एनपीटी के तहत केवल पांच देशों अमरीका, रूस, ब्रिटेन, फ़्रांस और चीन को परमाणु हथियार रखने की मान्यता प्राप्त है।

क्या है एनपीटी?

एनपीटी का मुख्य लक्ष्य गैर परमाणु संपन्न देशों को परमाणु हथियार बनाने से रोकना है।

एनएसजी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा आयोग, परमाणु सामग्री की आपूर्ति (निर्यात) को नियंत्रित करता है और साथ ही परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग करने की भी निगरानी करता है।

परमाणु हथियार रखने की इच्छा वाले देशों के लिए एनपीटी पर्याप्त नहीं था। एनपीटी में शामिल होने से इंकार करने वाले कुछ देशों के पास परमाणु हथियार हैं।

उन कुछ मामलों में से उत्तर कोरिया भी है जिसने एनपीटी में शामिल होने के बाद इससे बाहर निकलने की घोषणा कर दी।

दूसरी तरफ, ऐसे कई मामले भी हैं जिनमें परमाणु हथियार रखने की होड़ में एनपीटी की अनदेखी की गई।

किम-जोंग-उन का होगा गद्दाफी जैसा हाल?

 

भारत

भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर से इंकार करते हुए इसके अधिनियमित होने के चार वर्ष बाद ही 1974 में पहला परमाणु परीक्षण किया।

एनपीटी शांतिपूर्ण परमाणु विस्फ़ोटों को भी सीमित कर रहा है, इसलिए भारत अब तक इसका सदस्य नहीं बना।

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने आज़ादी के बाद ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परमाणु प्रसार का विरोध किया। लेकिन भारत घरेलू स्तर पर शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए इसका समर्थन करता है।

चीन ने 1962 में भारत को युद्ध में पछाड़ दिया और 1964 में यह परमाणु परीक्षण करने में सफल रहा।

1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के बाद भारत को अपनी सुरक्षा की चिंता होने लगी, जिसने इसे परमाणु बम संपन्न बनाने की राह पर आगे बढ़ाया और 1974 में भारत ने पहला परीक्षण किया।

हालांकि इसके बाद अंतरराष्ट्रीय समुदायों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के नतीजे में भारत ने परमाणु गतिविधियों पर आगे बढ़ना रोक दिया।

2006 में भारत ने अमरीका के साथ एक परमाणु समझौता किया। जिसके तहत भारत अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा आयोग के निरीक्षण पर राजी हुआ लेकिन वो एनपीटी में शामिल नहीं हुआ।

किम-जोंग-उन का होगा गद्दाफी जैसा हाल?

 

पाकिस्तान

अमरीका से अपने संबंधों के कारण पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम भारत की तुलना में धीमा है।

1950 के दशक में पाकिस्तान और अमरीका के बीच मज़बूत रिश्ते की शुरुआत हुई थी। पाकिस्तान अमरीका से अपने संबंध पर काफ़ी हद तक निर्भर भी रहा।

लेकिन भारत-पाकिस्तान युद्ध और अमरीका के साथ कमजोर गठजोड़ की वजह से पाकिस्तान ने भी गुप्त रूप से परमाणु विकास शुरू कर दिया।

हालांकि अमरीका ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का जोरदार विरोध किया और उस पर दबाव डाला। लेकिन 1980 में चीज़ें बदल गई, सोवियत संघ ने अफ़गानिस्तान पर हमला किया और इस रणनीतिक कारणों से पाकिस्तान की महत्ता बढ़ गई।

स्थिति ऐसी बन गई कि अमरीका तब तक पाकिस्तान के परमाणु विकास कार्यक्रमों पर हस्तक्षेप नहीं करेगा जब तक कि वो इसका परीक्षण नहीं करता। इसकी वजह से पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम ने बड़ी प्रगति की।

हालांकि सोवियत संघ के विघटन और शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद अमरीका ने एक बार फ़िर पाकिस्तान पर दबाव डाला, लेकिन तब तक पाकिस्तान ने काफ़ी प्रगति कर ली।

नतीजतन, भारत ने 1998 के मई में दो और परमाणु परीक्षण किए। अनुमान लगाया गया कि पाकिस्तान में 100 से अधिक परमाणु हथियार हैं।

यह पाकिस्तान ही है जिसने उत्तर कोरिया के परमाणु विकास को भी प्रभावित किया। पाकितान के परमाणु हथियारों के जनक कहे जाने वाले डॉक्टर अब्दुल कादिर खान ने उत्तर कोरिया, ईरान और लीबिया को यूरेनियम संवर्धन तकनीक बेच दी।

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इसराइल

परमाणु शक्ति के रूप में इसराइल की स्थिति बहुत अनोखी है।

हर कोई इसराइल को परमाणु संपन्न देश के रूप में देखता है, लेकिन इसराइल ने कभी नहीं कहा कि उनके पास परमाणु हथियार हैं।

साथ ही इसराइल एनपीटी का सदस्य भी नहीं है।

भौगोलिक दृष्टि से अरब देशों से घिरे इसराइल ने फ्रांस के सहयोग से 1950 के दशक के मध्य में परमाणु विकास कार्यक्रम की शुरुआत की।

1960 में फ्रांस परमाणु परीक्षण में सफ़ल रहा।

इसराइल अपनी मजबूत परमाणु प्रतिरोध के लिए भी प्रसिद्ध है। 1981 में इसने इराकी रिएक्टरों को तो 2007 में सीरिया के परमाणु रिएक्टरों को हवाई हमलों से नष्ट कर दिया था।

 

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दक्षिण अफ्रीका

दक्षिण अफ्रीका दुनिया का एकमात्र देश है, जिसने परमाणु हथियारों को बनाने के बाद स्वेच्छा से इसे नष्ट कर दिया है।

दक्षिण अफ्रीका में प्रचुर मात्रा में यूरेनियम भंडार है। माना जाता है कि दक्षिण अफ्रीका इजरायल के सहयोग से तेज़ी से परमाणु हथियारों को प्राप्त करने में सफल रहा।

1979 में अमरीकी उपग्रहों ने दक्षिण अफ्रीका में प्रिंस एडवर्ड आइलैंड के पास इससे जुड़ा कुछ पकड़ा भी लेकिन औपचारिक तौर पर यह साबित नहीं हो सका।

सियोल विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफ़ेसर दोंग कहते हैं, "क्यूबा के सैनिकों को पड़ोसी अंगोला में तैनात किया गया था, लेकिन यह बहुत बड़ा नहीं था।"

शीत युद्ध की समाप्ति के बाद क्यूबाई सैनिकों को वापस बुला लिया गया। दक्षिण अफ्रीका की नस्लवाद और परमाणु हथियारों से अंतरराष्ट्रीय दबाव खत्म सा हो गया और दक्षिण अफ्रीका ने 1993 में अपने परमाणु हथियारों का त्याग कर दिया।

1994 में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा आयोग ने निरीक्षण के बाद यह घोषित किया कि दक्षिण अफ्रीका ने अपने परमाणु हथियार को पूरी तरह से खत्म कर दिया है।

किम-जोंग-उन का होगा गद्दाफी जैसा हाल?

 

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लीबिया

उत्तर कोरिया की ही तरह एनपीटी में शामिल होने के बावजूद लीबिया ने भी परमाणु हथियारों को चुपके से बनाने की कोशिश की।

हालांकि, अंतरराष्ट्रीय दबाव और प्रतिबंधों के बाद इसने 2003 में इसके सामूहिक खात्मे और अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा आयोग के निरीक्षण को मंजूरी देने की बात की।

2011 में लीबिया में सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए। लीबिया के तानाशाह शासक कर्नल गद्दाफ़ी ने बलपूर्वक प्रदर्शनों को दबा दिया, इसके बाद वहां सिविल युद्ध शुरू हो गया।

तब से, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के आधार पर नाटो ने गद्दाफ़ी पर हमले की शुरुआत की।

किम-जोंग-उन का होगा गद्दाफी जैसा हाल?

 

एक ज़माने में लोगों को भयभीत करने वाला तानाशाह आड़ लेने के लिए पानी के एक पाइप में घुस गया। यहीं पर वो पकड़े गए। और एक तानाशाह का दुखद अंत हुआ।

उत्तर कोरिया के लिए लीबिया का मामला एक अच्छा उदाहरण है।

कुकमिन विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर एंड्री लेंकोव ने एक इंटरव्यू में कहा, "लीबिया को परमाणु हथियारों को छोड़ने पर पश्चिमी देशों ने इनाम दिया, लेकिन गद्दाफ़ी शासन में लोकतंत्र की जड़ें हिल गईं, जो उत्तर कोरिया के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है।"

किम-जोंग-उन का होगा गद्दाफी जैसा हाल?

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