कुकिंग बनाई ताकत, भगाई गरीबी
गुजरात की जसवंतीबेन जमनादास पोपट, पार्वतीबेन रामदास थोडानी, उजामबेन नरनदास कुंडालिया, बानुबेन एन ताना, लागूबेन अमृतलार गोकनी, जयाबेन वी विठालानी साहित 7 गृहणियां मुंबई में आईं। खाना पकाना ही उनकी एकमात्र स्किल थी। लेकिन उनमें हजारों महिलाओं को गरीबी से बाहर निकाल कर आर्थिक रूप से आजाद बनाने का जज्बा था। वे चाहती थीं कि महिलाएं खुद कमाएं और खर्च करें। गरीबी से बाहर निकल कर वे खुद और परिवार को बेहतर जिंदगी दें। बस फिर क्या था उन्होंने एक समाज सेवी छगनलाल करमसी पारेख से 80 रुपये उधार लिए और बाजार से कुछ कच्चा माल खरीद लाई। 15 मार्च, 1959 को एक ईमारत की छत पर 4 पैकेट पापड़ बेल कर तैयार किए और बेच दिए। पापड़ बेचने में भुलेश्वर नाम के एक व्यापारी ने उनकी मदद की। महिलाओं ने तय कर रखा था कि चाहे नुकसान ही क्यों न हो वे किसी से दान या मदद नहीं लेंगी। खुद अपने पैरों पर कारोबार को खड़ा करेंगी।

स्त्री शक्ति बोले तो लिज्जत पापड़ पर बनी डॉक्यूमेंट्री

इस डॉक्यूमेंट्री में देखें कैसे 7 गृहणियों द्वारा शुरू हुआ धंधा आज 45 हजार महिलाओं को आर्थिक ताकत दे रहा है।

 

 



छगनबप्पा ने दिखाई राह और बढ़ती गई ताकत
छगनलाल पारेख जिन्हें छगनबप्पा के नाम से जानते थे उन्होंने महिलाओं को किसी भी सूरत में क्वालिटी से समझौता न करने और बिजनेस में खाता बही खाता के महत्व को समझाया। उनकी दिखाई राह का ही नतीजा है कि लिज्जत एक को-ऑपरेटिव सिस्टम के तहत 8 से 10 फीसदी सालाना वृद्धि दर से लगातार बढ़ता जा रहा है। शुरू में छोटी बच्चियां भी इससे जुड़ सकती थीं लेकिन बाद में 18 वर्ष की उम्र तय कर दी गई। तीन महीने में ही 7 से बढ़कर 25 गृहणियां इस कारोबार से जुड़ गईं। महिलाओं ने खुद के कमाए पैसों से पापड़ बनाने का सामान जैसे बरतन, आलमारियां, स्टोव वगैरह खरीद लिया। पहले साल उनकी कुल बिक्री 6196 रुपये की रही थी।

बरसात में खोजा पापड़ सुखाने का नायाब तरीका
मानसून के मौसम में बादल छाने से पापड़ सुखाने में दिक्कत होने लगी। धूप न निकलने से काम पर असर पड़ने लगा तो इसका हल भी गृहणियों ने बड़ी ही चतुराई से निकाला। उन्होंने स्टोव जला कर उसके ऊपर एक टोकरी पलट कर रखी और उस पर पापड़ सुखाने का तरीका खोज निकाला। बारिश भी उनका हौसला नहीं तोड़ सकी और गृहणियां लगातार उनके साथ जुड़ती चली गईं। दूसरे साल उनके सदस्यों की संख्या बढ़कर 150 और तीसरे साल 300 के करीब पहुंच गई।

महिलाओं की ताकत बनी लिज्जत का मेगा किचन
लिज्जत के पापड़ तैयार करने और दुनियाभर में एक्सपोर्ट करने के तरीके को नेशनल ज्योग्राफिक ने अपने मेगा किचन सीरीज में विस्तार से दिखाया है। इसमें यह भी दिखाया गया है कि लिज्जत ने महिलाओं के घर की छोटी-बड़ी समस्याओं को कैसे हल किया है और उन्हें किस प्रकार आर्थिक ताकत दी है।

 

 


1962 में 5 रुपये में मिला था 'लिज्जत' नाम
अब गृहणियों की मेहनत रंग लाने लगी थी। अब उसे एक पहचान देने की जरूरत थी, जिसका नाम लोगों के जुबान पर चढ़े। बस फिर क्या था एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। धीरजबेन रूपारेल का सुझाया नाम 'लिज्जत' सबको पसंद आया। इस नाम के लिए उन्हें 5 रुपये का पुरस्कार भी दिया गया। अब संस्था का नाम श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ रख दिया गया। 1961-62 वित्त वर्ष में पापड़ की वार्षिक बिक्री 1.82 लाख रुपये पहुंच चुकी थी। 1966 में इसे सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के तहत पंजीकृत करा लिया गया।

देश भर की महिलाओं को दे रहा आर्थिक ताकत
लिज्जत पापड़ देश में गरीब महिलाओं को आर्थिक शाक्ति प्रदान करने के एक प्रतीक स्वरूप है। इसका मुख्यालय मुंबई में है। देशभर में लिज्जत पापड़ के कुल 27 डिविजन और 82 शाखाएं हैं। लिज्जत का सालाना कारोबार 16 अरब रुपये का है। 2010 के आंकड़ों के अनुसार लिज्जत ने 29 करोड़ रुपये के पापड़ विदेशों में निर्यात किए थे। लिज्जत पापड़ ब्रिटेन, अमेरिका, मध्य पूर्व एशिया, थाईलैंड, सिंगापुर, हांगकांग, हालैंड, जापान और आस्ट्रेलिया में निर्यात होता है। लिज्जत में तकरीबन 45 हजार महिलाएं काम करती हैं। इन्हें मेंबर सिस्टर कहा जाता है मतलब सब लिज्जत में भागीदार हैं। हर ब्रांच अपने आप में स्वतंत्र इकाई की तरह काम करती है और यहां की मालिक मेंबर सिस्टर्स होती हैं। लाभ या नुकसान पापड़ बेलने वाली सभी मेंबर सिस्टर्स में बंट जाता है।

#internationalwomen'sday : जब 7 गृहणियों ने बेलन चला कर दे दी 43 हजार गरीब महिलाओं को आर्थिक आजादी

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