-डॉ। सोमेश मेहरोत्रा और डॉ। मनीषा

छोटे-छोटे पलों में   ही खोजते हैं खुशी
प्रोफेशन के साथ फैमिली को भी क्वालिटी टाइम देने की पूरी कोशिश करता हूं। मुझे और मेरी वाइफ डॉक्टर मनीषा दोनों को ही हॉस्पिटल में पूरा टाइम देना होता है। साथ में टाइम स्पेंड करने के लिए हम साथ में जॉगिंग करते हैं, बच्चों को ड्राप करने भी साथ ही जाते हैं। ये छोटे-छोटे पल ही हमारी लाइफ में काफी मायने रखते हैं। ब्रेकफास्ट करने के बाद दोनों लोग साथ में ही हॉस्पिटल आते हैं पर इसके  बाद तो बात करना भी मुमकिन नहीं हो पाता है। ओपीडी के बाद घर जाकर अपनी बेटियों को पूरा समय देता हूं। कोशिश करता हूं कि डिनर हम साथ में करें। मेरी वाइफ मुझे सभी कुछ मैनेज करने में काफी सपोर्ट करती हैं।

Emotions को करना होता है Manage
जब किसी पेशेंट के अटेंडेंट्स रोते हैं, तो उनका सामना करना सबसे मुश्किल होता है। दरअसल, वह डॉक्टर को भगवान समझते हैं, वह यही पूछते हैं कि पेशेंट ठीक होगा या नहीं। वह तो सिर्फ पेशेंट को सही होने के बाद घर ले जाने की बात करते हैं। कई बार इस सबके बीच अपने इमोशंस को मैनेज करना होता है, इसके लिए मैं प्रोफेशनल एटीट्यूड अपनाता हूं। लोग मुझे रूड समझते हैं पर यह जरूरी हो जाता है। मेरे पास आने वाले पेशेंट्स को सैटिस्फाई करने के लिए मैं उन्हें प्रॉपर टाइम देता हूं और जरूरी होने पर काउंसलिंग करता हूं।


-डॉ। रवि खन्ना, पीडियाट्रीशियन

बच्चे कब बड़े हुए पता ही नहीं चला
मैंने अपना हॉस्पिटल अपने दम पर ही शुरू किया। शुरुआत में स्ट्रगल काफी ज्यादा था, 24 घंटे तक काम करना पड़ता था। ऐसे में, पता नहीं लगा कि बच्चे कब बड़े हो गए। उन्हें तो वाइफ (हाउसवाइफ) ने ही पूरी तरह से संभाला। बच्चों का स्कूल, पेरेंट्स-टीचर मीटिंग, सब वही करती थीं। अब तो हॉस्पिटल में 4 पीडियाट्रीशियन मौजूद हैं, ऐसे में लाइफ थोड़ी ईजी हुई है। जब भी आधे घंटे का समय मिलता है खुद को एनर्जेटिक रखने के लिए नींद ले लेता हूं। हां, सुबह जिम जरूर जाता हूं। मैं लंच भी अपने केबिन में ही करता हूं, वर्क प्रेशर की वजह से ओपीडी से उठकर जाना बेहद टफ होता है। इस बिजी लाइफ में परिवार को क्वालिटी टाइम देने के लिए बीच-बीच में टूर प्लान करता हूं।
 
Humour is the best treatment
मैं पीडियाट्रीशियन हूं, ऐसे में मुझे पूरे दिन बच्चों को ही देखना होता है। ऐसे में उनसे हंसकर बात करना ही बेस्ट ट्रीटमेंट होता है। मेरे हंसते हुए बात करने से बच्चों के पेरेंट्स भी काफी रिलेक्स फील करते हैं, जब आस-पास का माहौल अच्छा होता है तो काम करना आसान हो जाता है। अगर कोई मेरे पास कंप्लेन लेकर भी आता है तो मैं उससे हंसकर ही डील करता हूं और संतुष्ट करने की कोशिश करता हूं। मुझे प्रैक्टिस करते हुए 24 ईयर्स हो चुके हैं, अब मैंने एंगर पर काफी काबू पा लिया है। स्टार्टिंग में छोटी-छोटी बातें भी परेशान करती थीं।

 

-डॉ। राजीव गोयल, डॉ। रितू

Family life manage करना tough
वास्तव में, इस प्रोफेशन के साथ फैमिली लाइफ को मैनेज करना टफ होता है। एक बार मैं पेशेंट देखने विजिट पर था, उसी समय मेरे बेटे का भी एक्सीडेंट हो गया। बहुत असमंजस की स्थिति थी वह। पेशेंट सीरियस था इसलिए मैंने वाइफ से कहा कि वह बेटे को संभाले, मैं पेशेंट को देखकर आऊंगा। उस समय किसी एक को चूज कर पाना काफी मुश्किल था। पर, नॉर्मल टाइम में फैमिली को क्वालिटी टाइम जरूर देता हूं। इसके लिए मैंने ओपीडी टाइमिंग भी चेंज की है। शाम 6:30 बजे की ओपीडी पहले रात 10 बजे तक होती थी, अब मैंने टाइम घटाकर 8.30 बजे कर दिया है। क्योंकि, 10 बजे तक जब मैं घर पहुंचता था, तो बच्चे सो जाते थे। इसके साथ ही मॉर्निंग ओपीडी के बाद दोपहर 3:30 बजे फैमिली के साथ लंच करता हूं। शाम छह बजे तक का समय मेरे बच्चों के साथ स्पेंड करता हूं। इस समय वह मुझे अपने स्कूल की एक्टिविटीज शेयर करते हैं, उनकी इच्छा से कैरम या लूडो खेलते हैं।

तय करता हूं काम की priority
पेशेंट सैटिस्फे क्शन और स्टे्रस मैनेजमेंट के लिए काम का स्टेटिफि केशन ज्यादा जरूरी है। अगर सीरियस और नॉर्मल पेशेंट दोनों क ही मैं एक जैसा ही अटेंशन दूंगा तो इससे मेरा स्ट्रेस लेवल काफी ज्यादा हो जाएगा। इसके लिए काम को प्रियॉरिटी के आधार पर करता हूं। वहीं पेशेंट्स को सैटिस्फाई करने के लिए प्रॉपर काउंसलिंग करता हूं। हॉस्पिटल में पेशेंट्स को बेटर सर्विसेज देने के लिए उनसे कम्यूनिकेशन गैप नहीं रखता हूं। अगर मुझे लगता है कि कोई पेशेंट सीरियस है और उसे संभालना मुश्किल होगा तो यह बात मैं उनके अटेंडेट्स के साथ शेयर करता हूं। मुझे लगता है कि हॉस्पिटल के बेटर मैनेजमेंट के लिए अच्छे स्टाफ, टाइम मैनेजमेंट की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।


-डॉ। शालिनी माहेश्वरी,  डॉ। निशांत

We steal time for family
मैं और मेरे हसबैंड डॉ। निशांत दोनों को ही हॉस्पिटल में टाइम देना होता है। ऐसे में हम बच्चों और खुद के लिए मॉर्निंग ओपीडी और ईवनिंग ओपीडी के बीच में 3 घंटे का समय जरूर निकालते हैं। बच्चों के साथ इन्डोर गेम्स खेलते हैं, कार्टून देखते हैं। मैं ओपीडी में जाने से पहले लंच क ा मेन्यु तैयार करके जाती हूं। ताकि बच्चों के वापस आने तक उनका मनपसंद लंच तैयार हो जाए। बच्चे स्कूल से आने के बाद सबसे पहले मेरे केबिन में आते हैं, उस समय कुछ समय के लिए ओपीडी भी ब्रेक हो जाती है। तकरीबन दोपहर 3 बजे ओपीडी से फ्री होने के बाद शाम 7 बजे तक का समय मेरी फैमिली के लिए होता है। इवनिंग ओपीडी के बाद कई बार डिनर खुद प्रिपेयर करती हूं। साथ ही फैमिली टूर प्लान करती हूं।

Fit रहने के लिए करती हूं dance और योग
मुझे प्रैक्टिस करते हुए 13 ईयर्स कंप्लीट हो चुके  हैं। इस दौरान काफी बदलाव आ चुके हैं। अब एंगर से लेकर फैमिली मैनेजमेंट करने में प्रॉब्लम कम होती है। मेरे दिन की शुरुआत सुबह 5:30 बजे से होती है। इसके बाद सबसे पहला काम बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजना होता है। इसके बाद मैं पूरे दिन रिलेक्स फील करने के लिए योगा करती हूं, जब ज्यादा रिलेक्स होने की जरूरत होती है तो मैं डांस करती हूं। इसके बाद मुझे रिलेक्सेशन फील करती हूं। मुझे रीडिंग का शौक है, इसके लिए बच्चों क ो सुलाने के  बाद रात में रीडिंग जरूर करती हूं, ताकि मैं अपडेट रह सकूं। मैं प्रॉपर नींद लेने के  लिए रात 11:30 बजे तक सो जाती हूं। हॉस्पिटल की एमडी होने के नाते यहां का मैनेजमेंट भी काफी इंपॉर्टेंट होता है। स्टार्टिंग में स्टाफ नया होने की वजह से कुछ प्रॉब्लम्स आती हैं। अब स्टाफ ट्रेंड होने की वजह से इसमें कोई प्रॉब्लम नहीं आती है।

-डॉ। सुदीप सरन, डॉ। भारती सरन

बहुत miss करता हूं family time
वर्क लोड की वजह से मैं बच्चों के लिए टाइम नहीं निकाल पाता हूं। मैं इस फैमिली टाइम को बहुत मिस करता हूं। काम से ब्रेक लेने के लिए फैमिली टूर प्लान करता हूं। मैं और मेरी वाइफ डॉक्टर भारती दोनों की प्रैक्टिस की वजह से बच्चों को हमारी मजबूरी समझनी होती है। वह प्रॉब्लम समझते भी हैं, बिजी शेड्यूल्स के बीच मैं संडे का टाइम फैमिली के साथ ही स्पेंड करता हूं। भारती से भी मेरी बात फोन पर ही हो पाती है। पर उनके पास अपनी प्रैक्टिस के अलावा बच्चों की भी जिम्मेदारी है। मैंने उन्हें बाकी सभी कामों से दूर रहने को कहा है। ताकि वह बच्चों को पूरा समय दे सकें। इस पेशे में मुझे पेशेंट सैटिस्फेक्शन, सोसाइटी के लिए प्रॉपर टाइम, खुद की क्षमताओं का पूरा उपयोग करने के लिए कई बार जूझना पड़ता है। पर इसे मैनेज करने के लिए मैं खुद को एनर्जेटिक रखता हूं और अपने काम को सिस्टेमेटिक तरीके से करता हूं। काम की प्रियॉरिटीज तय करता हूं। इनमें सबसे मेरा काम, उसके बाद फैमिली, फ्रेंड्स और मेरे शौक आते हैं। मैं सबके लिए समय निकालता हूं।

अब तो आदत सी हो गई है कम सोने की
वर्क लोड की वजह से अब 5 घंटे की ही नींद लेने की आदत हो गई है। मेरे दिन की शुरुआत सुबह 6 बजे से होती है। मैं खुद को फ्रेश रखने के लिए जिम जाता हूं, स्विमिंग करता हूं। आमतौर पर इस समय मैं अपनी वाइफ के साथ ही होता हूं। इसके बाद ब्रेकफास्ट लेकर शाम 7 बजे तक ओपीडी में रहता हूं, मेरा लंच 7 बजे ही होता है। इसकेबाद कुछ देर रेस्ट करके दोबारा ओपीडी में आ जाता हूं। रात 8 बजे के बाद पेपर वर्क पूरे करता हूं और रात 11-1 बजे तक का समय मेरी हॉबीज के लिए होता है। लाइफ बिजी जरूर है पर मैं अपने शौक  के लिए टाइम जरूर निकालता हूं। मुझे राइटिंग, फोटोग्राफी का बेहद शौक है।

 

Report by-Nidhi Gupta