मामला : बांबे हाईकोर्ट के फैसले को डॉ. सुभाष काशीनाथ महाजन ने दी थी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

कानपुर/नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. सुभाष काशीनाथ महाजन की एक अपील पर एससी/एसटी एक्ट में संशोधन के जो दिशानिर्देश जारी किए हैं। डॉ. महाजन महाराष्ट्र सरकार में तकनीकी शिक्षा निदेशक के पद पर जब कार्यरत थे तब उन्हें एससी/एसटी एक्ट कानून के उल्लंघन का आरोपी बना दिया गया था क्योंकि उन्होंने एक स्टोर कीपर की शिकायत पर विभाग के दो अधिकारियों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं दी थी। महाजन ने इस मामले के खिलाफ बांबे हाई कोर्ट में अपील की लेकिन उन्हें वहां से कोई राहत नहीं मिली। तब महाजन ने बांबे हाई कोर्ट के इस फैसले 5 मई, 2017 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

मौजूदा कानून : अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989

- जाति सूचक शब्दों के संबोधन या उत्पीड़न में एससी/एसटी एक्ट के तहत शिकायत मिलने पर तुरंत एफआईआर दर्ज

- एफआईआर दर्ज होते ही आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी

- इस मामले में आरोपी को अग्रिम जमानत नहीं मिलती थी

- गिरफ्तारी के बाद नियमित जमानत सिर्फ हाईकोर्ट से ही

- मामले की जांच पुलिस का कोई भी अधिकारी कर सकता था, डीएसपी लेवल की अधिकारी द्वारा जांच अनिवार्य नहीं

- इस कानून के उल्लंघन के आरोप में सरकारी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के लिए संबंधित विभाग से मंजूरी अनिवार्य नहीं

सुप्रीम कोर्ट का फैसला : एससी/एसटी एक्ट में नई गाइडलाइंस

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श गोयल और यूयू ललित की बेंच ने एक फैसले में कहा कि कई मामलों में निर्दोष नागरिकों को आरोपी बना दिया जाता है और सरकारी कर्मचारी डर से अपने कर्तव्य को अंजाम नहीं दे पाते, जाहिर सी बात है एस/एसटी कानून बनाते समय विधायिका की ऐसी नियत नहीं होगी। न्यायिक समीक्षा में प्रथम दृष्टया मामला यदि झूठा लगता है तो अग्रिम जमानत दी जा सकती है। इस कानून के उल्लंघन करने वाले सरकारी कर्मचारी को उसके अप्वाइंटिंग अथॉरिटी और सामान्य नागरिक को एसएसपी की मंजूरी के बाद ही गिरफ्तार किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश

- तत्काल गिरफ्तारी से राहत, जांच के बाद गिरफ्तारी

- डीएसपी लेवल के पुलिस अधिकारी द्वारा जांच अनिवार्य

- 7 दिन के भीतर जांच करनी होगी

- सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी के लिए अप्वाइंटिंग अथॉरिटी से और सामान्य नागरिक को अरेस्ट करने के लिए एसएसपी की इजाजत जरूरी

- मौजूदा कानून में कोई बदलाव नहीं, सिर्फ तत्काल गिरफ्तारी के प्रावधान में ढील

- मामले में अग्रिम जमानत मिल सकती है, बशर्ते न्यायिक समीक्षा के दौरान प्रथम दृष्टया मामला झूठा लगे तो

- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस फैसले से एससी/एसटी एक्ट की धारा 18 को कमजोर नहीं किया गया है। कोर्ट को यदि ऐसा लगता है कि मामला सही है और आरोपी की गिरफ्तारी जरूरी है तो कानून अपना काम करेगा। ध्यान रहे कि इस एक्ट की धारा 18 के तहत आरोपी को अग्रिम जमानत नहीं मिल सकती।

प्रतिक्रिया : सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर वकीलों का कहना संतुलित हुआ एससी/एसटी एक्ट

कानपुर जिला न्यायालय में अधिवक्ता इंदीवर बाजपेयी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का एससी/एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी सबंधी प्रावधान में संशोधन का कतई यह मतलब नहीं है कि यह कानून कमजोर हो गया है। कोई भी कानून लोगों को न्याय दिलाने के लिए बनता है। चूंकि कानून अस्तित्व में है तो दलितों, आदिवासियों का उत्पीड़न करने वाले को कड़ा दंड मिलता रहेगा। प्रावधान में संशोधन से बेकसूर लोग नहीं फंसेंगे। कानपुर जिला न्यायालय के एडवोकेट अनंत शर्मा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद एससी/एसटी एक्ट अब बैलेंस हो गया है। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41ए, 41बी में संशोधन के बाद से ही एससी/एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी के प्रावधान से कानूनी विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। सीआरपीसी की धारा 41ए, 41बी में संशोधन के तहत 7 वर्ष या उससे कम की सजा के मामले में तत्काल गिरफ्तारी नहीं हो सकती। हालांकि इसमें कुछ अपवाद भी हैं जैसे आरोपी के भाग जाने की आशंका आदि में तत्काल गिरफ्तारी हो सकती है। इधर एससी/एसटी एक्ट में एफआईआर दर्ज होते ही तत्काल गिरफ्तारी का प्रावधान था, जिसके शिकंजे में कई बार निर्दोष नागरिक फंस जाते थे। साथ ही सरकारी कर्मचारियों को भी अपनी ड्यूटी करने में दिक्कत होती थी।

(एजेंसी इनपुट सहित)

National News inextlive from India News Desk