आजाद से लेकर पटेल तक सबने किया था नेहरू का विरोध

जब साल 1946 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होने थे तब मौलाना आजाद भी इस चुनाव में भाग लेने के साथ प्रधानमंत्री बनने के इच्छुक थे। लेकिन महात्मा गांधी ने उन्हें साफ़ तौर पर चुनाव लड़ने से मना कर दिया और कहा वो जवाहरलाल नेहरू के साथ हैं। इतनी ही नहीं देश के 12 राज्यों ने सरदार पटेल को कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के साथ देश का पहला प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन बाद में महात्मा गांधी ने पटेल से अनुरोध कर अपना समर्थन नेहरू को देने के लिए कहा और तब पटेल इस बात के राजी भी हो गए थे।  

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पार्टी से ही निकाल दिया गया था इंदिरा गांधी को

इंदिरा गांधी की पहचान राजनीति में बतौर बोल्ड लेडी थी और 60 के दशक में इंदिरा को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन पार्टी के प्रति विरोधाभास विचार रखने और बड़े नेताओं का विरोध काम करने के चलते इन्हें पार्टी के प्रेसिडेंट पद से बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद इनकी जगह नीलम संजीवा रेड्डी को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया।

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तब राजीव गांधी के खिलाफ प्रणब मुखर्जी ने खोला था मोर्चा

यूं तो को राजीव गांधी को राजनीति का बहुत ज्ञान नहीं था और उनकी इसमें कोई रूचि भी नहीं थी। लेकिन उनके भाई संजय गांधी के असामयिक मौत के बाद इंदिरा गांधी जबरदस्ती राजीव को राजनीति में लेकर आईं थीं। बता दें कि कांग्रेस में किस कदर वंशवाद हावी रहा है इसका उदाहरण 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देखने को मिला। उस समय राजीव गांधी को प्रधानमंत्री के साथ पार्टी का अध्यक्ष भी बना दिया गया। लेकिन राजीव को पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री बनाये जाने पर प्रणब मुखर्जी ने इसका खुलकर विरोध किया था।

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जीतेंद्र प्रसाद ने दी थी सोनिया गांधी को चुनौती

साल 1997 में सोनिया गांधी पहली बार पार्टी की सामान्य सदस्य बनीं। इसके बाद साल 1998 में पार्टी अध्यक्ष का चुनाव जीतकर कांग्रेस अध्यक्ष बनीं। हालांकि साल 2000 में पार्टी अध्यक्ष चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता जीतेन्द्र प्रसाद ने सोनिया गांधी का विरोध किया था, लेकिन वे उस समय सोनिया को हरा नहीं पायें। तब से लेकर आजतक सोनिया गांधी पार्टी अध्यक्ष के तौर पर विराजमान हैं।  

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