LUCKNOW : लिट्रेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन साहित्य, गायन, पेंटिंग समेत रानी लक्ष्मी बाई की जीवन गाथा को सुन लोग उस दौर से खुद को जोड़ते दिखे। इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में चल रहे तीन दिवसीय लिट्रेचर फेस्टिवल में हिंदी उर्दू साहित्य के साथ दलित साहित्य पर भी वक्ताओं ने अपने विचार रखें।

सबसे क्रांतिकारी दलित साहित्य

लिट्रेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन पहले सत्र में 'परम्पराओं को चुनौती दलित साहित्य का दखल' विषय पर कई विद्वानों ने अपने विचार रखे। वरिष्ठ साहित्यकार तरुण विजय ने कहा कि आज के समय में दलित साहित्य विकास कीे ओर बढ़ रहा है। ब्लैक लिट्रेचर को दुनिया का सबसे क्रांतिकारी साहित्य के रूप में जाना जाता है, लेकिन अब दलित साहित्य दुनिया के सबसे क्रांतिकारी साहित्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहा है। साहित्यकार प्रो। विवेक कुमार ने कहा कि उच्च वर्णी लोगों के पास सांस्कृतिक पूंजी थी, वहीं दलितों के पास सांस्कृतिक पूंजी की बहुत ज्यादा कमी थी, उनके पास ना कोई नायक था, ना मंदिर थे और ना ही कोई तीज त्योहार। जब उनको पास शिक्षा आई, तो सबसे पहले सांस्कृतिक पूंजी को बढ़ाने में लगे। लेखक व पूर्व मंत्री प्रो। संजय पासवान ने कहा कि सामान्य साहित्य से ही दलित साहित्य का सृजन हुआ है। दलितों के आरक्षण की बात दलितों से पहले उच्च जाति के लोगों ने की। दलित ने अपनी मेहनत और संघर्ष से दलित साहित्य को आगे बढ़ाया।

फेसबुक पर लेखन लाइक तक

फेस्टिवल के दूसरे सत्र में 'आजादी के बाद के हिन्दी-उर्दू साहित्य में जनवादी-प्रगतिशील परंपरा' विषय पर नरेश सक्सेना ने कहा कि ऐसी कोई किताब इस समय नजर नहीं आती है, जिसमें चार-पांच कविताओं से ज्यादा पढ़ने लायक हो। बहुत कुछ कहा जा रहा है, लेकिन उसका ढंग गलत है। फेसबुक पर लेखन बस लाइक तक सीमित है। उर्दू के विद्वान एवं वरिष्ठ लेखक प्रो। अनीस अशफाक ने कहा कि उर्दू में प्रगतिशील लेखन की परंपरा पुरानी है। राजनीति और साहित्य में कोई संबंध नहीं है, यह कहना गलत है। अदब में अदबियत का होना बहुत जरूरी है। कथाकार अखिलेश ने कहा कि भले ही कविता की कोई अच्छी किताब का नाम नरेश जी नहीं बता पा रहे हैं, लेकिन नरेश जी की ही किताब 'समुद्र पर हो रही बारिश' की सारी कविताएं पढ़ने लायक हैं। आलोचक वीरेंद्र यादव ने दो प्रमुख उपन्यासों की चर्चा की, जिसमें एक उपन्यास बाबरी ध्वंस की पूरी घटना पर लिखा गया 'आखिरी कलाम' और दूसरा इसी साल आया 'लाल लकीर' है।

हमारी संस्कृति विदेशों में प्रसिद्ध

लेखक भगवान प्रसाद ने हिंदी भाषा और साहित्य भारतवंशी बनाम भारतवासी विषयक परिचर्चा में बोलते हुये कहा कि लोक भाषा में मुहावरों का जितना प्रयोग है, वह अभिजात्य वर्ग में नहीं है। भाषाओं के परिवर्तन के साथ क्रियाओं में परिवर्तन हुआ है। डॉ पुष्पिता ने कहा कि जो हिंदू डेढ़ सौ साल पहले सूरीनाम, नीदरलैंड गये उन्होंने वहां बहुत कुछ लिखा है। भारतवंशी संस्कृति के वंशज हैं, विदेशों में रहकर हिंदी का महत्व बता रहे हैं, लेकिन हम भूल रहे हैं।

बा बापू और गिरमिटिया सागा

महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने 'बा बापू और गिरमिटिया सागा' विषयक परिचर्चा में कहा कि बापू की बैरिस्टर की पढाई के बाद बा को लगा कि उनका परिवार सुविधाजनक तरीके से चलेगा, लेकिन बापू के संघर्ष को देखकर उनके साथ हो लेना उनका बड़ा त्याग था। लेखक गिरिराज किशोर ने कहा कि गांधी अगर अफ्रीका न गये होते तो उन्हें सेल्फ डेवलपमेंट का अवसर न मिलता।

आल्हा पर खूब बजी ताली

तीन दिवसीय लिट्रेचर फेस्टिवल में आल्हा गायक रवि तिवारी ने महारानी लक्ष्मी बाई पर आधारित गाथा का गान किया। वहीं कलाकार पूजा और भाषा ने राई डांस से दर्शकों को प्रभावित किया। जबकि यूथ फोरम कविता प्रतियोगिता में कुल भाष्कर शशिकांत, अनुज शुक्ला, विकास मंडल, संकल्प, प्रतीक, प्रज्ञा, आदि युवाओं ने शानदार कवितायें सुनाकर दर्शकों को प्रभावित किया।

किताबों का हुआ लोकार्पण फेस्टिवल में लेखिका दक्षिता दास की किताब 'माई सेल्फ मीना आईएएस', लेखक और चिकित्सक डॉ अनुज कुमार की 'डैट इरोटिक साइलेंस', रविंदर सिंह की 'लव दैट फील राइट' किताब का विमोचन हुआ। इसके अलावा हिंदी वांग्मय निधि की ओर से 'लखनऊ का आकाशवाणी' किताब का लोकार्पण हुआ।

पेंटिंग और मूर्ति प्रदर्शनी

फेस्टिवल में कई पेंटरों की पेंटिग व मूर्ति का प्रदर्शन हुआ जिसमें काशी दर्शन पर ऑयल और वॉटर कलर की पेंटिंग प्रदर्शनी भी लगी। वहीं गरिमा सिंह की टेक्सटाइल पेंटिंग और राहुल सिंह की बनारस के घाट पर केंद्रित फोटो प्रदर्शनी आकर्षक का केंद्र रही।