सोख लेती हैं और पृथ्वी पर आते ही ऊपर उठती हैं। और वर्षा कराती हैं।

दो हिस्सों में विभाजित होती हैं हवायें

बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में पहुंचने के बाद मानसूनी हवाएं दो शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं। एक शाखा अरब सागर की तरफ से मुंबई, गुजरात, राजस्थान होते हुए आगे बढ़ती है तो दूसरी शाखा बंगाल की खाड़ी से पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वोत्तर होते हुए हिमालय से टकराकर गंगीय क्षेत्रों की ओर मुड़ जाती हैं और इस प्रकार जुलाई के पहले सप्ताह तक पूरे देश में झमाझम पानी बरसने लगता है।

कोट

लास्ट इयर छोड़ दें तो बीते कुछ वर्ष मानसून के लिये अच्छे नहीं रहे। इस दौरान सामान्य से बहुत कम बारिश हुई। मानसूनी बारिश का कम होना चिंता का सबब है। फिलहाल इस बार की गर्मी और बाकी परिस्थितियां सामान्य मानसून का संकेत दे रही हैं। उम्मीद है मानसून किसानो के लिये राहत लेकर आयेगा।

प्रोफेसर बीएन मिश्रा,

एक्स। एचओडी ज्योग्राफी डिपार्टमेंट, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी