- 500 अवैध कॉलोनियां, 24 हजार अवैध निर्माण, एलडीए नहीं लेता एक्शन

- नक्शा पास करने के लिए होती है वसूली, काली कमाई का मिलता है टारगेट

LUCKNOW: 500 अवैध कॉलोनी, 24 हजार से ज्यादा अवैध निर्माण, न जल निकासी की व्यवस्था और न ही दुर्घटना से बचने के पुख्ता इंतजाम। ये हाल है राजधानी का जो खुद एलडीए के अधिकारी बयां कर रहे हैं। सवाल ये है कि जब अधिकारी ये सब जानते हैं तो कार्रवाई क्यों नहीं की, बुनियाद रखते समय ये कहां थे? दरअसल, इन अवैध निर्माणों के पीछे काली कमाई की कहानी है, जिसके लालच में अफसरों ने आंखें बंद कर लीं, नियम ताक पर रख दिए। और, काली कमाई की बुनियाद पर खड़ी हो गईं हजारों अवैध इमारतें। और, धंधा अभी भी धड़ल्ले से जारी है।

खुद विधायक ने उठाया था सवाल

सीतापुर के बिसवां से सपा विधायक रामपाल के जियामऊ, लखनऊ स्थित अवैध निर्माण को ढहा दिया गया है। लेकिन, जनवरी माह में जब इमारत को सील किया गया था तब विधायक और उनके साथियों ने एलडीए अधिकारियों पर आरोप लगाए थे। निर्माण शुरू होने के दौरान एलडीए कहां था? जबकि बिना मानचित्र पास कराए नींव तक नहीं पड़ सकती। एलडीए सूत्रों के मुताबिक इसका बड़ा कारण है कि मानचित्र के बिना अथवा बिना नक्शा पास कराए बहुमंजिली इमारत बनाने के लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण में रेट तय हैं। अभियंता से लेकर अफसर के लिए तय धनराशि जमा करने के बाद अवैध निर्माण के विरूद्घ कोई कार्रवाई नहीं होती है।

प्रवर्तन दस्ता करता है निगरानी

एलडीए में अवैध निर्माण को रोकने के लिए एक प्रवर्तन दस्ता गठित है। जोनल स्तर पर अवर अभियंता व सहायक अभियंता, अधिशासी अभियंता भी तैनात हैं। हर एक निर्माण की जानकारी अभियंताओं को होती है। एलडीए के सूत्रों के अनुसार बिना मानचित्र के किसी भवन का काम शुरू होते ही जेई यहां पहुंच जाता है और मौके पर ही अवैध को वैध करने की कीमत भी तय हो जाती है। सूत्र बताते हैं कि बहुमंजिली भवन में बिल्डर के प्रस्तावित मानचित्र में फ्लैटों की संख्या और एरिया के आधार पर कीमत तय की जाती है। यह प्रति फ्लैट दो से चार लाख रूपए तक होती है। अगर बिल्डर नक्शा पास कराता है तो लगभग इतना ही पैसा खर्च होगा। लेकिन, अधिकारी इतना फंसा देते हैं कि बिल्डर्स को पैसा देना ही पड़ता है।

इंजीनियर्स को मिलता है टारगेट

निर्माण शुरू होने के बाद अगर किसी ने शिकायत कर दी तो जेई व एई और संबंधित अफसर की कमाई और भी बढ़ जाती है। बिल्डर को नोटिस भेजा जाता है और कार्रवाई के नाम पर इमारत सील कर दी जाती है। शिकायतकर्ता को भी लगता है कि एलडीए ने कार्रवाई कर दी है। लेकिन, कुछ समय बाद सील खोलने को लेकर बिल्डर दबाव बनाता है और फिर रेट तय होता है। प्रति फ्लोर दो से छह लाख रुपए तक बिल्डर से वसूल किए जाते हैं। एलडीए सूत्रों के मुताबिक अवैध वसूली के लिए एलडीए में अभियंताओं को बकायदा टारगेट दिया जाता है।

समिति हाजिर है, रिपोर्ट लापता

आवासीय भूखंडों पर कांप्लेक्स आदि निर्माणों की जांच के लिए अधीक्षण अभियंता दुर्गेश श्रीवास्तव की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई थी। इसमें अधिशासी अभियंता बीपी मौर्य, सहायक अभियंता एके राय व विपुल प्रकाश सदस्य थे। समिति को जांच कर रिपोर्ट देनी थी। इसमें स्वीकृत मानचित्र के विरूद्घ निर्माण, क्या क्या निर्माण अवैध निर्माण और किस अवधि में हुए हैं आदि की जानकारी दी जानी थी। लेकिन आज तक इसकी कोई सही लिस्ट तैयार नहीं की गई।

संरक्षित इमारतों के पास भी अवैध निर्माण

संरक्षित स्मारकों के पास भी अवैध निर्माण हो रहे हैं, बिना एनओसी निर्माण पर भी एलडीए ने कार्रवाई नहीं की। इन दिनों एलडीए अवैध भवनों को सील करने की कार्रवाई कर रहा है, लेकिन हजरतगंज, डालीबाग, कैसरबाग व पुराने शहर में ऐसी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। यहियागंज में नादान महल रोड पर बना ऐतिहासिक मकबरे आस पास अवैध निर्माण हो रहे हैं। यह मकबरा केंद्रीय संरक्षित स्मारक के रूप में घोषित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने आपत्ति जताई है और निर्माण कार्य को रोकने के लिए डीएम अथवा एलडीए को निर्देशित किया है। पुराने शहर में दुर्गा मंदिर मार्ग पर शीश महल तालाब की सीढि़यों पर बनी अवैध बहुमंजिला इमारतों को सील करने की कार्रवाई भी होनी थी। हाई कोर्ट को सौंपी गई एलडीए की लिस्ट में ये इमारतें शामिल हैं। आज तक इन इमारतों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी। कुछ माह पहले पुराने लखनऊ में कराए जा रहे सौंदर्यीकरण की जांच के लिए मुख्य सचिव पहुंचे थे तो उन्होंने इन इमारतों पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया था। लेकिन बाद में एलडीए अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की। दरअसल, अवैध निर्माणों के विरूद्घ एलडीए की कार्रवाई हाईकोर्ट और सरकार को भी गुमराह करने वाली है।

कोर्ट को लिस्ट तो सौंपी कार्रवाई नहीं की

एलडीए अधिकारियों के अनुसार शहर में 500 से अधिक अवैध कॉलोनियां हैं। यहां न तो सही से जल निकासी है, न सड़क न सुरक्षा के दृष्टिकोण से ये सही हैं। लेकिन, इनके डेवलपमेंट के दौरान न तो एलडीए और जिला प्रशासन ने कुछ नहीं किया। लखनऊ शहर में लगभग 24 हजार मकान और इमारतें अवैध रूप से बने हैं। जिनका एलडीए की ओर से नक्शा पास नहीं किया गया। इनमें से लगभग 84 अवैध इमारतों की लिस्ट एलडीए ने 10 साल पहले ही कोर्ट को सौंपी थी। उसके बाद कुछ वर्ष पूर्व एलडीए ने 1600 और अवैध मल्टी स्टोरी बिल्डिंग्स की लिस्ट कोर्ट को सौंपी थी। लेकिन बार-बार आदेशों के बावजूद इन अवैध निर्माणों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी।