- नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल और यूएस के वैज्ञानिकों का साझा रिसर्च

- विश्व के 61 रिसर्चर ने मुजफ्फरपुर के 390 बीमारों के केस खंगाले

- पहली बार इस रिसर्च में सामने आया दिमागी बुखार का पुख्ता प्रमाण

- लीची खाकर खाली पेट रहे तो दिमागी बुखार का खतरा ज्यादा

- इंटरनेशनल रिसर्च पत्रिका द लेंसेट ग्लोबल हेल्थ के अप्रैल के अंक में प्रकाशित हुआ रिसर्च पेपर

PATNA: दिमागी बुखार को लेकर दुनिया भर में कई तरह के रिसर्च हुए हैं, लेकिन पहली बार इस बीमारी की असल वजह से पर्दा उठाया है भारत और अमेरिका के भ्0 से अधिक वैज्ञानिकों ने। भारत सरकार की हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर मिनिस्ट्री की संस्था नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने यूएस फंडेड रिसर्च में यह पता लगाया कि मुजफ्फरपुर में दिमागी बुखार से पीडि़त बच्चों में से अधिकतर बच्चों ने लीची खाई थी। बीमार बच्चों के ब्लड और लीची के सैंपल को जांचकर इस नतीजे पर पहुंचे कि लीची भी इस बीमारी की बड़ी वजह है और इसके उपयोग को कम कर बीमारी को कम किया जा सकता है।

कैसे खुला राज

रिसर्च को ख्0क्फ् में शुरू किया गया। इससे पहले विश्व भर में एनवार्यनमेंट टॉक्सिक पर कई रिसर्च हुए हैं। इसी से जुड़ा एक रिसर्च वेस्टइंडीज में पाए जाने वाले फल अक्की पर हुआ है। अक्की, बॉटोनिकल फैमिली में लीची के करीब है। इसी को आधार मानकर लीची की जांच में उसमें ऐसे एलिमेंट पाए गए जो बीमारी की वजह हैं।

क्या है दिमागी बुखार

इन्सेफेलाइटिस या दिमागी बुखार मस्तिष्क पर असर करता है। मुजफ्फरपुर में हर साल इससे कई जान जाती है। ख्0क्फ् और ख्0क्ब् में इस बीमारी के अटैक से मुजफ्फरपुर में सबसे अधिक बच्चों की मौत हुई थी।

रिसर्च पेपर से मिले इन सवालों के जवाब

एक मैग्जीन में प्रकाशित रिसर्च पेपर ने वर्षो से अनसुलझे सवालों के जवाब खोज निकाले हैं। इसने सबसे पहले उन कयासों पर रोक लगा दिया जिसमें दिमागी बुखार को किसी मच्छर से जोड़कर देखा जाता था।

क्। नतीजे पर कैसे पहुंचे?

इस रिसर्च के लिए मुजफ्फरपुर में ख्0क्ब् में मई-जून के दौरान अस्पताल में भर्ती फ्90 पीडि़त पर शोध किया गया। जांच में पाया गया कि उनका ब्लड ग्लूकोज तेजी से कम हो गया है। जिन बच्चों में यह बीमारी पाई गई उनमें लीची खाने वाले बच्चों की संख्या 9भ् प्रतिशत थी। वे लोग जिन्होंने रात का खाना नहीं खाया था उनकी हालत अधिक खराब हुई।

ख्। सिर्फ मुजफ्फरपुर में ही क्यों दिमागी बुखार?

रिसर्च में इस बात पर जोर दिया गया है कि वहां यह बुखार लो सोशियो एकोनॉमिक ग्रुप के बच्चों में देखा गया। लीची की अधिक खेती होने की वजह से वहां बच्चे इसको अधिक खाते हैं।

फ्। तो क्या लीची न खाएं?

रिसर्चर के मुताबिक ऐसा नहीं है कि लीची न खाई जाए। रिसर्च में लीची की मात्रा कम करने की सलाह दी गई है। खासकर, बच्चों को लीची खाने के बाद रात का खाना जरूर खाना चाहिए।