- 4000 बेड है केजीएमयू में

हर माह 25 से 30 लाख की ऑक्सीजन का खर्च

पिछले तीन माह का बिल पेमेंट नहीं

LUCKNOW: गोरखपुर में ऑक्सीजन की सप्लाई कंपनी ने समय पर बिल पेमेंट न होने के कारण रोक दी थी। जिससे इतनी बड़ी संख्या में मासूमों की जान चली गई। राजधानी के केजीएमयू में भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। यहां भी पिछले तीन माह का कंपनी को पेमेंट नहीं मिल सका है। कंपनी के बिल लगातार पेंडिंग पड़े हैं। जिससे कभी भी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

75 लाख का बिल बाकी

केजीएमयू में पिछले दो वर्ष पहले पांच ऑक्सीजन प्लांट लगाए गए थे। प्रत्येक की कैपेसिटी 20 किलोलीटर की है। इनके लिए लिक्विड ऑक्सीजन गाजियाबाद की कंपनी लिंडे इंडिया लिमिटेड सप्लाई करती है। केजीएमयू में सप्लाई का जिम्मा इसकी कंपनी को दिया गया है। केजीएमयू में पांच प्लांट लगने के बाद से रोज रोज की ऑक्सीजन की क्राइसेस समाप्त हो गई। यह हाल तब है जब एमओयू के मुताबिक कंपनी 60 लाख तक की गैस उधारी में देती है, लेकिन उससे आगे के लिए पेमेंट जरूरी है। फिर भी केजीएमयू प्रशासन हर माह जीवनदायी ऑक्सीजन पेमेंट नहीं कर पाता है।

आरएलसी में नहीं है प्लांट

वर्तमान में केजीएमयू में शताब्दी और ट्रॉमा के बीच दो प्लांट, गांधी वार्ड के सामने, रेस्पिरेटरी मेडिसिन और लॉरी कार्डियोलॉजी में एक एक प्लांट लगाया गया है। अभी केजीएमयू के लिंब सेंटर (आरएलसी) में ऑक्सीजन सप्लाई के लिए अलग से प्लांट नहीं लगा है। जबकि क्वीन मेरी हॉस्पिटल में ऑक्सीजन जेनरेटर लगाया गया है। जहां पर वातावरण की हवा से ऑक्सीजन निकाल कर मरीजों के लिए सप्लाइ की जाती है। साथ ही इमरजेंसी के लिए बड़े ऑक्सीजन सिलेंडर हमेशा रखे रहते हैं। इस प्लांट की स्थापना के बाद से दो वर्ष पहले तक यह ठप पड़ा था, लेकिन केजीएमयू के डॉ। संदीप तिवारी को चार्ज मिला तो उन्होंने इसे ठीक कराकर मरीजों के लिए व्यवस्था कर दी। जिसके बाद से यह लगातार काम कर रहा है।

खत्म होने से पहले होती है रीफिलिंग

केजीएमयू में ऑक्सीजन के इंचार्ज डॉ। संदीप तिवारी ने बताया कि यहां पर ऑक्सीजन प्लांट में रीफिलिंग समय पर होने के लिए अनुबंध है। इस पर लगातार एक टीम नजर रखती है। ऑक्सीजन का लेवल 40 परसेंट पहुंचते ही उसे पूरा भर दिया जाता है। जबकि 40 परसेंट पहुंचने के बाद भी एक हफ्ते तक सप्लाई की जा सकती है।

सिलेंडर से सस्ती है लिक्विड ऑक्सीजन

केजीएमयू के डॉक्टर्स के अनुसार लिक्विड ऑक्सीजन, सिलेंडर की अपेक्षा सस्ती पड़ती है। ऑक्सीजन सिलेंडर से सप्लाई करने में 30 परसेंट का नुकसान हो जाता है और कंपनी भी हमेशा सिलेंडर खाली ही भेजती है। सिलेंडर से ऑक्सीजन 14 रुपये किलो पड़ती है। जबकि सिलेंडर में 30 परसेंट आक्सीजन बचने से पहले उसे बंद करना पड़ता है इसको देखते हुए यह 17 से 20 रुपये तक पड़ती है। जबकि लिक्विड ऑक्सीजन सिर्फ 11.23 रुपये प्रति किलो आती है।

लिक्विड ऑक्सीजन है सेफ

डॉक्टर्स के अनुसार लिक्विड ऑक्सीजन प्लांट से ऑक्सीजन सप्लाई करना ही अब तक सबसे अधिक सुरक्षित है। एम्स दिल्ली सहित देश के सभी बड़े संस्थानों में लिक्विड ऑक्सीजन से ही मरीजों को ऑक्सीजन सप्लाई की जाती है। केजीएमयू में ऑक्सीजन प्लांट दो वर्ष पहले ही लगाए गए थे। उससे पहले तक यहां भी सिलेंडर से सप्लाई होती थी और अक्सर ऑक्सीजन का संकट होता था। कई मरीजों को ऑक्सीजन न मिलने की घटनाएं सामने आती थी, लेकिन पिछले दो वर्ष से ऐसी शिकायतें नहीं आई।