क्या है भूमि अधिग्रहण
यूं तो सालों से भूमि अधिग्रहण का मुद्दा उठता रहा है. किसानों, मजदूरों, मछुआरों के जीवन की नींव रही भूमि को जबरन छीनकर राज्य अपना विकास नियोजन आगे बढ़ाता रहा और स्वावलंबी श्रमजीवी समाज बराबर उजड़ता रहा. 1984 में अंग्रेजों की ओर से शुरू की गई ये प्रथा 2013 तक चली. 2013 में कांग्रेस की सरकार ने इस प्रथा की शर्तों में कुछ वाजिब बदलाव करें. इस दौरान भी प्रथा के नाम पर करोड़ों लोगों का शोषण किया गया. उनके न तो कुछ पूछा गया और न ही उन्हें कुछ बताया गया. उसके बाद अब भाजपा की मोदी सरकार ने तो इसके कानूनों को और भी ज्यादा कट्टर और श्रमजीवियों का भरसक शोषण करने वाला बना दिया. आगे जानेंगे कि किन वजहों से आखिरकार भाजपा की ओर से बदले बिल के कानूनों का विरोध किया जा रहा है. एनडीए सरकार ने ऐसे क्या बदलाव किए हैं बिल में....

पहला बदलाव: समय सीमा को लेकर बदला नियम
जमीन अधिग्रहण के बिल में सरकार ने कांग्रेस के बनाये बिल में सबसे बड़ा बदलाव जो किया है वो यही है. यह बदलाव है रेट्रोस्पेक्टिव क्लॉज़ को लेकर. आपको बताते चलें कि कांग्रेस के समय में 2013 में यह व्यवस्था की गई थी कि अगर किसी जमीन के अधिग्रहण को कागजों पर ही पांच साल पूरे हो गये और सरकार के पास जमीन का कब्जा अभी तक नहीं आया है. जमीन के असल मालिक को मुआवजा भी नहीं दिया गया है, तो जमीन पर कब्जे की सरकार की समयावधि खत्म हो जाएगी. उसके बाद सरकार उस जमीन पर कब्जा नहीं कर सकेगी. मतलब मूल मालिक जमीन को वापस ले सकता है. वहीं अब सरकार ने इसमें बदलाव कर दिया. वह यह है कि मामला अगर अदालत में चला जाता है तो मुकदमेबाजी में लगे समय को पांच साल की मियाद में नहीं जोड़ा जाएगा.  

दूसरा बदलाव : हटी पांच साल वाली शर्त
इतना ही नहीं अब तो सरकार ने जमीन पर पांच साल के भीतर काम शुरू करने की भी शर्त को हटा लिया है. बिल के पुराने नियम के तहत जमीन लेने के बाद कंपनियों को पांच साल के अंदर उस पर काम शुरू करना जरूरी था, लेकिन अब इस पाबंदी को भी हटा दिया गया है. पुराने बिल में व्यवस्था थी कि पांच साल के भीतर काम शुरू न होने पर जमीन मालिक इसको वापस ले सकता है. अब ऐसा भी नहीं हो सकेगा.

तीसरा बदलाव : बदल गई मुआवजे की परिभाषा
मौजूदा सरकार ने रेट्रोस्पेक्टिव क्लॉज के तहत मुआवजे की परिभाषा को भी पूरी तरह से बदल कर रख दिया है. पुराने बिल के अनुसार अगर संबंधित व्यक्ति को मिलने वाला मुआवजा उसके खाते में नहीं भी गया है, तो सरकार उसे अदालत में या सरकारी खाते में जमा कर देगी. उसे भी मुआवजा ही माना जाएगा. फिर चाहें भूमि के असल मालिक को मुआवजा मिले या न मिले, सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता.  

चौथ बदलाव : जवाबदेही के प्रावधान में की ढील
सरकार ने कानून की अनदेखी करने और कानून तोड़ने वाले अधिकारियों के खिलाफ भी कदम उठाने के लिए रखे गए प्रावधान में ढील कर दी है. बिल में नए बदलाव के अनुसार किसी अफसर पर कार्रवाई के लिए अब संबंधित विभाग की अनुमति लेनी बहुत ज्यादा जरूरी होगी. मतलब अब अफसर तो इससे साफ ही बच निकलेंगे.

पांचवा बदलाव : बिल्कुल जरूरी नहीं है सहमति
कांग्रेस के समय 2013 के बिल में एक महत्वपूर्ण प्रावधान था. वह था लोगों की सहमति. इसके तहत सरकार और निजी कंपनियों के साझा प्रोजेक्ट में 80 फीसदी जमीन मालिकों की सहमति बहुत ज्यादा जरूरी थी. वहीं अगर परियोजना पूरी तरह सरकारी है तो इसके लिए 70 प्रतिशत मालिकों की मंजूरी जरूरी थी, लेकिन नए कानून में इसे भी खत्म कर दिया गया है.

छठा बदलाव : भूमि मालिक की इच्छा का कोई फर्क नहीं पड़ता
भाजपा सरकार ने जिस तरह से नया अध्यादेश जारी किया है, उससे तो साफ हो गया है कि जमीन मालिक चाहे या न चाहे, भूमि का अधिग्रहण तो होकर ही रहेगा. ऐसे में अगर वो मुआवजा लेने से इनकार करता है, तो इसे सरकारी खजाने में जमा कर जमीन मालिक को भूमि स्वामी को उसकी भूमि से पूरी तरह से बेदखल किया जा सकेगा. भूमि मालिक की मंजूरी से सरकार का कोई लेना-देना न होगा.

सातवां बदलाव : कई फसलों वाली जमीन पर भी कर सकते हैं कब्जा  
कांग्रेस के साशनकाल में इस नियम को भी प्रावधान दिया गया कि अगर किसी भूमि पर किसान ने एक से ज्यादा फसल बो रखी है, तो उसका अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा. भाजपा ने इस प्रावधान को भी खत्म कर दिया. अब अगर किसी जमीन पर किसान की एक से ज्यादा भी फसल है ओर वो सरकार को चाहिये, तो सरकार को मिलेगी. फिर चाहें उससे किसान की सभी फसलों को कितना भी नुकसान क्यों न हो.

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