LUCKNOW: बुजुर्गो को बेकार की चीज मानकर घर से निकालकर लावारिस हालात में छोड़ देने के किस्से आपने फिल्मों में तो अक्सर ही देखे होंगे लेकिन, मानवता को शर्मसार करता यह ट्रेंड अब राजधानी में भी कॉमन होता जा रहा है। हालत यह है कि राजधानी की सड़कों या फिर सरकारी हॉस्पिटल्स में ऐसे मरीज भारी तादाद में देखे जा सकते हैं, जिन्हें भगवान भरोसे या यूं कहें उनकी नियति के हवाले छोड़ दिया गया है। बीमारी की हालत में सड़क किनारे पड़ा देख अगर कोई लखनवाइट या पुलिस ऐसे बुजुर्गो को हॉस्पिटल में एडमिट करा देती है तो यह मरीज स्वस्थ होने के बाद भी वहां से जाने को तैयार नहीं। ऐसी हालत में हॉस्पिटल प्रशासन और पुलिस को भी समझ नहीं आ रहा कि जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुके ऐसे बुजुर्गो को आखिर मदद पहुंचाई भी जाए तो कैसे?

बलरामपुर में 9 मरीज

बलरामपुर अस्पताल में इस समय 9 लावारिस मरीज भर्ती हैं। जिनमें से पांच पुरूष और चार महिलाएं हैं। इनमें दो महिलाएं और दो पुरूष पिछले एक माह से अधिक समय से भती हैं। वहीं एक महिला मरीज को बलरामपुर में इलाज कराते 3 माह से अधिक हो गए। न्यू बिल्डिंग स्थित फ‌र्स्ट फ्लोर में 20 नंबर वार्ड में पांच मरीज भर्ती हैं। एक बेड पर दो बच्चे और तीन अन्य मरीज हैं। लगभग 65 साल के जगदीश पिछले लगभग एक माह से भर्ती हैं। रोते हुए मदद मांगते जगदीश के पैर में सड़न के कारण कीड़े पड़ गए थे। जिसके कारण उन्हें किसी ने बलरामपुर अस्पताल में भर्ती करा दिया। जहां पर वह पिछले एक माह से इलाज करा रहे हैं। जगदीश ने बताया कि वह लखनऊ के ही हैं और फल का कारोबार करते थे। उनके दो बेटे हैं लेकिन समय के साथ बच्चों ने साथ देना छोड़ दिया। जिसके कारण कोई भी साथ में नहीं है। यहां पर अस्पताल के कर्मचारी ही इलाज और सारी मदद करते हैं। उनके बगल में देवरिया के राजेंद्र ने बताया कि पिता इलाज कराते कराते जमीन बिक गई। अब कोई नहीं है। एक्सीडेंट के बाद कोई साथ नहीं। परिवार भी साथ नहीं दे रहा। जिसके कारण यहां पर 1 अगस्त को पुलिस ने भर्ती करा दिया।

इसी वार्ड में एक तीसरे बुजुर्ग व्यक्ति भी भर्ती हैं लेकिन वह अपने बारे में कुछ बता न सके। वार्ड ब्वाय ने बताया कि वह भी कई दिन से भर्ती हैं लेकिन कुछ बता नहीं पा र हैं।

नर्स और वार्ड ब्वाय ही बने परिवार

दूसरी तरफ राजधानी के हार्ट में स्थित डॉ। श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) में मेन बिल्डिंग के फ‌र्स्ट फ्लोर पर 19, 20, 21 और 35, 40 बेड पर तीन लावारिस मरीज भर्ती हैं। सब को भर्ती हुए एक माह से अधिक हो गया है। तीन एक बाबा जी कुछ देर पहले ही सीढि़यों से लाठी के सहारे नीचे उतर गए। वह इस समय ठीक हैं। दोपहर बाद खाना खाने के बाद वह निकल जाते हैं और देर शाम फिर वापस आते हैं। ड्यूटी पर मौजूद नर्स ने बताया कि जो मरीज ठीक हो जाते हैं वह इधर उधर घूमने चले जाते हैं और फिर आकर सोने के लिए यहां शाम को आ जाते हैं। ज्यादातर के परिजन ही नहीं हैं। यह सब इतने बूढ़े हैं कि अक्सर बीमार हो जाते हैं। जिन्हें या तो पुलिस गंभीर हालत में इमरजेंसी में भर्ती कराती है या फिर 108 एंबुलेंस भर्ती कराती है। यहां पर वार्ड ब्वाय ही उन्हें नहलाता और सफाई करता है। खाना भी सबको दे दिया जाता है।

केजीएमयू ट्रॉमा बन रहा सहारा

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में हर माह 20 से 25 मरीज ट्रॉमा सेंटर में लावारिस हालत में भर्ती होते हैं। जिसमें से 3 से 5 मरीज ऐसे होते हैं कि उनका कोई अपना उन्हें लेने नहीं आता। जबकि शेष मरीज एक्सीडेंटल होते हैं और उनके परिजन उन्हें ले जाते हैं1 डिप्टी एमएस डॉ। वेद प्रकाश ने बताया कि ट्रॉमा सेंटर में हमेशा 3-4 मरीज भर्ती रहते हैं। जो अपने घर का पता बताते हैं उन्हें उनके घर वालों को जानकारी देकर भेज दिया जाता है। लेकिन जो घर के बारे में जानकारी नहीं दे पाते हैं ठीक होने पर उन्हें पुलिस के द्वारा घरवालों तक या फिर वृद्धाश्रम पहुंचाया जाता है.आई नेक्स्ट ने पिछले शुक्रवार को एक जोला नाम के मरीज को गंभीर हालत में ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया था। जिसका इलाज चल रहा है। मरीज का इलाज कर रहे सर्जरी विभाग के डॉ। संदीप तिवारी के अनुसार मरीज की हालत ठीक है। उन्होंने बताया कि मरीज घर जाना नहीं चाहता। खा पी भी रहा है। ये अभी पूरी तरीके से ठीक है। बात करने की कोशिश की तो पता चला कि वह सीतापुर के किसी बरखवा गांव का है। इसका एक बेटा और एक बेटी है। घर जाने के बारे में पूछा गया तो बोला कि ' का करिबे जाए के। कोउ नहिन है हमार'। डॉ। संदीप ने बताया कि पूरी तरह ठीक होने पर उसके घर को ट्रेस करने की कोशिश की जाएगी। अगर नहीं मिला तो पर्सनली किसी वृद्धाश्रम में भेजने का प्रयास किया जाएगा।

लावारिस बुजुर्गो की हालत बहुत बुरी है। लोग अपने पैरेंट्स को घर से निकाल देते हैं जिसके बाद भूख प्यास से हालत खराब होने या फिर घायल होने पर पुलिस या 108 एंबुलेंस यहां ले आती है। मरीज ठीक होने पर भी नहीं जाते क्योंकि उनके पास न तो रहने की जगह है न वह अपने घर जाना चाहते हैं।

डॉ। आशुतोष दुबे, एमएस, सिविल अस्पताल

कई लावारिस मरीज भर्ती हैं जिनका इलाज किया जा रहा है। बड़ी समस्या है कि ठीक होने के बाद ये कहां जाएं यह बड़ा सवाल है। छुट्टी होने के कुछ दिन बाद ये फिर यही आ जाते हैं। ठीक होने के बाद कोई इन्हें लेने के लिए आगे नहीं आता। जल्द ही जिला प्रशासन से इनको सुविधा देने के बारे में बात की जाएगी।

डॉ। राजीव लोचन, एमएस, बलरामपुर