इस दशक की आखिरी नीलामी
इस बार के आईपीएल ऑक्शन की सबसे खास बात ये है कि ये इस दशक में खिलाड़ियों की आखिरी नीलामी हो रही है। यही वजह है की सभी फ्रैंचाइजी बहुत बढ़ कर दाम देने की होड़ नहीं करेंगी, क्योंकि 2018 में फिर से सभी खिलाड़ियों को नीलामी के दौर से गुजरना पड़ेगा।
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कैसे शुरू होती है नीलामी
देशी विदेशी सभी खिलाड़ियों की नीलामी की प्रक्रिया एक सी ही होती है। सबसे पहले नीलामी के लिए चुने गए सभी खिलाड़ियों को अलग-अलग पूल में डाल दिया जाता है, जैसे गेंदबाज, बल्लेबाज, विकेटकीपर और अनकैप्ड खिलाड़ी आदि। उसके बाद स्टेज से नीलामी के लिए खिलाड़ी का नाम पुकारा जाता है और उसके बेस प्राइज की घोषणा की जाती है। बेस प्राइस वो मूल्य होता है जो बीसीसीआई खिलाड़ी के लिए निर्धारित करती है और जिसके ऊपर से बोली लगनी प्रारंभ होती है। इसके बाद टीम के ओनर्स अपनी टीम के लिए बोली लगाते हैं।
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ये है प्रक्रिया
हर खिलाड़ी पर बोली लगाने के लिए टीम के अधिकारियों को अपनी टीम के नाम वाला पैडल ऊपर उठाना होता है। जिसकी बोली सबसे ज्यादा होती है उसे वह खिलाड़ी मिल जाता है। जब तक बाकी टीमें नहीं हट जाती और नीलामी करने खिलाड़ी के बेचे जाने का एलान नहीं करता बोली जारी रहती है। अगर किसी खिलाड़ी के लिए कोई भी फ्रेंचाइजी टीम अपना पैडल नहीं उठाती और बोली नहीं लगाती तो खिलाड़ी नहीं बिक पाता। यानि उसे कोई नहीं खरीदता। जब सभी खिलाडि़यों के नीलामी पूरी हो जाती है तब नहीं बिकने वाले खिलाडि़यों को फिर से पूल में डाला जाता है और एक और मौका दिया जाता है। दोबारा बिकने के लिए आने के बाद खिलाड़ी की बेस प्राइस आधी रह जाती है। फिर भी कोई अगर उस खिलाड़ी को नहीं खरीदता तो दोबारा उसकी बोली नहीं होती है। ऐसे खिलाड़ी आईपीएल का हिस्सा नहीं होंगे। इस बार भी नीलामी की मेजबानी वेल्श नीलामकर्ता रिचर्ड मेडले ने की है।
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कैसे बढ़ती है नीलामी
बेस प्राइस के ऊपर नीलामी की प्रक्रिया कुछ इस तरह चलती है। जिस खिलाड़ी का बेस प्राइज 1 करोड़ रुपए है उसकी नीलामी 5 लाख से बढ़ती है। वहीं 3 करोड़ के बेस प्राइस वाले खिलाड़ी की नीलामी 10 लाख से बढ़ायी जाती है। 3 करोड़ से 5 करोड़ की मूल्य सीमा पर नीलामी 20 लाख, 30 लाख, 30 लाख, 20 लाख, 20 लाख, 30 लाख, 30 लाख और फिर 20 करके बढ़ायी जाती हैं। जबकि 5 करोड़ से अधिक बेस प्राइस पर नीलामी 50 लाख से बढ़ती है। पिछली नीलामियों में सीक्रेट बिड यानि गुप्त नीलामी का प्रावधान था जहां ये नहीं पता चलता था कि किस फ्रेंचाइजी से किस खिलाड़ी पर और कितना मूल्य लगाया। बिड में शामिल टीमें अपनी नीलामी की रकम नीलामीकर्ता को सौंप देती थी और सबसे ज्यादा बोली वाली टीम को खिलाड़ी सौंप दिया जाता था।

 

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