फागुन में होली बसंतपंचमी से ही
हालाकि औपचारिक रूप से होली दो ही दिन होती है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते है। दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। पर कई जगहों पर होली पांच दिन और सात दिन तक भी मनायी जाती है। इसके पीछे सामाजिक और राजनैतिक कई कारण छुपे हैं।  फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्योहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है।

होली का इतिहास
होली काफी प्राचीन काल से मनाया जाने वाला भारतीय उत्सव है। पहले इसे होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता था। वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा गया है। इतिहास कारों ने इस त्योहार का वर्णन करते हुए बताया है कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। होली का जिक्र अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। जैमिनी के पूर्व मीमांसा सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र। नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। ईसा से 300 वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी होली का जिक्र पाया गया है। 

Holi hands

सांप्रदायिक सदभाव
होली एक सांप्रदायिक सदभाव का त्योहार भी है। भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया है कि होलिकोत्सव केवल हिंदू ही नहीं मुसलमान भी मनाते हैं। सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने भी अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होली का वर्णन किया है। मुगल काल में भी मुगल शासकों के होली मनाने जिक्र है। अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन इतिहास में मिलता है। अलवर संग्रहालय के एक चित्र में जहाँगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है। इतिहास में बताया गया है कि शाहजहाँ के ज़माने में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी नाम से मनायी जाती थी।  अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे।

विभिन्न राज्यों में होली से जुड़े उत्सव
भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में भिन्नता के साथ मनाया जाता है। ब्रज की होली आज भी सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है। बरसाने की लठमार होलीकाफ़ी प्रसिद्ध है। मथुरा और वृंदावन में भी 15 दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है। कुमाऊँ की गीत बैठकी में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियाँ होती हैं। हरियाणा की धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है। बंगाल की दोल जात्रा चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। महाराष्ट्र की रंग पंचमी में सूखा गुलाल खेलने, गोवा के शिमगो में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा पंजाब के होला मोहल्ला में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा है। तमिलनाडु की कमन पोडिगई मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित वसंतोतसव है जबकि मणिपुर के याओसांग में योंगसांग उस नन्हीं झोंपड़ी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है। दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है, छत्तीसगढ़ की होरी में लोक गीतों की अद्भुत परंपरा है। मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है भगोरिया जो होली का ही एक रूप है। बिहार का फगुआ जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है।

होली से जुड़ी कहानियां
होली से जुड़ी एक कहानी तो लगभग हर भारतवासी जानता है कैसे हिरणयाकश्यप ने अपने बेटे प्रहलाद को अपनी जगह भगवान में आस्था रखने के कारण अपनी बहन होलिका के साथ बिठा कर जलाने की योजना बनायी। क्योंकि होलिका को आग से ना जलने का वरदान था पर होलिका का दहन हो गया और प्रहलाद बच गया। बाद में हिरणयाकश्यप का भी भगवान के नरसिंह अवतार ने किया। पर इसके अलावा भी कुछ कथायें इस पर्व के साथ जुड़ी हैं। यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म कथा से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।

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