-लक्ष्मी रानी के सपनों को टाटा कंपनी ने लगाए पर

-यूसिल नरवा में कार्यरत हैं लक्ष्मी के पिता

द्द॥न्ञ्जस्॥ढ्ढरुन्: ईस्ट सिंहभूम जिले के घाटशिला अनुमंड के एक छोटे से गांव की रहने वाली लक्ष्मी रानी ने 2016 में होने वाले ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर घाटशिला समेत पूरे झारखंड का नाम रोशन कर दिया है। बेहद साधारण परिवार में पली-बढ़ी लक्ष्मी रानी की सफलता से उसके परिजन प्रफुल्लित हैं। लक्ष्मी रानी इन दिनों खेल के सिलसिले में डेनमार्क में है। मूल रूप से घाटशिला के बागुला गांव निवासी दिकू माझी और पद्मिनी माझी की चार संतानों में से सबसे बड़ी है लक्ष्मी रानी। उसकी प्राथमिक शिक्षा घाटशिला अनुमंडल के हरिन डुमरी प्राइमरी स्कूल में हुई। कक्षा छह से कक्षा नौ तक की पढ़ाई पोटका प्रखंड स्थित केरो स्कूल में हुई थी। नरवा यूसिल में कार्यरत लक्ष्मी के पिता दिकू माझी ने बताया कि जब वह कक्षा नौ में पढ़ रही थी तब जेआरडी की टीम स्कूल आई और लक्ष्मी की खेल प्रतिभा को देखकर उसका चयन कर लिया। इसके बाद उसका सारा प्रशिक्षण जेआरडी टाटा में हुआ। जेआरडी के हॉस्टल में रहकर लक्ष्मी ने तीरंदाजी के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। वर्तमान में वह बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ रही है। वर्ष 2010 में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में उसे रेलवे में नौकरी मिली।

बचपन से थी जिद्दी

लक्ष्मी की मां पद्मिनी ने कहा कि उसकी सफलता पर उन्हें बहुत गर्व है। उन्होंने समाज के लोगों को संदेश देते हुए कहा कि अपनी बेटियों को आगे बढ़ाो के लिए प्रोत्साहित करें। उन्होंने बताया कि लक्ष्मी बचपन से ही जिद्दी है। वह कभी हार नहीं मानती है। बचपन से ही उसे तीरंदाजी का शौक था। खेल के माध्यम से उसने परिवार का नाम रोशन किया और खेल के कारण ही पूरी दुनिया घूम लिया।

सरकार नहीं देती ध्यान

लक्ष्मी के पिता दिकू माझी ने कहा कि हमारी सरकार खिलाडि़यों पर ध्यान नहीं देती है। दूसरे राज्यों में खिलाडि़यों पर बहुत ध्यान दिया जाता है। उन्होंने बताया कि लक्ष्मी को नेशनल गेम्स में खेलने का पैसा अभी तक नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि जेआरडी टाटा के कारण ही आज लक्ष्मी के सपने पूरे हो रहे हैं। टाटा कंपनी की वजह से ही वह यहां तक पहुंची है, वर्ना उसकी प्रतिभा दबकर रह जाताी। उन्होंने बताया कि पहली बार जब तीर धनुष खरीदा था तो उसकी कीमत तीन लाख रुपये थी। उसमें से दो लाख जेआरडी की तरफ से दिए जा रहे थे, लेकिन एक लाख रुपए का इंतजाम खुद करना था। उस एक लाख रुपये को जुटाने में बहुत तकलीफ उठानी पड़ी। उन्होंने बताया कि लक्ष्मी अब तक इंग्लैंड, टर्की, मलेशिया, इंडोनेशिया, डेनमार्क, चीन, थाइलैंड व क्वालालम्पुर सहित कई देशों में खेल चुकी है। लक्ष्मी के इस ऊंचाई तक पहुंचने में उसके कोच धर्मेन्द्र और बुद्दीनाथ का भी बहुत योगदान है।