बचपन में सब मस्ता बुलाते थे

मदनमोहन मालवीय जी का जन्म 25 दिसंबर 1861 में प्रयाग के अहियापुर में पं ब्रजनाथ मालवीय व मुना देवी के यहां हुआ था। मदनमोहन बड़े प्रसन्न स्वभावके थे। इसीलिए बचपन में उन्हें सब मस्ता कहकर बुलाते थे। उन्हें गुल्ली-डंडा, व्यायाम करने का काफी शौक था।

लिखने-पढ़ने का बड़ा शौक रहा

मदनमोहन को ही बचपन से ही लिखने-पढ़ने का बड़ा शौक था। वह 15 वर्ष की आयु में उपनाम 'मकरंद' से कविताएं लिखने लगे थे। मदनमोहन ने 1877 में हाईस्कूल पास किया। इसके बाद ही 1878 में कुंदन देवी से मदनमोहन का विवाह हो गया।

कचहरी में हिंदी को प्रवेश द‍िलाने वाले मालवीय जी को गांधी जी ने बनाया था 'महामना'

आर्थिक तंगी का सामना कर रहे थे

मदमोहन को इस दौरान आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा था। 1884 में कोलकाता से बीए की परीक्षा पास की। 1885 में 50 रुपये प्रतिमाह पर एक स्कूल में शिक्षक के पद पर तैनात हुए। वहीं 1886 में राष्ट्रीय महासभा में अपने एक भाषण की वजह से छा गए थे।

कचहरियों में हिंदी को प्रवेश

देश को आजादी दिलाने में एक खास भूमिका निभाने वाले मदनमोहन ने 1898 में सर एंटोनी मैकडोनेल के सम्मुख हिंदी भाषा की प्रमुखता से पेश किया। इसके बाद कचहरियों में इस भाषा को बड़े स्तर पर प्रवेश दिलाया। मालवीय ने 1907 में 'अभ्युदय' हिंदी साप्ताहिक का शुभारंभ किया था।

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'महामना' की उपाधि दी

मदनमोहन ने 1940 में 'पूर्ण स्वराज' व 1942 में 'अपना देश-अपना राज' का नारा देकर देशवासियों को एकता का अहसास कराया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और मदनमोहन एक दूसरे के बेहद करीब थे। गांधी जी ने ही मदनमोहन को 'महामना' की उपाधि दी थी।

दुनिया को अलविदा कह दिया

महामना की उपाधि से नवाजे गए ये इकलौते शख्स थे। करीब चार बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे मदनमोहन ने बाद में 'कांग्रेस नेशनलिस्ट पार्टी' का निर्माण किया। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापक मदनमोहन ने 12 नवंबर 1946 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

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