नासा के क्यूरियोसिटी रोवर ने मंगल की सतह पर खोजी थी दरारें

नासा द्वारा मंगल ग्रह पर भेजे गए Curiosity rover ने 6 अगस्त 2012 को लाल ग्रह पर लैंड किया था। इस रोवर ने मंगल पर काफी वक्त बिताया और ग्रह पर घूमघूम इसकी सतह और तमाम बारीकियों की विस्तृत जांच की। इसी दौरान रोवर ने मंगल की सतह पर तमाम ऐसी दरारें खोजी थीं। जिनके आधार पर ही वैज्ञानिक आज इस नतीजे पर पहुंच पाए हैं कि मंगल ग्रह पर भी पानी की झीले हुआ करती थीं, लेकिन वो सभी झीलें आज से करीब 3.5 अरब साल पहले ही सूख गईं। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने लाल ग्रह की सतह पर मौजूद लंबी दरारों का अध्ययन करने के बाद यह दावा किया है। इन दरारों की खोज नासा के रोवर ने साल 2017 के दौरान ही की थी। वर्ल्ड फेमस जियोलॉजी जर्नल में गुरुवार को छपी इस रिसर्च के मुताबिक मंगल पर मौजूद झरने भी धरती के झरनों की ही तरह एक निर्धारित सिस्टम पर चलते थे।

कभी मंगल ग्रह पर भी थीं पानी की झीलें,पर सूख गईं इतने सालों पहले!

इस खोज से हमारे नजदीकि ग्रह के मौसम के बारे में हुआ बड़ा खुलासा

हमारे लिए यह बात भले ही कोई खास मायने न रखती हो, लेकिन वैज्ञानिकों के लिए यह बहुत ही अहम जानकारी है, जिससे फ्यूचर में धरती के मौसम को लेकर शायद कोई बड़ी भविष्यवाणी की जा सके। कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की रिसर्च टीम ने लंबी चली अपनी रिसर्च में इस बात से पर्दा उठाया है कि कई अरब साल पहले धरती के पड़ोसी ग्रह का मौसम आखिर कैसा था। इस रिसर्च प्रोजेक्ट के मुख्य लेखक Nathaniel Stein ने बताया है कि किसी भी प्राकृतिक जलस्रोत जैसे झील की तलछट के हवा के संपर्क में आने से ऐसी सूखी दरारों का निर्माण होता है, जो मंगल की सतह पर नजर आ रही हैं। ये दरारें झीलों के किनारे की बजाय उनके केंद्र के नजदीक मौजूद हैं। इससे पता चलता है कि समय के साथ साथ उन झीलों के वॉटर लेवल में भी उतार-चढ़ाव चलता रहता था। वैज्ञानिकों को उम्मीद है नासा के रोवर ने मंगल ग्रह पर जो बहुत सारी नई चीजें खोजी हैं, उन पर आगे की रिसर्च से हमें फ्यूचर में तमाम महत्वपूर्ण जानकारियां मिल सकती हैं।

इनपुट: IANS


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