अमेरिकन ड्रीम का प्रतीक सिलिकॉन वैली

जहां सिलिकॉन वैली अमेरिकन ड्रीम का प्रतीक है। वहीं इंफोसिस उस भारतीय सपने 'इंडियन ड्रीम' का जो भारतीयों ने भारत में विश्व स्तर की कंपनियां खड़ी करने के रूप में देखा। समय के साथ इंफोसिस के संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति व नंदन नीलेकणी उस सपने का प्रतीक पुरुष बनकर उभरे। अमेरिकन ड्रीम को जीने वाले सिक्का जब इंडियन ड्रीम का हिस्सा बने। तो उसे इनोवेशन व इंडियननेस के बीच फ्यूजन के तौर पर देखा गया। 

 

शाजापुर से सिलिकॉन वैली तक चला 'सिक्का'

मध्य प्रदेश के शाजापुर से सिलिकॉन वैली तक विशाल सिक्का के सफर की कहानी तमाम मध्यमवर्गीय भारतीय परिवारों की कहानी सरीखा है। पंजाबी अभिभावकों, भारतीय रेलवे में कर्मचारी पिता व शिक्षिका मां की संतान सिक्का की पैदाइश शाजापुर की है। जब वह छह वर्ष के थे परिवार वडोदरा, गुजरात आ गया। स्कूल की पढ़ाई वहीं हुई। फिर उन्होंने वडोदरा की महाराज सयाजीराव यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस के स्नातक पाठ्यक्रम में दाखिला ले लिया। हालांकि वह पढ़ाई बीच में ही छोड़ न्यूयॉर्क चले गए। जहां उन्होंने सायराक्यूज यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। यहीं से उन्होंने कंप्यूटर साइंस में पहले स्नातक फिर परास्नातक की डिग्री ली। अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज में शामिल स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से उन्होंने 1996 में डॉक्टरेट की उपाधि ली। 

 

पांच साल की पारी खेलने के पहले ही विदा

करियर के शुरुआती दौर में उन्होंने जेरॉक्स में नौकरी की। फिर अपने पहले स्टार्टअप आई ब्रेन की नींव रखी। स्टार्ट अप की दुनिया में कदम रख चुके सिक्का ने इसके बाद नया स्टार्टअप बोध डॉट कॉम शुरू किया। 2002 में वह अमेरिकी कंपनी सैप का हिस्सा बने। वह 2007 में कंपनी का चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर बना दिए गए। सिलिकॉन वैली में उनकी पहचान इसी दौरान बनी। जहां उन्होंने कंपनी के इन मेमोरी डाटा बेस मैनेजमेंट सिस्टम HANA को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तीन साल पहले अपने पहले गैर संस्थापक सीईओ की इंफोसिस की तलाश विशाल सिक्का पर जाकर खत्म हुई। हालांकि वह अपनी तय पांच साल की पारी खेलने के पहले ही विदा हो रहे हैं।


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