1 . डॉक्टर राधाकृष्ण्ान भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद्, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था।

2 . डॉ. राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम में तेलुगु नियोगी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम 'सर्वपल्ली वीरास्वामी' और माता का नाम 'सीताम्मा' था। हालांकि इनके पिता स्थानीय जमींदार के पास राजस्व विभाग में काम करते थे, इसके बावजूद वो नहीं चाहते थे कि राधाकृष्णन स्कूल में जाकर अंग्रेजी की पढ़ाई करें। इसके बजाए वो चाहते थे कि राधाकृष्णन एक पुजारी बनें। लंबे समय बाद वो तैयार हुए उनको स्कूल भेजने के लिए।  

3 . राधाकृष्णन का बचपन तिरूतनी व तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों पर ही व्यतीत हुआ। उन्होंने पहले आठ वर्ष तिरूतनी में ही गुजारे। हालांकि उनके पिता पुराने विचारों के थे और उनमें धार्मिक भावनाएं भी थीं। वह चाहते थ्ो कि राधाकृष्णन पुजारी बनें, इसके बावजूद उन्होंने इनको क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरूपति में 1896-1900 के मध्य विद्याध्ययन के लिये भेजा। उसके अगले 4 वर्ष (1900 से 1904) की उनकी शिक्षा वेल्लूर में हुई। इसके बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास में शिक्षा प्राप्त की।

4 . शिक्षा के क्षेत्र में अहम योगदान के लिए स्वतंत्रता के बाद इनके नाम के आगे 'सर' सरीखे शीर्षक को रुकवा कर किंग जॉर्ज ने इन्हें 'नाइट' की उपाधि से नवाजा।

5 . इन्होंने मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज, मैसूर विश्वविद्यालय, कलकत्ता विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में भी पढ़ाया।

6 . दुनिया के नक्शे में इन्होंने ही भारतीय दर्शन को उतारा।

7 . डॉक्टर राधाकृष्णन का कहना था कि किताब पढ़ना आपको एकान्त के प्रतिबिंब और सच्चे आनंद को पाने की आदत देता है।

8 . राधाकृष्णन के शिष्य उन्हें बहुत प्यार और सम्मान देते थे। उनके बीच वह काफी प्रसिद्ध हस्ती हुआ करते थे। वे सब उन्हें इतना प्यार करते थे कि बतौर प्रोफेसर कलकत्ता जाने से पहले उनके सभी स्टूडेंट्स ने स्टेशन तक आकर फूलों और गुलदस्ते के साथ उनको विदाई दी।

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