वो खुश हैं कि 2005 से चलाई गई उनकी मुहिम आखिरकार रंग लायी जब भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने आपराधिक मामलों में दोषी पाए गए राजनेताओं को पद से हटने और चुनावों में भाग नहीं लेने का आदेश जारी किया.
ऐसा समझा जा रहा है कि ये फैसला अब देश की राजनीतिक दिशा को बदलने में एक मील का पत्थर साबित होगा और लिली थॉमस इस बात पर बेहद खुश हैं.
बीबीसी से बात करते हुए वो कहतीं हैं, "इस देश को भ्रष्ट या गुंडे चलाएं, ये नहीं हो सकता. इस लिए तो मुझे जनप्रतिनिधित्व कानून के उस अंश पर आपत्ति थी जिसमे प्रावधान किया गया है कि दोषी करार दिए जाने के बाद भी जनप्रतिनिधि अपनी कुर्सी पर बने रह सकते हैं अगर वो उस अदालत के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देते हैं."
आम आदमी
सर्वोच्च न्यायलय ने भी इस धारा की को गैर संवैधानिक मानते हुए आदेश पारित किया कि किसी भी हाल में आपराधिक मामलों में दोषी पाए गए जनप्रतिनिधि को कुर्सी पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है.
अपनी ज़िन्दगी में लिली थॉमस ने अदालत में न जाने कितने मामले दायर किये और कई मामले उन्होंने जीते भी हैं. मगर जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों को चुनौती देकर उन्हें आज एक अलग सी जीत का इत्मीनान है.
मूलतः केरल की रहने वाली लिली ने मद्रास उच्च न्यायलय से वकालत शुरू की और कुछ ही सालों में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करना शरू कर दिया. मानवाधिकारों और आम आदमी के अधिकारों के सवाल को लेकर वो अकेले ही मोर्चा संभालती रहीं.
"भारत में हमें संविधान भयमुक्त जीवन जीने की गारंटी देता है. किसी को अधिकार नहीं है कि हमसे ये आजादी छीन ले. कानून में लचक की वजह से दागदार लोग चुनाव लड़ते आ रहे हैं और अहम पदों को सँभालते आ रहे हैं. ये ग़लत है. मैं नहीं चाहती कि देश के भविष्य का फैसला उनके हाथों में हो जो आपराधिक पृष्ठभूमि से आते हैं या फिर जो भ्रष्ट हैं. इसी लिए मैंने अदालत में ये लड़ाई लड़ी. अगर हम वकील होकर इसके लिए नहीं लड़ेंगे तो फिर कौन करेगा ?."
आपराधिक चरित्र
लिली थामस का मानना है कि अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लोगों में जागरूकता आएगी और अब वो इस मुद्दे पर और स्पष्टता के लिए अदालत से दिशा निर्देश लेंगे. वो कहती है: "संविधान का असली अभिभावक अदालत है और उसके लाभार्थी आम लोग हैं."
पूछे जाने पर कि क्या उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और दूसरे राज्यों में आपराधिक चरित्र के लोगों के चुनाव लड़ने पर इस फैसले से सही मायनों में रोक लग पाएगी तो उन्होंने कहा कि अगर ऐसी पृष्ठभूमि वाले लोग चुनाव लड़ते हैं तो अब लोगों के पास सुप्रीम कोर्ट के फैसले के रूप में एक बड़ा हथियार है. वो उन्हें अदालत में चुनौती दे सकते हैं.
लिली को सुप्रीम कोर्ट के वकील भी सम्मान के साथ देखते हैं क्योंकि उनका पूरा जीवन लोगों के अधिकारों के लिए समर्पित रहा है. वो कहती हैं कि अगर सत्ता बागडोर ग़लत लोगों के हाथों में रही तो सब कुछ ग़लत ही होता रहेगा और शासन के हर वर्ग पर इसका असर पड़ेगा.
उन्होंने उद्धरण देते हुए कहा कि उनके पड़ोस में एक युवक शराब के नशे में सड़क पर जा रहा था. वो हंगामा नहीं कर रहा था. मगर फिर भी उसे पुलिस ने पकड़ लिया. पुलिसवाले से उसकी हलकी बक झक भी हुई.
मामला दर्ज
आखिरकार हुआ यूं कि उस युवक के खिलाफ पुलिसवाले ने थाने में मामला दर्ज कर दिया और युवक को नौकरी से हाथ धोना पड़ा. लिली बताती हैं कि युवक का मामला दो सालों तक अदालत में चलता रहा और आखिरकार उसे बाइज्ज़त बरी कर दिया गया.
"हम अच्छा प्रशासन तब तक नहीं दे सकते जब तक अच्छे लोग न हों सरकार में. अगर अच्छे लोग चुनकर आयेंगे तो लोगों का जीवन भी अच्छा होगा."
लिली थामस ने शादी नहीं की और उन्हें इसका कोई मलाल नहीं है. वो कहती हैं कि उन्हें कोई ऐसा नहीं मिल पाया जिसे वो अपना जीवन साथी बना पाएं . उन्हें लगता था कि वो एक इंसान जिसमे महात्मा गांधी और एब्राहम लिंकन जैसे युगपुरुषों का व्यक्तित्व होगा वही उनका जीवन साथी बन पायेगा.
"शायद मैंने कुछ ज्यादा ही सपने बुन लिए थे."
कानूनी पेंच
वैसे जब समय मिलता है तो लिली हाथों की रेखाएं देखने में दिलचस्पी रखती हैं. इसी लिए लोग उनसे कानूनी पेंचों के अलावा अपनी तकदीर के पेंचों को भी समझने और जानने आते हैं. अब उनका वक़्त इसी में कट जाता है.
वैसे हाल के एक किस्से को वो सुनाते हुए जोर जोर से हंस पड़ीं. किसी महिला संगठन ने उन्हें एक समारोह में न्योता दिया. इस समारोह में उन्होंने महिलाओं से कहा कि अपने पति को गाली मत दिया करो बावजूद इसके कि उसकी कोई 'गर्ल फ्रेंड' भी हो क्योकि अगर वो ऐसा करेंगी तो बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा.
उनका कहना था संगठन के लोगों ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा : आपको क्या पता ? आपने तो शादी नहीं की".
अब संगठन ने उन्हें बुलाना भी बंद कर दिया. मगर इस बात का उन्हें कोई मलाल नहीं है क्योकि वो मानती हैं कि सही बात बोलनी चाहिए जिससे घर टूटने से बच सकें.
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